गुरुवार, 22 नवंबर 2012

तेरह सौंवी बरसी (आतंक, पराजय और शर्म की)... २

आइये कुछ पढ़ते हैं, तनिक लम्बा वर्णन होगा पर, पढ़ें तो ---
ये है
mugal akraman

भारत में इस्लामी जिहाद-इतिहास के पन्नो से


              मोहम्मद बन कासिम (७१२-७१५)

मोहम्मद बिन कासिम द्वारा भारत के पश्चिमी भाग में चलाये गये जिहाद का विवरण, एक मुस्लिम इतिहासकार  अल क्रूफी    द्वारा अरबी के  'चच नामा'  इतिहास लेख में लिखा गया है। अंग्रेजी में अनुवाद एलीयट और डॉसन


 सिंध  में जिहाद
सिंध के कुछ किलो को जीत लेनेके बाद बिन कासिम ने ईराक के गवर्नर अपने चाचा हज्जाज को लिखा था- ' सिवास्तान और सीसाम के किले पहले ही जीत लिए गये हैं। गैर-मुसलमानो का धर्मांतरण कर दिया गया है या फिर उनका वध कर दिया गया है। मूर्ति वाले मंदिरों के स्थान पर मस्जिदे खड़ी कर दी गई हैं, बना दी गई हैं।
(चच नामा अल कूफी : ए लीयट और डाउसन खड १ पृष्ठ १६४)

जब बिन कासिम ने सिंध विजय की , वह जहाँ भी गया कैदियों को अपने साथ ले गया और बहुत से कैदीयों को, विशेषकर महिला कैदियो को, उसने अपने देश भेज दया। राजा दाहिर की दो पुत्रियाँ- परिमल देवी और सूरज देवी- जिन्हें खलीफा के हरम को सम्पन्न करनेके लिए हज्जाज को भेजा गया था वे हिन्दू महिलाओं के उस समूह का भाग थीं, जो युद्ध के लूट के माल के पाँचवे भाग के रूप में  इस्ला मी शाही खजाने के भाग के रूप में भेजा गया था। चच नामा का विवरण इस प्रकार है- हज्जाज की बिन कासिम को स्थायी आदेश थे की हिन्दुओं के प्रति कोई कृपा (दया) नहि की जाए, उनक गर्दने काट दी जाएँ और म हिलाओं को और बच्चो को कैदी बना लिया जाए'                              (उसी पुस्तक  में पृष्ठ १७३)

हज्जाज की ये शर्ते और सूचनाएँ कुरान के आदेश के पालन के लीए पूणत अनुरूप ही थीं। इस विषय में कुरान का आदेश है- 'जब कभी तुमहे  मिले, मूर्ति पूजको का वध कर दो। उनहे बंदी बना ( गिरफतार कर) लो, घेर लो, रोक लो, घात के हर स्थान पर उनकी प्रतीक्षा करो' (सूरा ९ आयत ५) और 'उनमे से जिस किसी को तुम्हारा हाथ पकड़ ले उन सब को अ ल्लाह ने तु म्हें लूट के माल के रुप में दिया है।' 
(सूरा ३३ आयत ५८)


 रेवार  क विजय के बाद कासिम वहाँ तीन दिन रुका I तब उसने छः हजार आदमियों का वध किया। उनके अनुयायी, आश्रित,महिलाय और बच्चे सभी गिरफ्तार कर लये गये। जब कै दियो की गिनती की गई तो वे तीस हजार व्यक्ति निकले जिनमे तीस सरदारों की पुत्रियाँ थीं, उनहे हज्जाज के पास भेज दीया गया।          (वहि पुसतक पृष्ठ १७२-१७३)



 कराची का शील भंग, लूट पाट एवम् विनाश

'कासिम की सेनाय जैसे ही देवालयपुर (कराची) के किले में पहुँचीं, उन्होंने कत्ले आम, शील भंग, लूटपाट का मदनोत्सव मनाया। यह सब तीन दिन तक चला। सारा किला एक जेल खाना बन गया जहाँ शरण में आये सभी 'काफिर ' - सैनिको और नागरिक- का क़त्ल और अंग भंग कर दिया गया। सभी काफिर महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें मुस्लिम योद्धाओं के मध्य बाँट दया गया। मुख्य मंदिर को मस्जिद बना दया गया और उसी सुर्री पर जहाँ भगवा ध्वज फहराता था, वहाँ इस्लाम का हरा झंडा फहरानेलगा। 'काफिरो' की तीस हजार औरतों को बग़दाद भेज दिया गया।'
(अल- बदौरी  की फुतुह-उल-बुलदनः अनु. एलियट और डाउसन ख ड १)



  ब्रह्मनाबाद  म कत्ले आम और लूट

'मुहम्मद बिन कासिम ने सभी काफिर सैनिको का वध कर दिया और उनके अनुयायियो और आश्रितो को बंदी बना लिया। सभी बंदियों को दास बना दिया और प्रत्येक के मूल्य तय कर दिए गये। एक लाख से भी अधिक् 'काफिरो' को दास बनाया गया।'
(चचनामा अलकुफ : एलियट और डाउसन खड १ पृष्ठ १७९)


