समय का तूफ़ान सब कुछ मिटा देता है.. पत्थर, पहाड़, राज्य, रियासत, वैभव, शौर्य सब कुछ.. और अगर ये मनुष्यों की सबसे उत्कृष्ट भावो, दुर्लभ मानवीय या प्राकृतिक रचनाओ को भी नष्ट कर डाले तो किसी बहुत बड़े नुकसान का अहसास होता हैI पर अगर यह किन्ही खूंख्वार बर्बर, खून के प्यासे आतातइयो के हाथो किन्ही शांतिप्रिय, अनाक्रामक, अपने घर संसार में मग्न मनुष्यों का विनाश हो हो तो यह निश्चय रूप से गहरे दुःख का कारण होगा.. !!
अगर किसी ऐसे देश और उसके निवासियों का विनाश हो गया हो जो कभी समूचे विश्व के शासक रह चुके हो तो यह तो और भी दुखद होगा..
वह देश जिसकी मिलकियत विभिन्न क्षत्रिय शासको के राज में सुदूर पूर्व यानि कम्बोडिया, चाइना, जापान, न्यू गिनी से लेकर सुदूर पश्चिम यानि इटली, जर्मनी, इंग्लैण्ड तक थी I अगर वह देश जिसने सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात कर लिया हो जिसके पास विश्व का पहला मानचित्र हो, वो जिसके पराक्रमी शासको ने उत्तर अमरीका यानि मय सभ्यता (जिसे अंग्रेजी में माया सिविलाइजशन के नाम से जाना जाता है), ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका आदि महाद्वीपों तक नौका मार्ग से अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली थी और जिनके पास उन भूभागो की गहन जानकारी थी I
जिस सभ्यता ने विश्व की सर्वोन्नत मीमांसाओ और रचनाओ को जन्म दिया, जो भूमि विश्व के पहले मानवों को पालने वाला पालना बनीI जिस देश, सभ्यता ने विश्व के पहले वैश्विक ज्ञान केन्द्रों यानि काशी, जादुगुडा, नालंदा, तक्षशीला जैसे प्रथम विश्व विद्यालयों की स्थापना कर संपूर्ण विश्व को शिक्षित किया. जिनकी अन्वेषित, परिष्कृत और परिचालित विधियों और ज्ञान सामग्री को जानकर यह तथाकथित नव विश्व अपने अस्तित्व की पहली सीढियाँ चढ़ा.. जिस सभ्यता से चीनी, अरब, प्राचीन यूरोप, अफ्रीका- मिश्र, सुमेर, बेबीलोन(उत्तर प्राचीन काल में ) और अन्य क्षेत्रो ने अपनी अपनी संस्कृतियों का विकास किया I
जिस भारत देश ने अपने शौर्य, तकनीकी और ज्ञान से विश्व की पहली साम्राज्य को संपुष्ट किया जिस भारत के वीरो ने विश्व में प्राचीन नौ मंदिर स्थापित किये और वो सभी मंदिर आज अन्य सभ्यताओ, धर्म और आस्था के गढ़ (वेटिकन, जेरुसलम आदि) बन गए..जिसके वीरो ने सम्पूर्ण विश्व पर अपने चिन्ह छोड़ दिए (और जो आज भी पाए जाते हैं *) .. वो देश जो सही अर्थो में विश्व का पिता कहा जा सकता है आज किस प्रकार से अपनी दुर्दशा को प्राप्त हो गया है?
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किसने किया है ये सब?
कैसे यह देश जो सम्पन्नता, वैभव और उच्च परिष्कृत सभ्यता के सभी गुणों से सुशोभित था कैसे गुलामी, विनाश, विपन्नता, अनाचार और "धर्म" से रहित हो गया?
कैसे हुआ ये इसी देश में, के आज इसी एक देवभूमि सदृश्य देश जिसे उच्च राष्ट्रीय और नस्लीय पहचान का श्रेय आर्यावर्त के रूप में मिला था, विदेशी पराधीनता , विदेशी शिक्षा और विदेशी व्यव्हार ने हमारे लहू में स्थान बना लिया?
कैसे आज इसी एक भारत देश में अन्य कई देश पलते दिख रहे हैं? कैसे यह एक देश विदेशियों की संतानों को अपना दूध पिला रहा है??
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कैसे हुआ ये? कब हुआ ये सब?
आज यह काल है आतंक की, हमारी गुलामी की बरसी की .. उम्मय्यदी नस्ल के इराकी खलीफा अल हज्जाज बिन युसूफ के भेजे लूटेरे मुहम्मद बिन कासिम ने धन, सम्पदा के महान खजाने जिसे वो निरक्षर, आतंकी "सोने की चिडिया" कहते थे, को लूटने और विनाश करने के लिए सबसे पहले सन ७१२ इसवी में इस अखंड भारत की सीमा में अतिक्रमण किया था.. दमिश्क के उम्मय्यादी खलीफा का पापी आक्रान्ता हिन्दू राजा दाहिर को क़त्ल कर मुल्तान के सोने के बने कई विशाल मंदिरों को खोदकर और हजारो हिन्दु खोपड़ियो के पहाड़ बना गया ..
उस तुर्क बिन कासिम के बाद सय्यिदो, लोधियो, मंगोलों,कुर्दों, किर्गिजो, तुर्कों, पारसियों तथा अन्य विदेशी अक्रमंकरियो* ने भारत को नेस्तनाबूद करने के लिए सैकड़ो आक्रमण किये i उस एक महादुष्ट , पापी और लालची आतंकी के बाद एक एक करके कई दुष्ट आते गए और हर जीत के साथ कई लाख मंदिर तोड़े गए, कई लाख -लड़ने वाले योद्धाओ, मंदिर पे पाए गए भिक्षुको और ब्राह्मणों, यहाँ तक की सामान्य निवासी(वयस्क, किशोरे व बालक) जिन्होंने धर्मान्तरण की अपेक्षा संघर्ष का चुनाव किया, आदि कई पुरुषो का सामूहिक नरसंहार किया गया, "चच नामा" (अल कूफी- अनुव. अलिअट और डाउसन) (एवं कई अन्य वृत्तान्त और ऐतिहासिक सन्दर्भ जैसे-- अल- बदौर की फुतुह-उल-बुदन बताता है की रेवर, ब्रह्मनाबाद, नगरकोट, राजकोट, जयपुर-सिंध, देवल, मुल्तान, लवपुरी(लौहौर), कुशपुरी\देवालय्पुर (करांची), थानेश्वर, दिल्ली, काशी, मथुरा ...... आदि आदि (हजारो ) नगरो के ऊपर चढ़ाई के बाद कितने (बुतपरस्त काफ़िरो के) कटे सिरों की झालर, हजारो कटे हिन्दू सरो की कालीन या दीवार नगर की प्राचीरो और मुख्या दरवाजो पर लगायी गयी.. नगर के समूल नाश के बाद कितने बच्चे गुलाम बनाने के लिए और कितनी स्त्रीया और बालिकाएं अरब के हरम और बाजारों में बेचने के लिए घोड़ो, उटो और खच्चरों पर लादकर ले जाई गयीं, कितने हजार टन सोना, जवाहरात और कीमती असबाब वापस अरबी सुल्तानों के देश ले जाया गया और कितने बुत्परस्तो की आस्था के केंद्र बुतों के टूटे हुए शीर्ष ढोकर खलीफा अरब, सल्तनत के केंद्र में पहुंचा दिए गए I
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जी हाँ, हमें बुरी तरह से कुचला गया था और पराधीनता में हमारी पहचान की एक एक वजह नृशंसता से मिटाई गयी है, हमारा वैभव पूरा लूट लिया गया, हमारे शक्ति केंद्र जड़ से सम्पूर्ण नाश कर दिए गए.. पाटलिपुत्र जो की भारतीय शौर्य, ऐश्वर्य, वैश्विक प्रभुता और वर्णीय अस्तित्व का एकमात्र विशिष्ट केंद्र था गुमनामी की लम्बी कालकोठरी में फेंक दिया गया I और तभी से विलुप्त हो गया भारत देश का संपूर्ण विश्व में अधिपत्य स्थापित करने वाले शक्तिपुंज का प्रकाश !!
