मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

जनता की जिम्मेदारी

भारत देश सत्तर साल से स्वतंत्रता पा कर एक सम्पूर्ण गणराज्य बनाने की राह में चल चूका है. देश की जन संख्या सरकारी आंकड़ो के हिसाब से सवा अरब के पार जा चुकी है. अगर हम दुनिया के उन देशो के आंकड़ो पर नजर डालें जो सबसे पिछड़े हैं और उन देशो पर भी जो भारत के साथ ही स्वयंभू गणराज्य बने हैं तो हम पाएंगे की भारत कई सूचकांको में दुनिया में अव्वल नंबर पर हैइ भारत का नाम आज सबसे आगे इनमे आता है– कुल जनसँख्या, जन संख्या घनत्व, गरीबी सूचकांक, जनसँख्या में गरीबो का प्रतिशत, बेरोजगारी सूचकांक, मातृत्व मृत्यु दर, जन्म मृत्यु दर इत्यादि; अन्धता, मलेरिया, डाईबीटीज़, कैंसर, एड्स, ह्रदय रोग, दुर्घटना(मौत) इत्यादि लगभग २० बीमारियों में भी भारत प्रथम तीन में आता है, कुपोषण, जन सामाजिक अपराध, सांस्कृतिक धरोहरों की चोरी, प्रदूषण इत्यादि में हम दुनिया के सबसे गए गुजरे देशो के बराबर आते हैं जैसे बंगलादेश, सूडान इत्यादिI और भारत वर्ष, क्षमा करें इंडिया की अब तक की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि यानि भ्रष्टाचार की अपन जितनी भी बात करे वो कम ही है I आखिर नेताओं और राजनीती को पानी पानी पी पी कर कोसने वाले और कोई भी पहला मौका मिलते ही भड़ास निकालने से न चुकने वाले हम भारतीय देश में मौजूद हर समस्या के लिए पूरी तौर पर बस और बस नेताओ को दोष देकर अपनी जिंदगी में वही क्यों करने लग पड़ते हैं जो सालो साल से अभी तक हम करते आए हैंI कई दशको से जनसँख्या विस्फोट से होने वाले नुकसानों को जानने के बावजूद हमने कोई सीख नहीं ली है. और आज यह देश कुव्यवस्था, गरीबी से चौतरफा घिरे होने के बावजूद जन संख्या घनत्व में दुनिया में सबसे निम्न स्तर यानि अधिकतम संख्या (३८२) पर बैठा हुआ है I २% की दर से बढ़ रहा ये देश 2030 तक चीन को भी पीछे छोड़ देगा और सच्चाई ये है की भारत क्षेत्रफल में और आर्थिक विकास में चीन से कहीं पीछे है. तो आखिर इस देश का होगा क्या?
हर रोज सैकड़ो चैनलों पर, लाखो अखबारों, पत्रिकाओं के पन्नो में आजका मीडिया हर तरह का कूड़ा लोगो तक पहुँचाने में लगा हुआ है चाहे वो फिल्म, फैशन, टीवी पर अश्लीलता और अनैतिकता से भरे कार्यक्रम की अफीम हो या अपराध और अधर्म के महिमामंडन के अप-संस्कार. आजके युवाओं को न तो स्वतंत्रता संग्राम की सच्ची जानकारी है और न देश के लिए मर मिटने वाले स्वंत्रता सेनानी, बलिदानी क्रन्तिकारी आज के बच्चो के लिए आदर्श हैं. न तो इन तथाकथित युवा शक्ति को अपने देश की संस्कृति का पता है, न उन्हें हजारो सालो से स्थापित(और आज छिन्न भिन्न) असल धर्म का ही पता है(आचरण की बात तो दूर है) आज बस एक भारतीय युवा अमेरिकन बनना चाहता है या फिर अंग्रेज, कोई अन्य यूरोपियन या ऑस्ट्रेलियन .. भारतीयता से तो उसे शर्म आती है.. फिल्म के पर्दों पर वो कम से कम भूरे-भारतीय चेहरे देखना चाहता है और चेहरे ही नहीं आजका भारतीय तो कोई भी चीज भारतीय नहीं चाहता. पढता वो भारत देश में है और नौकरी करने के सपने विदेश के देखता है. ये भारतीय न तो अपने सांस्कृतिक ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में