 सुबुक्तगीन  (९७७-९९७)
'
काफिर द्वारा इस्लाम अस्वीकार देने, और अपवित्रता से पवित्र करने के लिए, जयपाल की राजधानी पर आक्रमण करने के उद्देश्य से, सुल्तान ने अपनी नीयत की तलवार तेज की ।  अमीर लमघन नामक शहर, जो अपनी महान शक्ति और भरपूर दौलत के लिए विख्यात था, की ओर असर हुआ। उसने उसे जीत लिया, और निकट के स्थान, जिनमे काफ़िर बसते थे, में आग लगी दी , मुर्तिधारी मंदिरों को ध्वंस कर दिया और उनम इसलाम स्थापित कर दिया। वह आगे की ओर बढ़ा और उसने दुसरे शहर को जीता और नींच हिन्दुओ का वध किया; मूर्ति पूजको का विध्वंस किया और मुसलमानो की महिमा बढ़ाई।
समस्त सीमाओं का उल्लंघन कर हिन्दुओं को घायल करने और क़त्ल करने के बाद लूट हुई संपत्ति के मूल्य को गिनते गिनते उसके हाथ ठ डे पड़ गये। अपनी बलात विजय को पूरा कर वह लौटा और इस्लाम के लिए प्राप्त विजयो के विवरण की उसने घोषणा की। हर कसी ने विजय के परिणामो के प्रति सहमती दिखाई और आनन्द मनाया और अल्लाह को ध न्यवाद दिया।'
(तारिखी-ई-या मिनीः महमूद का मंत्री अल-उतबी अनु. एलियट और डाउसन ख ड २ पृष्ठ २२, और तारीख-ई-सुबुक्तगीन स्वाजा बैहागी, अनु. एलियट और डाउसन खड २)

islami attack

 गज़नी का महमूद (९७७-१०३०)
भारत के विरुद्ध सुल्तान महमूद के जिहाद का वर्णन उसके प्रधानमंत्री अल-उतबी द्वारा बड़ी सूक्ष्म सूचनाओं के साथ भी किया गया है और बाद में एलियट और डाउसन द्वारा अंग्रेजी म अनुवाद करके अपने ग्रन्थ, 'द स्टोरी ऑफ इण्डिया एज़ टोल्ड बाइ इट्स ओन हिस्टोरियंस के खड २ में उपलब्ध कराया गया है।'


 पुरुदगापुर (पेशावर)  में जिहाद
अल-उतबी ने लखा- 'अभी मध्यान्ह भी नहीं हुआ था की मुसलमान ने 'अललाह के शत्रु' हिन्दुओं के विरुद्ध बदला लिया और उनमें से पंद्रह हजार को काट कर कालीन की भाँति भूमि पर बिछा दिया ताकि शिकारी जंगल जानवर और पक्षी उन्हें अपने भोजन के रूप में खा सके । अल्लाह ने कृपा कर हमें लूट का इतना माल दिलाया है कि वह गिनती की सभी सीमाओं से परे है
यानि की अनगिनत है जिसमे पाँच लाख दास, सुदर पुरुष और महिलाय हैं। यह 'महान' और 'शोभनीय' कार्य बृहस्पतिवार मुहर्रम की आठवी ३९२ हिजरी (२७.११.१००१) को हुआ'
(अल-उत्बी की तारिख -ई-यामिनी,  एलीयट और डाउसन खड प ृठ २७)


 नन्दनापुर  की लूट
अल-उत्बी ने लिखा- 'जब सुल्तान ने हिन्द को मूर्ति पूजा से मुक्त कर दिया था, और उनके स्थान पर मस्जिद खड़ी कर दी थीं, उसके बाद उसने उन लोगो को, िजनके पास मुर्तिया पाई गयीं थी उन्हें दंड देने का निश्चय किया i असंखय, असीमित व अतुल लूट के माल और दासों के साथ सुल्तान लौटा। ये सब इतने अधिक् थे की इनका मूल्य बहुत घट गया और वे बहुत सस्ते हो गये;

और अपने मूल निवास स्थान में इन अति सम्माननीय हिन्दू पुरुषो को, अपमानित किया गया क वे मामूली दुकानदारो के दास बना दिए गये। उन्हें घोड़ो में बांध कर घोड़ो को भगा दिया गया, उन्हें खेतो और कोल्हुओ में बैलो के साथ जोत दिया गया, उनके अंगो को एक एक कर भंग कर दिया गया, उन्हें इतनी सजा दी गयी जिसके वो लायक थे.. यह तो अल्लाह की कृपा है उसका उपकार है की वह अपने पंथ को आश्रय और सम्मान देता है और गैर-मुसलमान को अपमान देता है I ' (उसी पुसतक में पृष्ठ ३९)



 थाने श्वर  में (कत्लेआम) नरसंहार
अल-उत्बी लिपिबद्ध करता है- 'इस कारण से थानेश्वर का सरदार अपने दुर्विश्वास में और अल्लाह की अस्वीकृति  में उद्धत था।
अतः सुलतान उसके विरुद्ध अग्रसर हुआ ताकी वह इसलाम की वास्त्विकता का आदर्श स्थापित कर सके और मूर्तीपूजा का मूलो छेदन कर सके। गैर-मुसलमान ( हिन्दू बौद्ध आदी) का रक्त इस प्रचुरता, आधिक्य व बहुलता से बहा की नदी के पानी का रंग परिवर्तित हो गया और लोग उसे पी न सके । यदि रात्रि न हुई होती और प्राण बचाकर भागने वाले हिन्दुओं के भागने के चिन्ह भी गायब न हो गये होते तो न जाने कितने और शत्रुओंका वध हो गया होता। अ ल्लाह की कृ पा से विजय प्राप्त हुई जिसने सर्वश्रेष्ठ पंथ इस्लाम, की सदैव के लिए स्थापना कर दी              (उसी पुसतक में पृष्ठ ४०-४१)