आज ठीक १३०० साल हो चुके हैं !!
सिन्धुस्थान यानि सिन्धु देश यानि हिंदुस्तान की धरती को अपवित्र करने को उस पहले आक्रान्ता (जिसे अपने सातवें प्रयास में सफलता मिल पाई) ने सिन्धु नदी की सीमा पार करी और जो जून (ज्येष्ठ श्रावण)में होने वाले अपारगमनीय सिन्धु की जलराशी(बाढ़) के बदने से पहले ही विध्वंस करके और वैभव लूटकर निकल गया था पर अपने आगे आने वाले विनाश को रास्ता दिखा गया था!
बहुत समय हो गया.. पाटलिपुत्र काल निद्रा में लीन हो गया था.
और वो हर, वही दुर्दशा आज भी दिखती है, वही क्षतविक्षत देह इस वर्ण की आज भी दिखती है विदेशी पैबन्दो के सहारे अपने मर्यदाराहित, कुचले देह को असफलता पूर्वक छिपाते हुए!!
इन १३०० वर्षो में भारत विनष्ट हो चूका है, शायद भारतवासी भी नष्ट हो चुके हैं... भारत की हर पहचान नष्ट हो चुकी है और भारत का हर मान नष्ट हो चूका है.. भारत का धर्म तो कब का नष्ट हो चूका है .... कुछ बची खुची निशानियाँ बची हुई हैं जिन्हें आज के भारतवासी अपने ही हाथो से नष्ट कर रहे हैं और औरो के हाथो में बेच रहे हैं. जिस तरह हारने के बाद (आधुनिक काल में) जापान, जर्मनी, कोरिया या वियतनाम का उनके शत्रुओ द्वारा अंश अंश मिटा दिया गया उसी तरह भारत और भारतवासियों का नाम भी मिटा दिया गया I
पर वह देश तो स्वयं पैरो पर खड़े हो गए हैं... पर भारत देश आज भी उस प्रचंड अघात से उबर नहीं पाया!!
आज वह भयावह स्थिति बदली नहीं है.. आज भी एक बड़ी आबादी भारत को पराजित करने वालो के आदर्शो-इशारो पर चल रही है.. आज भी हर रोज हिन्दू यानि भारतीय को क़त्ल किया जा रहा है..
"धिम्मिओं" की डर, गुलामी, अंधकार, अज्ञानता और शर्म इतनी व्यापक हो चुकी है की हर आह्वाहन, हर रहस्योद्घाटन और हर पुकार को सहिष्णुता, शांति, करुणा इत्यादि के नारों, धार्मिक अकर्मण्यता, और नस्लीय गुमनामी के कई छद्म विशेषणों के पीछे छिपाया जा रहा है i आज हिन्दुओ को पुकारती हर आवाज को युद्ध्भेरी बता घृणित साबित किया जा रहा है, हिन्दू चेतना की पुकार को बस किसी एक वर्ग के विरुद्ध प्रचारीत किया जा रहा है I
देखिये और सोच्जिये किस देश में ऐसा होता होगा? जहाँ अकबर, हुमायूँ, बाबर, चंगेज खान, औरंगजेब, तैमूरलंग, तुगलक, खिलजी, शाहजहाँ, इत्यादि भारत देश के हत्यारों को आदर देकर हमने अपने माथे पर सजा रखा है उन सभी के नामांकित मार्गो पर चलते राजधानी दिल्ली के भारतीय राजनेता गर्व महसूस करते हैं और जिन्हें शिकन तक नहीं होती !!
मुगलों और मुस्लमान आक्रंताओ द्वारा अपहृत-अपभ्रंशित स्थलियो जो की हजारो साल से हिन्दू संपत्तियां थीं - जैसे चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य दवारा स्थापित लौह "विष्णुस्तम्भ" (जिसे मूलतः मथुरा से लाया गया था) का वेधशाला और मदिर संकुल जिसे कुतुबुदीन द्वारा थोपे विजय प्रतीक (क़ुतुब मीनार) से कलंक्रित कर दिया गया.. जैसे मुगलिया अकबर द्वारा मारवाड़ी सिकरवार राजाओ के सैकड़ो सालो से स्थापित सीकर महल और किले को 'फतेहपुर सिकरी' (और अन्य फतेहपुर) की पहचान से महिमामंडित कर दिया गया है.. जैसे तेजोमहालय को ताज महल , जैसे लक्ष्मनपुर या लखनपुर को लखनऊ बनाकर कलंकित कर दिया गया, जैसे <strong>काशी, अयोध्या, गया, मथुरा, उज्जयिनी, विजयानगरम, भोजपाल पुर (भोपाल),अहमदनगर, बरोदा, जामनगर, और गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र के हर नगर को पराधीनता सूचक नाम और पहचान दे दिया गया.. *
जिस तरह से कश्मीर, अफगानिस्तान (इरान और इराक में भी) इत्यादि में स्थित लाखो मंदिर ध्वंस कर दिए गए(निकटतम इतिहास में) जिस तरह से कश्मीर में स्थित मार्कंडेय मंदिर, शंकराचार्य मंदिर, खीरभवानी मंदिर जैसे अन्य २-३ हजार वर्ष पुराने मंदिरों की सुरक्षा सेना को करनी पड़ती है (मैंने खुद देखे हैं!) और जिस उदासीनता से भारतीय जनता कश्मीर के प्रति पेश आती है.. जिस तरह से २० लाख कश्मीरी हिन्दुओ को निकालने के बाद आज भी विधर्मीकरण जारी है और आज भी भारतीय-हिन्दू जनता नपुन्सको की भांति हाथ पर हाथ धरे बैठी है, जिस तरह से जेहादी-यानि मुस्लिम राष्ट्र और पाकिस्तानियों द्वारा समर्थित भारतद्रोही विचारधारा मुगालिस्तान* बनाने के अपने मंसूबे पर आमादा है और जिस तरह से यह आक्रान्ता मानसिकता बंगाल, उत्तर पूर्व, मध्य पूर्व भारत और दक्षिणी भारत में गढ़ बना चुकी है वही हारी हुई मानसिकता अभी भी अपने शत्रुओ को अनदेखा कर रही है !!!
उस गहरी चोट की अमित छाप अभी भी हमारी मानसिकता में है.
आज यह कायरता, विधार्मिता हमारा आभूषण बन गया है.. इस आभूषण में धर्मनिरपेक्षता, पंथनिरपेक्षता जैसे कई शब्दों के माध्यम से चमक लाते रहने के प्रयास चलते रहते है.
अपनी जातीय चेतना को पुनर्जीवित करने के भारतीय हिन्दुओ के हर प्रयास को भोंडा, हल्का और आपत्तिजनक रूप देने का प्रयास होता रहता है!
हम ठीक वैसा ही कर रहे हैं जैसा हमारे शत्रु चाहते थे, आज हमारी वही स्थिति है जैसी उनकी मंशा थी...