जानता है और नहीं उन धरोहरों को साफ़, सुरक्षित और सम्माननीय बनाने में कोई योगदान देता है I अभी भी एक औसत भारतीय अपने घर के बाहर सार्वजानिक स्थानों, स्कूल, बस स्टैंड, रेलस्टेशन, पार्को, सडको इत्यादि से लेकर पूजा स्थलों मंदिरों इत्यादि, नदियों के घाटो तक को मल मूत्र विसर्जित करके मलिन करने में जरा भी शर्म नहीं करता I यह भारतीय भौतिक गंदगी ही नहीं नैतिक गंदगी भी फैलाता है I यही एक सामान्य मासूम भारतीय जमीनी भ्रष्टाचार करने में भी पीछे नहीं रहता चाहे वो एक मामूली दफ्तर में फाइल बढ़ाने के लिए रिश्वत मांगने वाला बाबु हो, ऑफिस का दरवाजा खोलने के लिए चाय के पैसे वसूलने वाला चपरासी हो, आरटीओ पे करोडो कमाने वाला दलाल या अधिकारी हो,नुक्कड़ पे वसूली करता पुलिस वाला हो, कोई वकील या जज हो, सरकारी महकमे में काम करने वाला कोई भी कर्मचारी हो या फिर निजी क्षेत्र में व्यव्साइओ की काला बाजारी, मिलावट, कर चोरी में संलिप्तता हो या फिर प्रशांत महासागर जितना गहरा कार्पोरेट भ्रष्टाचार हो, ये तथा कथित सामान्य जनता बस नेताओ को गाली देना चाहती है और खुद सुधरना नहीं चाहती. न तो नागरिक दायित्वों, न धार्मिक संस्कारो की कोई परवाह, न देश के प्रति अपने दायित्वों का भान, न देश को साफ़-शालीन रखने की चाह, न देश को मजबूत देखने की इच्छा I न राष्ट्र का सौंदर्य बोध न राष्ट्र शक्ति बोध I अपने राष्ट्रीय धर्म से कोसों दूर और मौका मिलते ही, किसी भी चैनल पर अश्लीलता देखते, भरपूर शाही मनोरंजन करते, किसी चमकीली वेश्या यानि फ़िल्मी कलाकार या कोई देह परोसती मॉडल देखते, फ़िल्मी गानों से मनोरंजन करते, खाते पीते, अपनी ही पारिवारिक भोग में मस्त रहते हुए हम, टेलीविजन, चैनलों पर जी भर कर नेताओं को गाली देने और राजनीती के गुण दोष का बड़ा ही कलात्मक मान मर्दन करने में जरा न संकोच करने वाले हम वही पारखी दृष्टि स्वयं पर कब डालेंगे ?
आखिर इस जनता, जो अब पढ़ी लिखी भी है, बड़ी जागरूक है और इस अत्यंत समझदार मीडिया के प्रयत्नों के कारण महान ज्ञानी भी है, की भी भला कोई जिम्मेवारी है? राष्ट्र दायित्व के प्रति हमारी गंभीरता तो चुनावो में २०-45% वोटिंग से ही दिख जाती है उसमे भी कितने महा-ज्ञानी, पढ़े लिखे उच्च शिक्षा प्राप्त प्रोफेशनल या फिर अगर हम पूछे तो कितने फ़िल्मी कलाकार नजर आते हैं जो लम्बा प्रवचन देने को प्रचार आयोजन में तो दिख जाते हैं और फिर उनमे कितने ये अत्यंत जागरूक लगने वाले मीडिया वाले होते हैं ये हम सब को बहुत अच्छी तरह से पता है I अनिवार्य मताधिकार प्रयोग, राष्ट्रनिष्ठ आचार, नैतिक दायित्व के नाम पर मुंह बिचकाने वाले, राष्ट्र सुरक्षा और राष्ट्रीय हित के लिए अपने व्यक्तिगत सुख को न त्यागने वाले मात्र बड़ी बड़ी बातें करने वाले, फिल्मो, फ़िल्मी गानों, मटकती कमरों, दारू नशे में डूबे रहने वाले हम क्या कभी एक हिंदी फिल्म ‘स्वदेश’ के नायक की तरह ही अपने देश को खुद ही सुधारने- बनाने के लिए अपनी सपनीली-फ़िल्मी-व्यसन की दुनिया से नीचे आएंगे?
क्या दूसरो को दायित्व की याद दिलाते हम स्वयं के नैतिक दायित्व के विषय में भी गंभीर पहल करेंगे ?
हमें प्रतीक्षा है I

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