 फ़रिश्ता  के मतानुसार, 'मुहम्मद की सेना, गजनी में, दो लाख बंदी लाई थी जिसके कारण गजनी एक भारतीय शहर की भाँति लगता था क्योंकि हर एक सैनिक अपने साथ कई कई दास व दासियाँ लाया था।  (फ़रिश्ता : ए लियट और डासन -खंड I पृष्ठ २८)



islam repulsion

 सरासवा  म नर संहार
अल-उत्बी आगे लिखता है- 'सुलतान ने अपने सै निको को तुरत आ क्रमण करने का आदेश् दिया I  परिणाम स्वरुप अनेक गैर-मुसलमान बंदी बना लिए गये और मुसलमानो ने लूट के माल की तब तक कोई चिंता नहीं की जब तक उन्होंने अविश्वासियों, ( हिन्दुओं) सूर्य व अग्नि के उपासको का अनंत वध करके अपनी भूख पूरी तरह न बुझा ली। लूट का माल खोजने के लिए अल्लाह के मित्रो ने पूरे तीन दिन तक वध किये हुए अविश्वासियो ( हिन्दुओं) के शवों की तलाशी ली ...बंदी बनाये गये व्यक्तियों की संखया का अनुमान इसी त य से लगाया जा सकता है की हर एक दास दो से लेकर दस दिरहम तक में बिका था। बाद म इन्हें गजनी लेजाया गया और बड़ी दूर-दूर के शहर से व्यापारी इन्हें खरीदने आये थे।...गोरे और काले, धनी और निर्धन, दासता के एक समान बंधन म , सभी को मिश्रित कर दिया गया।'
(अल-उत्बी : एलियट और डासन - खड ii पृष्ठ ४९-५०)

अल-बरूनी ने लिखा था- 'महमूद ने  भारती की सम्पन्नता को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया । इतना आश्चर्य जनक शोषण व विध्वंस किया था की हिन्दू धूल के कानो की भाँति चारो ओर बिखर गये थे। उनके बिखरे हुए अवशेष निश्चय ही मुसलमानो की चिरकालीन प्राणलेवा, अ धिकतम घृणा को पोषित कर रहे थे।'
(अल बरुनी- तारीख-ई- हिन्द, अनु. अलबरुनीज़ इि डया, बाई ऐडवड सचाउ, लंदन, १९१०)



 सोमनाथ की लूट
'सुल्तान ने मंदिर में विजयपूवक प्रवेश किया, शिव लिंग को टुकड़े-टुकड़े कर तोड़ दिया, जितने में समाधान हुआ उतनी संपत्ति को आधिपत्य में कर लिया I वह संपत्ति अनुमानतः दो करोड़ दरहम थी। बाद में मंदिर का पूर्ण विध्वंस कर, चूरा कर, भूमि में मिला दिया, शिवलिंग के टुकडो को गजनी लेगया, जिन्हें जामी मस्जिद की सीढियों में लगाने के लिए प्रयोग किया' (ताकि इस्लामी नागरिक मूर्तिपूजको को धूल में मिलाने और उनका गौरव लूट लेने का स्वयं आनंद उठा सकें)
(तारीख-ई-जैम-उल-मासीर, द स्ट्रगल फौर ऐ एम्पायर-भारतीय विद्या भवन पृष्ठ २०-२१)


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 मुहम्मद गौरी   (११७३-१२०६) का कारनामा :
 हसन निज़ामी  ने अपने ऐतिहासिक लेख,  'ताज-उल-मासीर'  , में मुहम्मद गौरी के व्यक्तित्व और उसके द्वारा भारत के बलात् विजय का विस्तृत वर्णन किया है।
 युद्धो की आवश्यकता और लाभ के वणन  , िजसके बिना मुहम्मद का रेवड़ अधूरा रह जाता है अर्थात् उसका अहंकार पूरा नहीं होता, के बाद हसन नज़ामी ने कहा ' की पंथ के दायित्वो के निर्वाह के लिए जैसा वीर पुरुष चाहिये, वह सुल्तानों के सुल्तान, अविश्वासियो और बहु देवता पूजको के विध्वंसक, मुहम्मद गौरी के शासन में उपलब्ध हुआ; और उसे अल्लाह ने उस समय के राजाओं और शहंशाह में से छांटा था, ' क्योंकि उसने अपने आपको पंथ के शत्रुओं के मूलोच्छेदन  एवं सवंश् विनाश के लिए नियुक्त किया था। उनके हदय के रक्त से भारत भूमि को इतना भर दिया था, की कयामत के दिन तक यात्रियों को नाव म बैठकर उस गाढ़े खून की भरपूर नदी को पार करना पड़ेगा। उस ने जिस किलेपर आक्रमण कि या उसे जीत लिया, मिटटी में मिला दिया और उस (किले) की नींव व खम्भों को हाथियो के पैर के नीचे रौंदकर भस्मसात कर दया; और मूर्तिपूजको के सारे विश्व को अपनी अच्छी धार वाली तलवार से काट कर नर्क की अग्नि में झोंक दिया; मंदिरों, मूर्तियों के स्थान पर मस्जिदें बना दी ।'
(ताज-उल-मासीर : हसन नजामी, अनु. ए लयट और डाउसन, ख ड II पृ ठ २०९)


 अजमेर  पर इस्लाम की बलात् स्थापना
हसन नजामी ने लखा था- 'इस्लाम की सेना पूरी तरह विजयी हुई और एक लाख हिन्दू पलक झपक की तेजी के साथ नरक क अग्नि में चले गये...इस विजय के बाद इस्लाम की सेना आगे अजमेर की ओर चल दी जहाँ हम लूट में इतना माल व संपत्ति मिले की समुद्र के रहस्मयी कोषागार और पहाड़ एकाकार हो गये।
'जब तक सुल्तान अजमेर में रहा उसने मंदिरों का व विध्वंस किया और उनके स्थानों पर मस्जिद बनवाई ।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ २१५)