असहाय, सर झुकाए और मरे हुए ... कटे हुए सर
भारतीय हिंदी फिल्मे आज अजान और इस्लामी नज्बे अरबी धुनें गा रही हैं, इस्लामी आतंकवादियों की हौसलाफजाई करने वाली फिल्मे (खान) बस हमारी ही जमीं से दुनिया में पहुंचाई जा रही हैं - फिल्मो से हिन्दू संस्कार, हिन्दू धर्म, हिन्दू चिन्ह अदृश्य हो गए हैं पर "कुन फय्कुन" और सजदा जरूर नजर आ रहे हैं, और.......हम!.... हिन्दू मंदिरों में जनता आज स्वार्थ पूर्ती के लिए अधिक जुट रही है.. और हिन्दू धर्म मात्र शादी करने या मरने के समय ही याद किया जाता है या वो भी नहीं किया जाता.. आज हम ईसाई ताकतों द्वारा पोषित शिक्षण संस्थाओं में अपने बच्चो को पढ़ाते गर्व महसूस कर रहे हैं..
सडको पर बड़े बड़े ज्ञानी पैदा हो गए हैं जो कहते हैं "अरे धर्म वर्म में क्या रक्खा है" ... हमारे लिए तो सभी धर्म बराबर हैं.. "धर्म का तो नशा फैलात्य जाता है" .. "मन चंगा तो कठौती में गंगा".. "मैं तो नास्तिक हु".. इन सभी सुविधाभोगी महानुभावो को पूरी छूट है की वो हिन्दू धर्म की अपने विचार से व्याख्या कर उसका कैसा भी अपमान कर सकते हैं..
अहिंदू आबादी भयावह तरीके से संख्या बढ़ा रही है.. भारतीयों-हिन्दुओ को अपने ही मंदिर में पूजा करने से, घंटा बजाने से, अपने ही देश में तीर्थयात्रा करने से रोका जा रहा है... और तो और समग्र विश्व जैसे के पिता होने के बाद भी आज हिन्दू के साथ आतंकवादी शब्द लगाया जा रहा है.. समूचे विश्व में सूरज की तरह स्पष्ट इस्लामी आतंकवाद के बावजूद उसके संरक्षण के तर्क भारत की धरा से दिए जा रहे हैं "आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता" ....
पाकिस्तान से बंगलादेश तक मुगालिस्तान पर पूरे जिहादी जोश से काम चल रहा है और उत्तर प्रदेश में आई नयी सरकार के झंडे तले अभियान को और ताकत देने का काम शुरू हो चूका है.. पूरा देश जिहादी और ख्रिस्ती =ईसाई एजेंटो की गिरफ्त में आ चूका है.. खतरनाक स्थिति इतनी है की उत्तर पूर्वी भारत, सूदूर दक्षिणी, ओडिशा, कश्मीर में परचम फहराने के बाद आज इन दुस्साहसी झुंडो की पहुँच भारतीय धर्म के केंद्र बनारस तक हो गयी है!!
पर हमें खबर कहा... !! हमारे तो कानो में अणु बम विस्फोट हो जाये तो भी कुछ न सुनाई दे.. सब मालूम है सरकार को, और आपके प्यारे मीडिया को
पर भारतीय मीडिया लिप्सा और लौलुपता बाँट कर अपना द्रोही धर्म निभा रहा है.. और जर्मनी के लिए काम करने वाले और रूस की केजीबी के लिए काम करने वाले इटैलियन नाजी की चालाक बेटी की चरण पादुका पर परजीवित, अंग्रेजो द्वारा पैदा और पोषित राजनैतिक पार्टी की सरकार आज डंके की चोट पर रोमन क्रूसेडर क्रॉस (देखें चित्र) जो रोमन साम्राज्य द्वारा जारी किया गया था, उसे भारतीय सिक्को पर जारी कर भारत पर इटैलियन(ख्रिष्टि) प्रभुत्व को आगे बढ़ा रही है.. और हमारी यह सच्ची, प्यारी सरकार जिहादी फसल को तो इस तरह से बाटला-गोद में बिठाकर पाल रही है जिस तरह से शरीर पर खून पीने वाली जोंक पलती है ..I
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pc 4<img src="http://indianrealist.files.wordpress.com/2009/04/10rupee-coin3.jpg?w=500" alt="ind cross" />
इतिहास के हर पन्ने पर मिल जायेगा की किसी देश में नागरिक देश द्रोहियों को सजा कैसे वीभत्स तरीके से दी गयी पर यह देश ऐसा अजूबा उदहारण है जहाँ विदेशी आतंकवादी जिसने सैकड़ो नागरिको की खुलेआम हत्या तो की ही देश की अस्मिता ही सड़क पर नीलाम कर दी पर फिर भी कसाब, मदनी, सलेम, तहव्वुर राना और अफजल गुरु जैसे बिना किसी शिकन के इसी देश की हवा में सांस ले रहे हैं जिसमे खुद को भारतीय कहने वाला हर बाशिंदा लेता है.. ये है नपुंसकता की ऐतिहासिक मिसाल जो शायद ही किसी और देश में मिले!!!
बर्बर शत्रुता की आंधी पूरे विश्व को हासिल करने के बाद आज भारतीय उपमहाद्वीप में आ गयी है इस आखिरी "चिड़िया" को भी अपनी तश्तरी में सजाने को कसाई अपने छुपे-खुले हथियार लेकर तैयार हैं .. हिन्दू धर्म के आखिरी निशान को भी पूरा मिटा देने को सभी आक्रान्ता सेनाएं "पौरुष" दिखाने को तैयार हैं उनका सामना लज्जित, स्त्र्योचित शिखंडी रूप कायरो से है जो लम्पटता के नए स्वांग रचने में मदमस्त हैं!!
pic 5 <img src="http://patdollard.com/wp-content/uploads/2012/06/islamicterrornukes.jpg" alt="" />
उनके लिए इस बार भी आयोजन दुरूह न होगा.. जब १३०० साल और ८०० साल पहले गजनी, गौरी, अलाउद्दीन खिलजी, बिन तुगलक, तैमूर लंग, चंगेज खान, शेर शाह सूरी, नादिर शाह, ऐबक, आदि ने आक्रमण किया था तब उनके सामने थी अत्यधिक संपन्न, विलासी शायद आलसी और लापरवाह भी, साथ ही सुविधाभोगी धर्म के पालन या धर्म से विमुख जाति जिसका उससे पहले कोई बाहरी शत्रु (तात्कालिक) नहीं था और उन विदेशियों ने एक बार में पूरे देश का संहार कर दिया ... कई और भी कारण थे * (आगे उल्लेख करेंगे!)
और आज भी लगभग स्थिति वही है या शायद उससे भी बुरी ...
आज भी एक पौरुषहीन जाति अपने स्त्र्योचित गुणों के साथ शिकार के रूप में सामने प्रस्तुत है I
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प्रोफ के एस लाल के अनुसार १००० से १५२५ इसवी तक मुगलों ने भारत की जनसँख्या ८ करोड़ कम कर दी थी ..
कोनार्ड एल्स्ट ने १० करोड़ हिन्दुओ के नरसंहार को इस <strong>विश्व का सबसे बड़ा महा संहार करार दिया है (निगोशिएशन्स इन इंडिया )..
आधुनिक काल में विनाश के प्रचंड साधनों (एम् १६, नापाम, सरीन, परमाणु बम्ब इत्यादि) को लेकर भी हिटलर जैसे महा शैतान ने भी उतने यूरोपी नहीं मारे(द्वितीय विश्व में नाजी सेना ने ५० लाख मनुष्यों का नामोनिशान मिटा दिया वही औपनिवेशी यूरोपी सेनाओ ने अमेरिका की १ करोड़ की नेटिव आबादी- मूल निवासियों का वृहद् खून खराबे में संहार कर दिया था!!) जितने हिन्दू इस्लामी हत्यारों ने भारत में मार दिए आधुनिक काल में यह संख्या <strong>९० करोड़</strong> मानी जा सकती है...!!!!!!
फ़्रांसिसी इतिहासकार अलैन दैनिएलु स्वीकार करता है की प्राचीन भारत का इतिहास, जिसमे समस्त विश्व केन्द्रित था, और साथ ही भारत की प्रतिष्ठा मुग़ल शासन के आने के बाद सदा के लिए मटियामेट हो गयी .. यहाँ तक की भारत का इतिहास जो भी लिखा गया यानी आज जो भी इतिहास है सारा का सारा मुगलों के द्वारा ही लिखा गया क्योंकि बख्तियार खिलजी या नादिरशाह जैसो के नालंदा विक्रमशीला जैसे हजारो वृहद् ज्ञान-पुस्तक केन्द्रों (और उनके साथ लाखो भिक्षु ब्राह्मणों विद्वानों) को तो समूचा विध्वंस कर देने अपनी ही चिता में ६ माह जलते छोड़ने के बाद इस सभ्यता, धर्म, देश के लिए सोचने, अध्ययन करने या इतिहास लिखने लायक कोई सक्षम यानि ब्राह्मण बचा ही नहीं था!! तलवारों से हिन्दुओ को नष्ट करने के बाद उनकी लाशो पर अपने जंगली धर्म व अपने इतिहासकारों द्वारा नमक रगडा गया ..
दुर्भाग्य और भय का कोई और बड़ा उदाहरन हो सकता है..?
कितना विनाश हुआ है क्या हमारी बुद्धि इसको समझ पाती है? मेरी बुद्धि स्तंभित है पर मैं देख पा रहा हु... और यही देखने की आशा अपने देश वासियों से करता हु..I
हममे से अधिकतर को असलियत मालूम ही नहीं पर कई को मालूम है और कुछ को अंदेशा है ..फिर भी हम कुछ नहीं करते..
और वही न्रिशंसता क्या आज भी नहीं है? और यह हिन्दू नस्ल आज भी उतनी ही असहाय है.. और भीरु .
आज हिंदुत्व शब्द हमारे डर, कष्ट और असुविधा का कारण हो गया है..हिंदुत्व किसी को गर्व और मान से नहीं भरता.. आज तो हिंदुत्व के नायक भी नहीं हैं पर एक जो है उसको भी खुलकर समर्थन करने वाले दाये बाएं देखते हैं.. बिलकुल वैसे ही जैसे किसी बच्चे को, जिसने अपना सबसे बड़ा डर देख लिया हो, अपने साये से भी डर लगता है ..
नरेन्द्र मोदी "अखंड सोम" उस प्रदेश और उस जाति को पूर्ण रूप में प्रतिनिधित्व करते हैं जिसने मुसलमानी आक्रान्ताओं द्वारा नष्ट होकर और क्षति पाकर भी हमेशा हमेशा स्वयं को पुनर्स्थापित कर लिया..
पर ऐसा देश में हर जगह तो नहीं है? यह तो अपवाद है अन्यत्र सर्वत्र वही 'भूत' है..
आज भी वही संहार चला आ रहा है, कुछ नहीं बदला है बस आज वो आक्रान्ता पहले से भी अधिक उन्मुक्त, संपन्न और धृष्ट हैं और उनका साम्राज्य कहीं व्यापक है!
और हम अभी भी उन्ही की दयादृष्टि पर हैं.. हम आज भी उनके निशाने पर हैं अन्य सभी को तो भारत सरकार या फिर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनो और भारतीय (जाँच एजेंसियों, न्यायालयों)सुस्ती का साथ मिलने से वो सभी मुक्त हैं पर उनमे से कुछ तो हमारे शिकंजे में हैं ....आज अधिकतर आतंकी हमलो के अपराधियों का हमें पता नहीं है उनका भी नहीं जो बेनकाब हो चुके हैं !! (आश्चर्य नहीं है!?)
विभिन्न आतंकवादी जो भारत के विरुद्ध युद्ध रचने के आज अपराधी पाए गए है --
मोहम्मद राजा-उल-रहमान, अफज़ल पाशा, महबूब इब्राहीम, मिरुद्दीन खान, निजामुद्दीन, मुन्ना (ISC बैंगलोर बम विस्फोट); नूर मोहम्मद तंत्रे, परवेज़ अहमद मीर, फ़रोज़ अहमद भट, अतीक-उज़-जामा, रईस-उज़-जामा (निजामुद्दीन दिल्ली); अदिस मेदुन्जनिं -(अमेरिका); डॉ जलीस शकील अंसारी, शबीर अहेमद, मोहम्मद यासिर (बम्बई काण्ड); सयेद ज़बिउद्दीन अंसारी उएफ़ अबू जिंदाल, अबू हम्ज़ा (२००८ मुंबई बम विस्फोट); . हाजी बिलाल, अब्दुल रजाक कुरकुर...३१ अपराधी, (गोधरा); अबू हमजा (बम्बई); हाफिज मोहम्मद सईद -पाकिस्तानी (बम्बई) ; वलीउल्लाह (वाराणसी); अफजल गुरु (संसद हमला) कसाब-पाकिस्तानी बम्बई हमला .....
और अन्य आप स्वयं खोजें और सामने लायें.. पर इनके साथ हम क्या करेंगे.?
" कश्यप सर" यानि कैस्पियन सागर तक तो कभी भारत की केंद्रीय भूमि थी .. उसके पूर्व इंग्लैण्ड तक हिन्दू (आर्य) भूमि थी कालांतर में सिन्धु नदी से पूर्व रहने वालो को हिन्दू कहा जाने लगा.. सिन्धुस्थान में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू हो जाता है अगर उसकी आस्था अहिंदू नहीं है तो , इसलिए भारत देश का हर व्यक्ति है तो हिन्दू ..
करोडो सालो से वह भाई अभी तक हिन्दू ही था पर पिछले ५०० सालो में वो हमसे छीन लिया गया है.. दीखता वो हमारे जैसा है, उसकी जेनेटिक संरचना हूबहू हमारे जैसी है जो बस कुछ साल पहले तक हममे से एक था ... आज है तो ... पर आज वह ऐसी शत्रु संस्कृति और आस्था के चंगुल में है जो हिन्दू धर्म और संस्कृति के रक्त की प्यासी है ..
किसी और से क्या कर सकता हु पर दुःख भरी शिकायत बस अपने भाइयो से है.. हिन्दुओ से है.. क्या हमारी आँख कभी नहीं खुलेगी.. सब कुछ तो है आसपास आपको साक्ष्य देता हुआ, उत्तेजित करता हुआ, प्रेरित करता हुआ .. पर वो महान शौर्य, पराक्रम जो शिव, विष्णु, ज्यूस, बलराम (हरकुलिस), परशुराम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, शिवाजी, महारानाप्रताप जैसे महान योद्धाओ की भुजाओं में समस्त विश्व में व्याप्त था क्यों इतना शिथिल कुंद पड गया है..
हमने हार, तबाही, अपमान, दुर्दशा, अपनों से बिछोह, अपने धर्म का नाश, शर्म और आतंक का अत्यधिक लम्बा युग देख लिया..
आज हम अपनों का रास्ता रोकते हैं, आज हम अपनों को ही दबा कर संतुष्ट होते हैं, हम जाहिलियत का मुकुट पहन अपने दुश्मनों का काम आसान कर रहे हैं.. क्या हम कभी उस पुरुषोचित पराक्रम को देख पाएंगे?
हमारे पास बहुत ज्यादा समय नहीं है..
अत्यंत समीप यह तो दैविक निर्णय का समय है .....
संसार पुरुषो से चलता है कापुरुषो से नहीं... यह भीषण कोलाहल का काल है.. विश्व के समाप्त होने का नहीं "कुछो के" विश्व समाप्त होने का किंचित, काल है यह .....
पर हिन्दू कहाँ है?
हम कहाँ होना चाहते हैं? हम कैसा भविष्य चाहते हैं?