 देहली में मंदिरों का ध्वंस<
हसन नजामी ने आगे लिखा-' विजेता ने दिल्ली में प्रवेश किया जो धन संपत्ति का केन्द्र है और आशीर्वादो की नींव है। शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों को मंदिरों और मू र्तियों से तथा मू र्तिपूजको से रहित वा मुक्त बना दिया यानि की सभी का पूर्ण विध्वंस कर दिया। एक अल्लाह के पूजको (मुसलमानो) ने मंदिरों के स्थान पर मस्जिद खड़ी करवा दी, बनवा दीं I'                (वही पुस्तक पृष्ठ २२२)


 वाराणसी का ध्वंस (शीलभंग)
'उस स्थान से आगे शाही सेना बनारस की ओर चली जो भारत की आत्मा है और यहाँ उन्होंने ने एक हजार मंदिरों का ध्वंस किया तथा उनके नीवों के स्थान पर मस्जिदें बनवा दीं; इस्लामी पंथ केंद्र की नींव रखी।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२३)
हिन्दुओं के सामूहिक वध के विषय में हसन निजामी आगे लिखता है, 'तलवार के धार से हिन्दुओं को नर्क की आग में झोंक दिया गया। उनके सरों से आसमान तक ऊंचे तीन बुर्ज बनाये गये, और उनके शवों को जंगल पशुओं और पक्षियों के भोजन के लए छोड़ किया गया।'
(वह पुस्तक पृष्ठ २९८)
इस सम्बन्ध में मिनहाज़-उज़- सिराज़ ने लिखा था-'दुर्ग रक्षको में से जो बुद्धिमान एवं कुशाग्र बुद्धि के थे, उन्हें धर्मान्तरण कर
मुसलमान बना लिया किन्तु जो अपने पूर्व धर्म पर आरूढ़ रहे, उन्हें वध कर दिया गया।'
(तबाकत-ई-नसीरी - मिनहाज़, अनु. एलियट और डाउसन, ख ड II पृ ठ २२८)


 >गुजरात म गाज़ी लोग  (११९७)
गुज़रात की विजय के विषय में हसन निजामी ने लिखा- 'अधिकांश हिन्दुओं को बंदी बना लिया गया और लगभग पचास हजार को तलवार वारा वध कर नर्क भेज  दिया गया, और कटे हुए शव इतने थे की मैदान और पहाड़ियां एकाकार हो गयीं ।
बीस हजार से अधिक हिन्दू जिनमे से अधिकांश महिलाएं ही थीं, विजेताओं के हाथ दास बना दिए गये।  (वही पुस्तक पृष्ठ २३०)


 देहली का पवित्रीकरण वा इस्लामीकरण
'जब सु तान देहली वापस लौटा उसे हिन्दुओं ने अपनी हार के बाद पुनः जीत लिया था। उसके आगमन के बाद मूर्तियुक्त मंदिर का कोई अवशेष व नाम नही बचा। अविश्वास के अंधकार के स्थान पर पंथ (इस्लाम) का प्रकाश जगमगाने लगा।'
(वही पुसतक पृष्ठ २३८-३९)


 कुतुबुद्दीन ऐबक  (१२०६-१२१०)
हसन नजामी ने अपने ऐतीहासिक लेख ताज-उल-मासीर में लिखा था, 'कुतुबुद्दीन इस्लाम का शीर्ष है और गैर-मुसलमानो का विध्वंसक है .... उसने अपने आपको शत्रुओं -हिन्दुओं से - के धर्म के के मूलोच्छेदन यानी की सम्पूर्ण विनाश के लिए नियुक्त किया था, और उसने हिन्दुओं के रक्त से भारत भूमि को भर दिया ...उसने मूर्ति पूजको के सम्पूर्ण विश्व को नर्क की अग्नि में झोंक दिया था...और मंदिरों और मूर्तियों के स्थान पर मस्जिदें बनवा दी थीं।'
(ताज-उल-मासीर हसन निजामी अनु. ए लयट और डाउसन, खंड २ पृ ठ २०९)
'
कुतुबुद्दीन ने जामा मस्जिद देहली बनवाई और जिन मंदिरों को हाथियों से तुड़वाया था, उनके सोने और पत्थरो को इस मस्जिद में लगाकर इसे सजा दिया I'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२२)


इस्लाम का  कालिंजर  म प्रवेश
'मंदिरों को तोड़कर, भलाई के पवित्र आगारो,- मस्जिदों में परिवर्तित कर दिया गया और मूर्ति पूजा का नामो निशान मिटा दिया गया .... पचास हजार व्यक्तियों को घेरकर बंदी बना लिया गया और हिन्दुओं को तड़ातड़ मार (यंत्रणा) के कारण मैदान काला हो गया।                    (उसी पुसतक में पृष्ठ २३१)

'अपनी तलवार से हिन्दुओं का भीषण विध्वंस कर भारत भूमि को पवित्र इस्लामी बना दिया, और मूर्ति पूजा की गन्दगी और बुराई को समाप्त कर दिया , और सम्पुर्ण देश को बहुदेवतावाद और मूर्तीपूजा से मुक्त कर दया, और अपने शाह उत्साह , निडरता और शक्ति द्वारा किसी भी मंदिर को खड़ा नहीं रहने दिया ।'
(वह पुस्तक पृष्ठ २१६-१७)