हमारा निर्णय, हमारे कदम हमारी जीजिविषा और हमारा पराक्रम ही हमारा भविष्य निर्धारित करेगा..
क्या हमें अपनी यह तेरह सौंवी वर्षगाँठ याद रहेगी?
आप सबको बधाई हो...................
हे आर्यावर्त .....................
अगर किसी ऐसे देश और उसके निवासियों का विनाश हो गया हो जो कभी समूचे विश्व के शासक रह चुके हो तो यह तो और भी दुखद होगा..
वह देश जिसकी मिलकियत विभिन्न क्षत्रिय शासको के राज में सुदूर पूर्व यानि कम्बोडिया, चाइना, जापान, न्यू गिनी से लेकर सुदूर पश्चिम यानि इटली, जर्मनी, इंग्लैण्ड तक थी I अगर वह देश जिसने सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात कर लिया हो जिसके पास विश्व का पहला मानचित्र हो, वो जिसके पराक्रमी शासको ने उत्तर अमरीका यानि मय सभ्यता (जिसे अंग्रेजी में माया सिविलाइजशन के नाम से जाना जाता है), ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका आदि महाद्वीपों तक नौका मार्ग से अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली थी और जिनके पास उन भूभागो की गहन जानकारी थी I
जिस सभ्यता ने विश्व की सर्वोन्नत मीमांसाओ और रचनाओ को जन्म दिया, जो भूमि विश्व के पहले मानवों को पालने वाला पालना बनीI जिस देश, सभ्यता ने विश्व के पहले वैश्विक ज्ञान केन्द्रों यानि काशी, जादुगुडा, नालंदा, तक्षशीला जैसे प्रथम विश्व विद्यालयों की स्थापना कर संपूर्ण विश्व को शिक्षित किया. जिनकी अन्वेषित, परिष्कृत और परिचालित विधियों और ज्ञान सामग्री को जानकर यह तथाकथित नव विश्व अपने अस्तित्व की पहली सीढियाँ चढ़ा.. जिस सभ्यता से चीनी, अरब, प्राचीन यूरोप, अफ्रीका- मिश्र, सुमेर, बेबीलोन(उत्तर प्राचीन काल में ) और अन्य क्षेत्रो ने अपनी अपनी संस्कृतियों का विकास किया I
जिस भारत देश ने अपने शौर्य, तकनीकी और ज्ञान से विश्व की पहली साम्राज्य को संपुष्ट किया जिस भारत के वीरो ने विश्व में प्राचीन नौ मंदिर स्थापित किये और वो सभी मंदिर आज अन्य सभ्यताओ, धर्म और आस्था के गढ़ (वेटिकन, जेरुसलम आदि) बन गए..जिसके वीरो ने सम्पूर्ण विश्व पर अपने चिन्ह छोड़ दिए (और जो आज भी पाए जाते हैं *) .. वो देश जो सही अर्थो में विश्व का पिता कहा जा सकता है आज किस प्रकार से अपनी दुर्दशा को प्राप्त हो गया है?
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किसने किया है ये सब?
कैसे यह देश जो सम्पन्नता, वैभव और उच्च परिष्कृत सभ्यता के सभी गुणों से सुशोभित था कैसे गुलामी, विनाश, विपन्नता, अनाचार और "धर्म" से रहित हो गया?
कैसे हुआ ये इसी देश में, के आज इसी एक देवभूमि सदृश्य देश जिसे उच्च राष्ट्रीय और नस्लीय पहचान का श्रेय आर्यावर्त के रूप में मिला था, विदेशी पराधीनता , विदेशी शिक्षा और विदेशी व्यव्हार ने हमारे लहू में स्थान बना लिया?
कैसे आज इसी एक भारत देश में अन्य कई देश पलते दिख रहे हैं? कैसे यह एक देश विदेशियों की संतानों को अपना दूध पिला रहा है??
pic 2. <img src="http://cdn.dipity.com/uploads/events/ceab5e9c001a088e3f9e7bfc8cc5307e_1M.png" alt="isl" />
कैसे हुआ ये? कब हुआ ये सब?
आज यह काल है आतंक की, हमारी गुलामी की बरसी की .. उम्मय्यदी नस्ल के इराकी खलीफा अल हज्जाज बिन युसूफ के भेजे लूटेरे मुहम्मद बिन कासिम ने धन, सम्पदा के महान खजाने जिसे वो निरक्षर, आतंकी "सोने की चिडिया" कहते थे, को लूटने और विनाश करने के लिए सबसे पहले सन ७१२ इसवी में इस अखंड भारत की सीमा में अतिक्रमण किया था.. दमिश्क के उम्मय्यादी खलीफा का पापी आक्रान्ता हिन्दू राजा दाहिर को क़त्ल कर मुल्तान के सोने के बने कई विशाल मंदिरों को खोदकर और हजारो हिन्दु खोपड़ियो के पहाड़ बना गया ..
उस तुर्क बिन कासिम के बाद सय्यिदो, लोधियो, मंगोलों,कुर्दों, किर्गिजो, तुर्कों, पारसियों तथा अन्य विदेशी अक्रमंकरियो* ने भारत को नेस्तनाबूद करने के लिए सैकड़ो आक्रमण किये i उस एक महादुष्ट , पापी और लालची आतंकी के बाद एक एक करके कई दुष्ट आते गए और हर जीत के साथ कई लाख मंदिर तोड़े गए, कई लाख -लड़ने वाले योद्धाओ, मंदिर पे पाए गए भिक्षुको और ब्राह्मणों, यहाँ तक की सामान्य निवासी(वयस्क, किशोरे व बालक) जिन्होंने धर्मान्तरण की अपेक्षा संघर्ष का चुनाव किया, आदि कई पुरुषो का सामूहिक नरसंहार किया गया, "चच नामा" (अल कूफी- अनुव. अलिअट और डाउसन) (एवं कई अन्य वृत्तान्त और ऐतिहासिक सन्दर्भ जैसे-- अल- बदौर की फुतुह-उल-बुदन बताता है की रेवर, ब्रह्मनाबाद, नगरकोट, राजकोट, जयपुर-सिंध, देवल, मुल्तान, लवपुरी(लौहौर), कुशपुरी\देवालय्पुर (करांची), थानेश्वर, दिल्ली, काशी, मथुरा ...... आदि आदि (हजारो ) नगरो के ऊपर चढ़ाई के बाद कितने (बुतपरस्त काफ़िरो के) कटे सिरों की झालर, हजारो कटे हिन्दू सरो की कालीन या दीवार नगर की प्राचीरो और मुख्या दरवाजो पर लगायी गयी.. नगर के समूल नाश के बाद कितने बच्चे गुलाम बनाने के लिए और कितनी स्त्रीया और बालिकाएं अरब के हरम और बाजारों में बेचने के लिए घोड़ो, उटो और खच्चरों पर लादकर ले जाई गयीं, कितने हजार टन सोना, जवाहरात और कीमती असबाब वापस अरबी सुल्तानों के देश ले जाया गया और कितने बुत्परस्तो की आस्था के केंद्र बुतों के टूटे हुए शीर्ष ढोकर खलीफा अरब, सल्तनत के केंद्र में पहुंचा दिए गए I
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जी हाँ, हमें बुरी तरह से कुचला गया था और पराधीनता में हमारी पहचान की एक एक वजह नृशंसता से मिटाई गयी है, हमारा वैभव पूरा लूट लिया गया, हमारे शक्ति केंद्र जड़ से सम्पूर्ण नाश कर दिए गए.. पाटलिपुत्र जो की भारतीय शौर्य, ऐश्वर्य, वैश्विक प्रभुता और वर्णीय अस्तित्व का एकमात्र विशिष्ट केंद्र था गुमनामी की लम्बी कालकोठरी में फेंक दिया गया I और तभी से विलुप्त हो गया भारत देश का संपूर्ण विश्व में अधिपत्य स्थापित करने वाले शक्तिपुंज का प्रकाश !!