 ग्वालियर में इस्लाम
ग्वालियर में कुतुबुद्दीन के जिहाद के विषय में मिन्हाज ने लिखा था- 'पवित्र धर्म युद्ध के लिए अल्लाह के, दैवी, यानी की   कुरान के आदेशानुसार धम शत्रुओ- हिन्दूओ-के विरुद्ध उन्होंने रक्त की प्यासी तलवारे बाहर  निकाल ली ।'
(टबाकत-ई-नासीरी ,  मिनहाज़-उज़- सिराज, अनु. एलीयट और डाउसन, ख ड II पृष्ठ २२७)
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 गुप्त वंश (260 BC  या ~ २०३ विक्रम संवत से ७०० AD या ६५० विक्रमी संवत तक)  के शक्तिहीन होने और भारतीय विद्रोही गुटों-राज्यों, जो वास्तव में उनके ही पूर्व सामंत या सेनाधिकारी रह चुके थे, के आपस में युद्धरत रहने के कारण (और अन्य कारन*) गुप्त वंशियो द्वारा स्थापित विश्व का महानतम साम्राज्य "आर्यावर्त" शून्य की स्थिति में खड़ा था जहाँ पिछले लगभग सहस्त्र वर्षो का अखंड भारत खंडित और अशक्त हो चूका था और विध्वंस को आसन्न था !!
एक भौगोलिक खंड जिसकी सीमायें विश्व के कई हिस्सों में थीं, एक साम्राज्य जिसने भारत यानि आर्यावर्त को अथाह ऐश्वर्य, रत्ना-आभूषण- सोना-हीरा एवं अन्य धातुओ, विश्व भर से जीती राशियों के कारण विश्व का सबसे संपन्न देश बना दिया था जब विश्व की ७५% से अधिक व्यापर पर भारत की पकड़ थी, नागरिक सुखी, धार्मिक या वास्तव में धर्म भीरु * (अन्यत्र लेख में वर्णित) थे भारत के इस आखिरी वैश्विक साम्राज्य के अशक्त (संपूर्ण नष्ट नहीं) होने से अत्यंत भंगुर दशा में आ चूका था जिससे मध्य एशिया और मंगोलों की सालो से नियंत्रण में रखी भूखी, नंगी बर्बर अतात्तायी कौम, जिसकी लालची नजरे पिछले २००-३०० वर्षो से इस सोने के देश जिसे उन लालचियो ने ( गरुड़*  से) "चिड़िया" बना दिया I
और फिर जो दौर प्रारभ हुआ तो तुर्क ईरान की सीमा के पार से, जो तात्कालिक भारत या  "आर्यावर्त"  का पश्चिमी छोर था और जो वास्तव में उन अभारतीय अन्य देशियो के लिए उस परम शक्तिशाली साम्राज्य आर्यावर्त का उनके उन्मुख पक्ष था (इसलिए ईरान नाम दिया गया आर्यः= आर्यन=आर्यान=आरियान= ईरान), नवांकुरित कबीले बारी बारी से इस देश का मांस नोचने को आक्रमण करने लग गए.. सैकड़ो सालो से उबल रही घृणा, लालच एवं ईर्ष्या की आग उनकी जंगली, खूंख्वार तलवारों में उतरकर कर भारत के हर नगर को मिटाने के लिए उद्धत हो गयी.. जिस आर्यावर्त एवं उसके अत्यंत संपन्न, परिष्कृत एवं उछ्शील निवासियों के बारे में सुन पढ़ कर सैकड़ो सालो से वे पिछड़े जंगली लालायित रहे थे जिसकी सम्पदा पर वे हमेशा से लालची नजरे गडाए बैठे थे जिसकी हर पहचान से उन्हें वितृष्णा थी जिसके नियंत्रण एवं प्रभुत्व से उनकी आत्माएं सालो से बिलबिला रही थीं, बौद्ध धर्म एवं हिन्दू-वैदिक धर्म के धर्म गुरुओं के सुदूर तक पहुँच यानि तुर्क(तुरग-)स्थान, कर्कस्थान-किर्गिस्तान, दक्षिणी रूस, दक्षिणी-पश्चिमी यूरोप तक होने से उनकी कुंठा एवं क्षोभ का पारावार न था.. उन्हें तो उस प्रचंड सर्वशक्तिमान साम्राज्य में एक कमजोरी की प्रतीक्षा थी I    उसके स्वयं ही ढल जाने की प्रतीक्षा थी!!!

एक बार वैदिक-हिन्दू राजा  दाहिर  को पराजित करने के बाद उन नीच लुटरो के लिए मानो खजाने का द्वार खुल गया... धन सम्पदा के स्वर्ग में म्लेच्छ, आततायी लुटेरो का अवैध प्रवेश हो गया.. लाखो की संख्या में मंदिर तोड़े गए कई हजार मंदिरों में प्रत्येक में १००० से ४००० मन तक सोना-चांदी-हीरे-रत्न जवाहरात निकले इन मंदिरों तक पहुँचने के पहले इन मुग़ल लुटेरो ने कई कई हजार एवं कई लाख हिन्दुओ को काट दिया फिर उनके कटे सिरों की लड़ियाँ बनायीं.. लाशो के सीने का खून निकाल कर नगरो के मध्य में कुण्ड बनाया.. कटे सिरों के छोटे पहाड़ बनाकर किलो के दरवाजे पर छोड़ दिए गए.. हिन्दुओ खासकर हिन्दू सैनिको क्षत्रियो एवं पुजारियों-ब्राह्मणों एवं अन्य महत्वपूर्ण नागरिको के कटे सिरों की झालरें बनाकर किलो की दीवारों पर नुमाईश के लिए छोड़ दी गयीं... उनके धडो को चील-कौवों एवं अन्य पशुओं के खाने के लिए छोड़ दिया गया... उन नगरो, जिनमे से कुछ का उल्लेख ऊपर हुआ है, में प्राप्य हर कीमती वस्तु वहशी लुटेरे मुग़ल सैनिको द्वारा लूटकर अपने रेहड़ में शामिल कर ली गयी एवं उसमे से तय हिस्सा खलीफा यानि मुस्लिम बादशाह को नजर करने के लिए कई कई हजार घोड़े-बैल-गधा गाडियों में अरब के लिए भेज दी जाती रहीं.. युवा-कमसिन स्त्रियों एवं पुष्ट युवक एवं बालको को क्रमशः हरम में एवं गुलामो की तरह प्रयोग करने एवं अरब एवं यूरोप के गुलाम बाजारों में बेचने के लिए बाँध बांध कर काफिलों में तुर्किस्तान को भेज दिए गए ....

हर एक हिन्दू प्रदेश छिन्नभिन्न कर दिए जाने के समीप से समीपतम होता गया... १५०- २०० सालो के अगले अंतराल पर ९६० इसवी से जो अगला दौर शुरू हुआ उसने सन १५२५  इसवी तक विश्व में नरसंहार किये जाने की महानतम संख्या को भी शर्मसार कर दिया (निगोशिएशंस इन इंडिया: लाल)...  मात्र ५२५ वर्षो में  साढ़े आठ करोड़ हिन्दुओ का संहार  कर दिया गया .. साढ़े आठ करोड़ हिन्दू ...कब? जब भारत की जनसँख्या १३-१४ करोड़ से अधिक नहीं थी और विश्व की जनसँख्या ही २० करोड़ से अधिक नहीं थी.. यानि आज की जनसँख्या की गणना से कोई ७०-८० करोड़ से अधिक हिन्दुओ का निर्दयतापूर्वक संहार हो गया.... ऐसा सामूहिक अल्पावधि मनुष्यों का नाश मानव की जानकारी में नहीं है!!! न हो सकती है!! 

४०० ईसापूर्व से प्रारंभ (मौर्य एवं तत्पश्चात) गुप्त वंशियो द्वारा स्थापित "अखंड भारत" जो काल महाभारत काल के बाद सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बन पाया था, जिसे  चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक एवं उसके बाद चन्द्रगुप्त प्रथम, महान समुद्रगुप्त , चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य सह्सांक, स्कंदगुप्त, कुमारगुप्त  से लेकर विष्णु-जीवित-हर्ष व पुरुगुप्त आदि (३०)प्रचंड योद्धाओ ने विदेशी अक्रान्ताओ-शक, हूण, यवन, मार्जार, सुंग, मुरुंड आदि से इस परम पवन आदि देव भूमि  भारत वर्ष  को सुरक्षित बनाये रखा पर उन महाभुजा विश्वविजयी वीरो के अवसान पश्चात् आए इन मुग़ल लुटेरो के तूफ़ान ने इस सभ्यता के शिखर देश को गुमनामी, पराजय, गुलामी, आतंक, नाश के गर्त में धकेल दिया..

इस आतंक की आंधी में <strong>ज्ञान-विज्ञानं, सम्पदा-ऐश्वर्य, भवन-महल-मंदिर, गुरुकुल-विश्वविद्यालय-मठ- आश्रम, किले-पुस्तकालय-शोध संसथान   इत्यादि से लेकर विद्वानों यानि  ब्राह्मण , शूरवीर योद्धा  क्षत्रियो  विशेषकर, एवं अन्य सभी हिन्दू नागरिको का नाश कर दिया गया मनुष्यों को उनके मूल धर्म-आस्था से विमुख कर दिया गया, उनकी नस्लीय पहचान के हर चिन्ह, उनके गौरव के हर अंश उनके अस्तित्व के हर हिस्से को समूचा ध्वस्त कर दिया गया ... बचने वाले कम ही थे.. कइयो को जान बचा कर  देश या हिमालयी व पठारी-वन क्षेत्रो में छुप जाना पड़ा..
 
हिन्दू सैनिको के मारे जाने गुलाम बना लिए जाने के पश्चात् हिन्दू महिलाओ के साथ जी भरकर हवस की पूर्ती की गयी, मुगली सैनिको को निरीह हिन्दू स्त्रियों-बालिकाओ के साथ खेलने कुछ भी करने के पूरी छूट थी, उनके साथ कई कई दिन तक चीरहरण चलता रहा बलात्कार होता रहा , बलात्कार के बाद उनके पेट फाड़ दिए गए, आंते निकल दी गयीं, हाथ पैर काट कर इधर उधर फेंक दिए गए..उन स्त्रियों के  जिनको बचाने वाला कोई नहीं था...   कई संपन्न घरो की स्त्रियों को खलीफा को नजर करने के लिए गुलाम बनाकर भेज दिया गया जिसमे से कई भीषण यात्रा के दौरान पीड़ा या मुग़ल सैनिको द्वारा उपभोग किये जाने के कारन मृत्यु को प्राप्त हो गयी और इस प्रकार भविष्य की अधिक अपमान और कष्ट से पहले ही मुक्त हो गयीं....

इसपर भी आज के तथाकथित प्रगतिशील प्रबुद्ध इतिहासकारों का कहना है की मुग़ल इस देश में प्रेमपूर्वक आए थे.. उन्होंने इस्लाम पंथ बड़े ही सहिष्णु- स्वतंत्र विधियों से फैलाया!! और क्यों नहीं कहेंगे क्योंकि वो उन्ही यूरोपिअनो की भाषा बोलते हैं जिन्होंने अरबियो से भारत के बारे में जाना ..उन्ही अरबियो से, जिन्होंने ऐसे अभागे देश का इतिहास लिखा ... और वही अंग्रेजो-यूरिपिअनो और मुगलों का लिखा हमारा इतिहास हम आज तक पढ़ रहे हैं..