आज ठीक १३०० साल हो चुके हैं !!
सिन्धुस्थान यानि सिन्धु देश यानि हिंदुस्तान की धरती को अपवित्र करने को उस पहले आक्रान्ता (जिसे अपने सातवें प्रयास में सफलता मिल पाई) ने सिन्धु नदी की सीमा पार करी और जो जून (ज्येष्ठ श्रावण)में होने वाले अपारगमनीय सिन्धु की जलराशी(बाढ़) के बदने से पहले ही विध्वंस करके और वैभव लूटकर निकल गया था पर अपने आगे आने वाले विनाश को रास्ता दिखा गया था!
बहुत समय हो गया.. पाटलिपुत्र काल निद्रा में लीन हो गया था.
और वो हर, वही दुर्दशा आज भी दिखती है, वही क्षतविक्षत देह इस वर्ण की आज भी दिखती है विदेशी पैबन्दो के सहारे अपने मर्यदाराहित, कुचले देह को असफलता पूर्वक छिपाते हुए!!
इन १३०० वर्षो में भारत विनष्ट हो चूका है, शायद भारतवासी भी नष्ट हो चुके हैं... भारत की हर पहचान नष्ट हो चुकी है और भारत का हर मान नष्ट हो चूका है.. भारत का धर्म तो कब का नष्ट हो चूका है .... कुछ बची खुची निशानियाँ बची हुई हैं जिन्हें आज के भारतवासी अपने ही हाथो से नष्ट कर रहे हैं और औरो के हाथो में बेच रहे हैं. जिस तरह हारने के बाद (आधुनिक काल में) जापान, जर्मनी, कोरिया या वियतनाम का उनके शत्रुओ द्वारा अंश अंश मिटा दिया गया उसी तरह भारत और भारतवासियों का नाम भी मिटा दिया गया I
पर वह देश तो स्वयं पैरो पर खड़े हो गए हैं... पर भारत देश आज भी उस प्रचंड अघात से उबर नहीं पाया!!
आज वह भयावह स्थिति बदली नहीं है.. आज भी एक बड़ी आबादी भारत को पराजित करने वालो के आदर्शो-इशारो पर चल रही है.. आज भी हर रोज हिन्दू यानि भारतीय को क़त्ल किया जा रहा है..
"धिम्मिओं" की डर, गुलामी, अंधकार, अज्ञानता और शर्म इतनी व्यापक हो चुकी है की हर आह्वाहन, हर रहस्योद्घाटन और हर पुकार को सहिष्णुता, शांति, करुणा इत्यादि के नारों, धार्मिक अकर्मण्यता, और नस्लीय गुमनामी के कई छद्म विशेषणों के पीछे छिपाया जा रहा है i आज हिन्दुओ को पुकारती हर आवाज को युद्ध्भेरी बता घृणित साबित किया जा रहा है, हिन्दू चेतना की पुकार को बस किसी एक वर्ग के विरुद्ध प्रचारीत किया जा रहा है I
देखिये और सोच्जिये किस देश में ऐसा होता होगा? जहाँ अकबर, हुमायूँ, बाबर, चंगेज खान, औरंगजेब, तैमूरलंग, तुगलक, खिलजी, शाहजहाँ, इत्यादि भारत देश के हत्यारों को आदर देकर हमने अपने माथे पर सजा रखा है उन सभी के नामांकित मार्गो पर चलते राजधानी दिल्ली के भारतीय राजनेता गर्व महसूस करते हैं और जिन्हें शिकन तक नहीं होती !!
मुगलों और मुस्लमान आक्रंताओ द्वारा अपहृत-अपभ्रंशित स्थलियो जो की हजारो साल से हिन्दू संपत्तियां थीं - जैसे चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य दवारा स्थापित लौह "विष्णुस्तम्भ" (जिसे मूलतः मथुरा से लाया गया था) का वेधशाला और मदिर संकुल जिसे कुतुबुदीन द्वारा थोपे विजय प्रतीक (क़ुतुब मीनार) से कलंक्रित कर दिया गया.. जैसे मुगलिया अकबर द्वारा मारवाड़ी सिकरवार राजाओ के सैकड़ो सालो से स्थापित सीकर महल और किले को 'फतेहपुर सिकरी' (और अन्य फतेहपुर) की पहचान से महिमामंडित कर दिया गया है.. जैसे तेजोमहालय को ताज महल , जैसे लक्ष्मनपुर या लखनपुर को लखनऊ बनाकर कलंकित कर दिया गया, जैसे <strong>काशी, अयोध्या, गया, मथुरा, उज्जयिनी, विजयानगरम, भोजपाल पुर (भोपाल),अहमदनगर, बरोदा, जामनगर, और गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र के हर नगर को पराधीनता सूचक नाम और पहचान दे दिया गया.. *
जिस तरह से कश्मीर, अफगानिस्तान (इरान और इराक में भी) इत्यादि में स्थित लाखो मंदिर ध्वंस कर दिए गए(निकटतम इतिहास में) जिस तरह से कश्मीर में स्थित मार्कंडेय मंदिर, शंकराचार्य मंदिर, खीरभवानी मंदिर जैसे अन्य २-३ हजार वर्ष पुराने मंदिरों की सुरक्षा सेना को करनी पड़ती है (मैंने खुद देखे हैं!) और जिस उदासीनता से भारतीय जनता कश्मीर के प्रति पेश आती है.. जिस तरह से २० लाख कश्मीरी हिन्दुओ को निकालने के बाद आज भी विधर्मीकरण जारी है और आज भी भारतीय-हिन्दू जनता नपुन्सको की भांति हाथ पर हाथ धरे बैठी है, जिस तरह से जेहादी-यानि मुस्लिम राष्ट्र और पाकिस्तानियों द्वारा समर्थित भारतद्रोही विचारधारा मुगालिस्तान* बनाने के अपने मंसूबे पर आमादा है और जिस तरह से यह आक्रान्ता मानसिकता बंगाल, उत्तर पूर्व, मध्य पूर्व भारत और दक्षिणी भारत में गढ़ बना चुकी है वही हारी हुई मानसिकता अभी भी अपने शत्रुओ को अनदेखा कर रही है !!!
उस गहरी चोट की अमित छाप अभी भी हमारी मानसिकता में है.
आज यह कायरता, विधार्मिता हमारा आभूषण बन गया है.. इस आभूषण में धर्मनिरपेक्षता, पंथनिरपेक्षता जैसे कई शब्दों के माध्यम से चमक लाते रहने के प्रयास चलते रहते है.
अपनी जातीय चेतना को पुनर्जीवित करने के भारतीय हिन्दुओ के हर प्रयास को भोंडा, हल्का और आपत्तिजनक रूप देने का प्रयास होता रहता है!
हम ठीक वैसा ही कर रहे हैं जैसा हमारे शत्रु चाहते थे, आज हमारी वही स्थिति है जैसी उनकी मंशा थी...
असहाय, सर झुकाए और मरे हुए ... कटे हुए सर
भारतीय हिंदी फिल्मे आज अजान और इस्लामी नज्बे अरबी धुनें गा रही हैं, इस्लामी आतंकवादियों की हौसलाफजाई करने वाली फिल्मे (खान) बस हमारी ही जमीं से दुनिया में पहुंचाई जा रही हैं - फिल्मो से हिन्दू संस्कार, हिन्दू धर्म, हिन्दू चिन्ह अदृश्य हो गए हैं पर "कुन फय्कुन" और सजदा जरूर नजर आ रहे हैं, और.......हम!.... हिन्दू मंदिरों में जनता आज स्वार्थ पूर्ती के लिए अधिक जुट रही है.. और हिन्दू धर्म मात्र शादी करने या मरने के समय ही याद किया जाता है या वो भी नहीं किया जाता.. आज हम ईसाई ताकतों द्वारा पोषित शिक्षण संस्थाओं में अपने बच्चो को पढ़ाते गर्व महसूस कर रहे हैं..