लुटेरो मुग़ल आक्रान्ताओं ने  लाखो-करोड़ों भवन-किले-महल-मंदिर गिराए , पर साथ ही ज्ञान के हमारे विशिष्ट केन्द्रों यथा  विश्वविद्यालय, गुरुकुल, पुस्तकालय इत्यादि को भी जला डाला , हमारी बौद्धिक शक्ति और हमारे अस्तित्व के आधार ज्ञान के महत्वपूर्ण धरोहर - धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और परावैज्ञानिक पुस्तकों, पांडुलिपियों और उन्हें जानने पढने वाले विद्वान्-आचार्यो को भी नष्ट कर डाला   और,  मिटा डाला हमारे सारे लिखित इतिहास को  (लगभग) ...यहाँ जो भी प्रस्तुत है उस इतिहास वृत्तान्त का  एक छोटा अंश  है ... लुटेरो, हत्यारे मुगलों ने नहीं भारतभूमि को नेस्तनाबूद ही नहीं किया बल्कि इस हाहाकारी हत्याकांड, लूट और व्याभिचार को अपने इतिहासकारों से लिखाया भी.. कुछ भारतीयों-हिन्दुओं का भी लिखा है जो साजिशन कालकोठरी में डलवा दिया गया है... 
पर फिर भी हमारी दुर्दशा अपमान की कहानी समूचे विश्व को मालूम है ..इस देश की हर सम्पदा लूट खसोट कर विदेशी जंगली राज्यों में पहुंचा दी गयी ..  पर हमें अपना इतिहास नहीं मालूम ...कहते हैं अनभिज्ञता अत्यंत सुखकारी है... और, कितने सुखी हैं हम !!

बीते  १००० सालो में १२ करोड़ से अधिक हिन्दू अपने घरो में निर्दयतापूर्वक काट डाले गए ... आज की सांख्यिकी में यह संख्या  ९० करोड़ से ऊपर जाती है..  इतने हिन्दू इस अल्प अवधि में नष्ट कर दिए गए जितने कुल मनुष्य इस भूभाग में पिछले ५००० सालो में प्राकृतिक कारणों से भी नहीं मरे..  क्या हुआ होगा इन विगत ६०० सालो में जब इस देश के हर कोने में दर्दनाक आर्तनाद सुनाई देता होगा.. दर्द, अपमान, भय,  चीख पुकार .... आतंक!!
इतना बड़ा नरसंहार, इतने बेबस, हतप्रभ, आशंकित लोग...  कितनी अतृप्त आत्माएं.. .  कहते हैं हमारे पूर्वजो की आत्माएं हमें ऊपर से देखती हैं... क्या वो हमसे कुछ  चाहती होंगी..? क्या वो हमसे कुछ कहती होंगी?  क्या हमने कभी सोचा है? क्या वो खुश होंगी?
खुश होंगी या नहीं ..हमें क्या मालूम? हमें क्या मतलब?

क्या आज हम जिन्दा हैं? क्या हम कहीं हैं..?
हम हैं कहाँ हम तो अपने उस राष्ट्र-शरीर की छाया भी नहीं हैं... उस महा आघात ने इस राष्ट्र का अस्तित्व मिटा दिया.. उस महा आतंक ने हमारी चेतना को कंपा दिया.. हम विचारो, संवेदना से शून्य हो गए.. हमारा महान वैश्विक अस्तित्व समूचा मिटा दिया गया.. हम आंख उठाकर, सर उठाकर चलने लायक नहीं छोड़े गए.. और आज तक वही दशा है..

क्या हम उन्हें अपना पूर्वज मानते हैं? क्या हम कुछ सोच सकते हैं उनके बारे में? क्या हम कुछ कर सकते हैं... क्या हम कुछ करेंगे?

हमने अभी तक तो कुछ नहीं किया...........
.
हे आर्यावर्त !!