सडको पर बड़े बड़े ज्ञानी पैदा हो गए हैं जो कहते हैं "अरे धर्म वर्म में क्या रक्खा है" ... हमारे लिए तो सभी धर्म बराबर हैं.. "धर्म का तो नशा फैलात्य जाता है" .. "मन चंगा तो कठौती में गंगा".. "मैं तो नास्तिक हु".. इन सभी सुविधाभोगी महानुभावो को पूरी छूट है की वो हिन्दू धर्म की अपने विचार से व्याख्या कर उसका कैसा भी अपमान कर सकते हैं..
अहिंदू आबादी भयावह तरीके से संख्या बढ़ा रही है.. भारतीयों-हिन्दुओ को अपने ही मंदिर में पूजा करने से, घंटा बजाने से, अपने ही देश में तीर्थयात्रा करने से रोका जा रहा है... और तो और समग्र विश्व जैसे के पिता होने के बाद भी आज हिन्दू के साथ आतंकवादी शब्द लगाया जा रहा है.. समूचे विश्व में सूरज की तरह स्पष्ट इस्लामी आतंकवाद के बावजूद उसके संरक्षण के तर्क भारत की धरा से दिए जा रहे हैं "आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता" ....
पाकिस्तान से बंगलादेश तक मुगालिस्तान पर पूरे जिहादी जोश से काम चल रहा है और उत्तर प्रदेश में आई नयी सरकार के झंडे तले अभियान को और ताकत देने का काम शुरू हो चूका है.. पूरा देश जिहादी और ख्रिस्ती =ईसाई एजेंटो की गिरफ्त में आ चूका है.. खतरनाक स्थिति इतनी है की उत्तर पूर्वी भारत, सूदूर दक्षिणी, ओडिशा, कश्मीर में परचम फहराने के बाद आज इन दुस्साहसी झुंडो की पहुँच भारतीय धर्म के केंद्र बनारस तक हो गयी है!!
पर हमें खबर कहा... !! हमारे तो कानो में अणु बम विस्फोट हो जाये तो भी कुछ न सुनाई दे.. सब मालूम है सरकार को, और आपके प्यारे मीडिया को
पर भारतीय मीडिया लिप्सा और लौलुपता बाँट कर अपना द्रोही धर्म निभा रहा है.. और जर्मनी के लिए काम करने वाले और रूस की केजीबी के लिए काम करने वाले इटैलियन नाजी की चालाक बेटी की चरण पादुका पर परजीवित, अंग्रेजो द्वारा पैदा और पोषित राजनैतिक पार्टी की सरकार आज डंके की चोट पर रोमन क्रूसेडर क्रॉस (देखें चित्र) जो रोमन साम्राज्य द्वारा जारी किया गया था, उसे भारतीय सिक्को पर जारी कर भारत पर इटैलियन(ख्रिष्टि) प्रभुत्व को आगे बढ़ा रही है.. और हमारी यह सच्ची, प्यारी सरकार जिहादी फसल को तो इस तरह से बाटला-गोद में बिठाकर पाल रही है जिस तरह से शरीर पर खून पीने वाली जोंक पलती है ..I
pc 3<img src="http://www.coinsforsale.co.uk/images/SS1Norwich.jpg" alt="crus crs coin" />
pc 4<img src="http://indianrealist.files.wordpress.com/2009/04/10rupee-coin3.jpg?w=500" alt="ind cross" />
इतिहास के हर पन्ने पर मिल जायेगा की किसी देश में नागरिक देश द्रोहियों को सजा कैसे वीभत्स तरीके से दी गयी पर यह देश ऐसा अजूबा उदहारण है जहाँ विदेशी आतंकवादी जिसने सैकड़ो नागरिको की खुलेआम हत्या तो की ही देश की अस्मिता ही सड़क पर नीलाम कर दी पर फिर भी कसाब, मदनी, सलेम, तहव्वुर राना और अफजल गुरु जैसे बिना किसी शिकन के इसी देश की हवा में सांस ले रहे हैं जिसमे खुद को भारतीय कहने वाला हर बाशिंदा लेता है.. ये है नपुंसकता की ऐतिहासिक मिसाल जो शायद ही किसी और देश में मिले!!!
बर्बर शत्रुता की आंधी पूरे विश्व को हासिल करने के बाद आज भारतीय उपमहाद्वीप में आ गयी है इस आखिरी "चिड़िया" को भी अपनी तश्तरी में सजाने को कसाई अपने छुपे-खुले हथियार लेकर तैयार हैं .. हिन्दू धर्म के आखिरी निशान को भी पूरा मिटा देने को सभी आक्रान्ता सेनाएं "पौरुष" दिखाने को तैयार हैं उनका सामना लज्जित, स्त्र्योचित शिखंडी रूप कायरो से है जो लम्पटता के नए स्वांग रचने में मदमस्त हैं!!
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उनके लिए इस बार भी आयोजन दुरूह न होगा.. जब १३०० साल और ८०० साल पहले गजनी, गौरी, अलाउद्दीन खिलजी, बिन तुगलक, तैमूर लंग, चंगेज खान, शेर शाह सूरी, नादिर शाह, ऐबक, आदि ने आक्रमण किया था तब उनके सामने थी अत्यधिक संपन्न, विलासी शायद आलसी और लापरवाह भी, साथ ही सुविधाभोगी धर्म के पालन या धर्म से विमुख जाति जिसका उससे पहले कोई बाहरी शत्रु (तात्कालिक) नहीं था और उन विदेशियों ने एक बार में पूरे देश का संहार कर दिया ... कई और भी कारण थे * (आगे उल्लेख करेंगे!)
और आज भी लगभग स्थिति वही है या शायद उससे भी बुरी ...
आज भी एक पौरुषहीन जाति अपने स्त्र्योचित गुणों के साथ शिकार के रूप में सामने प्रस्तुत है I
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प्रोफ के एस लाल के अनुसार १००० से १५२५ इसवी तक मुगलों ने भारत की जनसँख्या ८ करोड़ कम कर दी थी ..
कोनार्ड एल्स्ट ने १० करोड़ हिन्दुओ के नरसंहार को इस <strong>विश्व का सबसे बड़ा महा संहार करार दिया है (निगोशिएशन्स इन इंडिया )..
आधुनिक काल में विनाश के प्रचंड साधनों (एम् १६, नापाम, सरीन, परमाणु बम्ब इत्यादि) को लेकर भी हिटलर जैसे महा शैतान ने भी उतने यूरोपी नहीं मारे(द्वितीय विश्व में नाजी सेना ने ५० लाख मनुष्यों का नामोनिशान मिटा दिया वही औपनिवेशी यूरोपी सेनाओ ने अमेरिका की १ करोड़ की नेटिव आबादी- मूल निवासियों का वृहद् खून खराबे में संहार कर दिया था!!) जितने हिन्दू इस्लामी हत्यारों ने भारत में मार दिए आधुनिक काल में यह संख्या <strong>९० करोड़</strong> मानी जा सकती है...!!!!!!
फ़्रांसिसी इतिहासकार अलैन दैनिएलु स्वीकार करता है की प्राचीन भारत का इतिहास, जिसमे समस्त विश्व केन्द्रित था, और साथ ही भारत की प्रतिष्ठा मुग़ल शासन के आने के बाद सदा के लिए मटियामेट हो गयी .. यहाँ तक की भारत का इतिहास जो भी लिखा गया यानी आज जो भी इतिहास है सारा का सारा मुगलों के द्वारा ही लिखा गया क्योंकि बख्तियार खिलजी या नादिरशाह जैसो के नालंदा विक्रमशीला जैसे हजारो वृहद् ज्ञान-पुस्तक केन्द्रों (और उनके साथ लाखो भिक्षु ब्राह्मणों विद्वानों) को तो समूचा विध्वंस कर देने अपनी ही चिता में ६ माह जलते छोड़ने के बाद इस सभ्यता, धर्म, देश के लिए सोचने, अध्ययन करने या इतिहास लिखने लायक कोई सक्षम यानि ब्राह्मण बचा ही नहीं था!! तलवारों से हिन्दुओ को नष्ट करने के बाद उनकी लाशो पर अपने जंगली धर्म व अपने इतिहासकारों द्वारा नमक रगडा गया ..
दुर्भाग्य और भय का कोई और बड़ा उदाहरन हो सकता है..?
कितना विनाश हुआ है क्या हमारी बुद्धि इसको समझ पाती है? मेरी बुद्धि स्तंभित है पर मैं देख पा रहा हु... और यही देखने की आशा अपने देश वासियों से करता हु..I
हममे से अधिकतर को असलियत मालूम ही नहीं पर कई को मालूम है और कुछ को अंदेशा है ..फिर भी हम कुछ नहीं करते..
और वही न्रिशंसता क्या आज भी नहीं है? और यह हिन्दू नस्ल आज भी उतनी ही असहाय है.. और भीरु .
आज हिंदुत्व शब्द हमारे डर, कष्ट और असुविधा का कारण हो गया है..हिंदुत्व किसी को गर्व और मान से नहीं भरता.. आज तो हिंदुत्व के नायक भी नहीं हैं पर एक जो है उसको भी खुलकर समर्थन करने वाले दाये बाएं देखते हैं.. बिलकुल वैसे ही जैसे किसी बच्चे को, जिसने अपना सबसे बड़ा डर देख लिया हो, अपने साये से भी डर लगता है ..
नरेन्द्र मोदी "अखंड सोम" उस प्रदेश और उस जाति को पूर्ण रूप में प्रतिनिधित्व करते हैं जिसने मुसलमानी आक्रान्ताओं द्वारा नष्ट होकर और क्षति पाकर भी हमेशा हमेशा स्वयं को पुनर्स्थापित कर लिया..
पर ऐसा देश में हर जगह तो नहीं है? यह तो अपवाद है अन्यत्र सर्वत्र वही 'भूत' है..
आज भी वही संहार चला आ रहा है, कुछ नहीं बदला है बस आज वो आक्रान्ता पहले से भी अधिक उन्मुक्त, संपन्न और धृष्ट हैं और उनका साम्राज्य कहीं व्यापक है!
और हम अभी भी उन्ही की दयादृष्टि पर हैं.. हम आज भी उनके निशाने पर हैं अन्य सभी को तो भारत सरकार या फिर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनो और भारतीय (जाँच एजेंसियों, न्यायालयों)सुस्ती का साथ मिलने से वो सभी मुक्त हैं पर उनमे से कुछ तो हमारे शिकंजे में हैं ....आज अधिकतर आतंकी हमलो के अपराधियों का हमें पता नहीं है उनका भी नहीं जो बेनकाब हो चुके हैं !! (आश्चर्य नहीं है!?)
विभिन्न आतंकवादी जो भारत के विरुद्ध युद्ध रचने के आज अपराधी पाए गए है --
मोहम्मद राजा-उल-रहमान, अफज़ल पाशा, महबूब इब्राहीम, मिरुद्दीन खान, निजामुद्दीन, मुन्ना (ISC बैंगलोर बम विस्फोट); नूर मोहम्मद तंत्रे, परवेज़ अहमद मीर, फ़रोज़ अहमद भट, अतीक-उज़-जामा, रईस-उज़-जामा (निजामुद्दीन दिल्ली); अदिस मेदुन्जनिं -(अमेरिका); डॉ जलीस शकील अंसारी, शबीर अहेमद, मोहम्मद यासिर (बम्बई काण्ड); सयेद ज़बिउद्दीन अंसारी उएफ़ अबू जिंदाल, अबू हम्ज़ा (२००८ मुंबई बम विस्फोट); . हाजी बिलाल, अब्दुल रजाक कुरकुर...३१ अपराधी, (गोधरा); अबू हमजा (बम्बई); हाफिज मोहम्मद सईद -पाकिस्तानी (बम्बई) ; वलीउल्लाह (वाराणसी); अफजल गुरु (संसद हमला) कसाब-पाकिस्तानी बम्बई हमला .....
और अन्य आप स्वयं खोजें और सामने लायें.. पर इनके साथ हम क्या करेंगे.?
" कश्यप सर" यानि कैस्पियन सागर तक तो कभी भारत की केंद्रीय भूमि थी .. उसके पूर्व इंग्लैण्ड तक हिन्दू (आर्य) भूमि थी कालांतर में सिन्धु नदी से पूर्व रहने वालो को हिन्दू कहा जाने लगा.. सिन्धुस्थान में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू हो जाता है अगर उसकी आस्था अहिंदू नहीं है तो , इसलिए भारत देश का हर व्यक्ति है तो हिन्दू ..
करोडो सालो से वह भाई अभी तक हिन्दू ही था पर पिछले ५०० सालो में वो हमसे छीन लिया गया है.. दीखता वो हमारे जैसा है, उसकी जेनेटिक संरचना हूबहू हमारे जैसी है जो बस कुछ साल पहले तक हममे से एक था ... आज है तो ... पर आज वह ऐसी शत्रु संस्कृति और आस्था के चंगुल में है जो हिन्दू धर्म और संस्कृति के रक्त की प्यासी है ..
किसी और से क्या कर सकता हु पर दुःख भरी शिकायत बस अपने भाइयो से है.. हिन्दुओ से है.. क्या हमारी आँख कभी नहीं खुलेगी.. सब कुछ तो है आसपास आपको साक्ष्य देता हुआ, उत्तेजित करता हुआ, प्रेरित करता हुआ .. पर वो महान शौर्य, पराक्रम जो शिव, विष्णु, ज्यूस, बलराम (हरकुलिस), परशुराम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, शिवाजी, महारानाप्रताप जैसे महान योद्धाओ की भुजाओं में समस्त विश्व में व्याप्त था क्यों इतना शिथिल कुंद पड गया है..
हमने हार, तबाही, अपमान, दुर्दशा, अपनों से बिछोह, अपने धर्म का नाश, शर्म और आतंक का अत्यधिक लम्बा युग देख लिया..
आज हम अपनों का रास्ता रोकते हैं, आज हम अपनों को ही दबा कर संतुष्ट होते हैं, हम जाहिलियत का मुकुट पहन अपने दुश्मनों का काम आसान कर रहे हैं.. क्या हम कभी उस पुरुषोचित पराक्रम को देख पाएंगे?
हमारे पास बहुत ज्यादा समय नहीं है..
अत्यंत समीप यह तो दैविक निर्णय का समय है .....
संसार पुरुषो से चलता है कापुरुषो से नहीं... यह भीषण कोलाहल का काल है.. विश्व के समाप्त होने का नहीं "कुछो के" विश्व समाप्त होने का किंचित, काल है यह .....
पर हिन्दू कहाँ है?
हम कहाँ होना चाहते हैं? हम कैसा भविष्य चाहते हैं?
हमारा निर्णय, हमारे कदम हमारी जीजिविषा और हमारा पराक्रम ही हमारा भविष्य निर्धारित करेगा..
क्या हमें अपनी यह तेरह सौंवी वर्षगाँठ याद रहेगी?
आप सबको बधाई हो...................
हे आर्यावर्त .....................
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