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

ये हार अन्ना की नहीं है…

 ANNA
एक किसी सत्तर साला किसान पुत्र जिसने राष्ट्रीय प्रतिज्ञा की खातिर ही देश के लिए भारतीय सेना में सेवा की, जिसने मात्र किताबी बातें ही नहीं की या देशभक्ति के हिंदी फ़िल्मी गीत नहीं गाए, या देह पर राष्ट्रीय चिन्हों की नुमाइश करके खोखले देशप्रेम की नुमाइश में अपना समय जाया नहीं किया बल्कि उसने रण क्षेत्र में उतर कर मातृभूमि के लिए शत्रु से लोहा लिया और गोलियां खाई I उस पचहत्तर साल के युवा बूढ़े ने मात्र सामाजिक विसंगतियों और भ्रष्टाचार का रोना ही नहीं गाया बल्कि मल की नाली में उतरकर अन्य की सहायता के बिना स्वयं ही उस कालिख को मिटाने का प्रयत्न भी किया I वो कोई फ़िल्मी प्रचार नहीं कर रहा था, नाही वो चुनाव जीतने के लिए भीड़ जुटा रहा था.. वो अकेले ही देश में व्याप्त कालिख को इंगित करने का प्रयास कर रहा था i वो अपने सुन्दर शरीर या अपनी अमीर कंपनी का प्रचार नहीं कर रहा था बल्कि चुनाव जीतकर बड़े संवैधानिक पदों पर किसी शहंशाह की तरह बैठकर अनैतिक मनमानी करने वाले दुराग्रही नेताओ को शाश्त्रीय राजधर्म का निर्देश देने के लिए राजघाट पर बैठा था उन नेताओ को जो यह भूल गये हैं की वो सत्ता के ऊँचे सिंहासनो पर मात्र जनता की सेवा के लिए भेजे गये हैं I
पर अगर नैतिक शिक्षा में हमारे पूर्वजो ने शास्त्र के साथ शस्त्र की महत्ता को स्वीकारा है तो वो युहीं नहीं हैं I अगर योगेश्वर कृष्ण ने धनुर्धारी अर्जुन को अपने धर्म च्युत संबंधियों और नैतिकता से निम्न बुजुर्गो पर शस्त्र उठाने का निर्देश दिया था तो वो बिना प्रयोजन तो नहीं ही होगा..
कोई चोर खुद ही को सजा के योग्य नहीं मान सकता, अगर अपराधी स्वयं ही अपराध के लिए सजा स्वीकार करने के लिए आवश्यक विवेक रखता हो तो प्रथम वो अपराधी ही क्यों हो? मनुष्य की प्रवृत्ति है अगर उसे दृष्टि से परे रख कर अपनी करने दी जाये तो वो धर्म ग्लानी या अपराध करेगा ही.. करोडो में किन्ही ५-१० उच्च शील धारी पुरुषो को छोड़ दें तो हर समाज में चरित्र से अशक्त मनुष्य जिसे सजा का कोई डर न हो या जिस पर न्याय का पाश पहुँचता न हो, या जिसे नर रहते हुए भी हरि जैसी स्वछंदता दे दी गयी हो वो भी असीमित अनियंत्रित शक्तिशाली अधिकारों के साथ तो ऐसे का पुरुषो का अपराध करना निश्चित है i
ऐसे लालची पुरुषो के समूह का जो महिलाओं के चोगो के पीछे छुप कर अपने कार्य कलाप करते हो तो अवश्य ही वे बड़े अपराधो को जन्म दे रहे होंगे. और ऐसा ही अब तक होता रहा और आज भी होता जा रहा है पर उन अपराधियों को आज भी जरा भी भय नहीं है.. वह दल शासन करना जानता है, वर्षो से निर्दयता पूर्वक इस बिचारे देश पर राज करता रहा है वह अपने शत्रुओ, राष्ट्र के नहीं, को कुचलना जानता है !! वो आज फिर विजयी है और दम्भ्पूर्वक अट्टहास कर रहा है..
अन्ना की टीम को अपने कदम पीछे खींचने पड़े हैं I कौन हारा है? और कौन जीता है? अन्ना हारा है या नहीं, बाबा रामदेव हारे हैं या नहीं या कोंग्रेस जीती है या नहीं …..ये मुझे नहीं मालूम, पर यह फिर से स्थापित हो गया की भारत वर्ष की नपुंसकता ही हमेशा जीतेगी.. कापुरुषो से भरी नरमुंडो की इस बस्ती में हमेशा उनकी कायरता जीतती रही है .. आज फिर से वही पददलित, दबी कुचली जाति जिसके मान, गौरव को हजार साल से जड़ से नष्ट किया जाता रहा है और जो जाति आज तक अपने पौरुष को जगा नहीं पाई वह जाति जिसे हारने और डरने की आदत हो चुकी है ..वो जाति जो अभी भी स्त्री देवताओ की पूजा करके किसी शक्ति को अपने अन्दर जागृत करना चाहती रहती है, वह जाति जो अभी भी आकाश से किसी अवतार के अवतरण की ही प्रतीक्षा में रहती है… वह जाति जो इश्वर की कल्पना छः या दस हाथो के रूप में ही करना चाहती है वह जो राष्ट्र नेताओ को अपनी मनघडंत बचकानी कल्पनाओ में ही ढूंढना चाहती है , वह जाति जो अपने पौरुष को कब का हार चुकी है … वो आज भी अपमानित होकर हार रही है!!!
यमन, सीरिया, मिश्र, लीबिया जैसे छोटे देश भी कहीं जागरूक हैं जहाँ सही और गलत का सामान्य जनता को भी भान है पर भारतदेश, जिसे कइयो ने ‘भारत-माता बना कर रखा है मानो नपुन्सको का जमावड़ा बन कर रह गया है! वो देश गरीब हो या छोटे हो पर एक मामले में इस देश से बेहतर हैं! यह देश ऐसा है जहाँ पुरुषो की शूरवीरता मात्र शयन कक्ष में दिखती है या फिर हिंदी फिल्मो के आदर्श नायको की तरह किसी स्त्री के लिए लम्पटता का प्रदर्शन करने में, स्थापित सामाजिक मूल्यों और धार्मिक मान्यताओ को तोड़ने में या फिर फूहड़ अनैतिक अवैध करतूत करने में !! हजार सालो से जूते खा रही इस नस्ल को आज भी नहीं मालूम की उसका शत्रु कौन है!
यही हालात किसी भी अन्य देश में हुए होते तो आज कोंग्रेस नाम की इस चीज का नामोनिशान मिट गया होता… पर जिस तरह से देश के दुश्मन आतंकवादी भी पाप करके जीवित हैं वैसे ही यह पार्टी भी अपराधियों, भ्रष्टाचारियो, देशद्रोहियों, आतंकवादियों को पालने के बावजूद अपनी राजसत्ता पर विद्यमान है!!
जिस दल की नेता भारत में विधवा होकर बिना किसी व्यवसाय के करते दुनिया की चौथी सबसे धनी राजनेता (बिना पद के राजनेता?) बनकर लगभग १८ अरब डौलर या पच्चास हजार करोड़ रुपयेकी संपत्ति बना लेती है, एक नाजी सिपाही के रूप में रूस और इटली के लिए जासूसी करने वाले और बाद में मिस्त्री-मेसन बनकर काम करने वाले पिता स्टेफैनो यूजीन मैनो की मुश्किल से हाई स्कूल पास बेटी अन्टोनिया मैनो (जिसका रूसी नाम सोनिया है!), जिसने गरीबी के कारण अंग्रेजी विश्वविद्यालय में वेट्रेस का काम किया और जिसके पास धन कमाने वाली कोई योग्यता या डिग्री नहीं और एक आकलन के हिसाब से जिसकी वार्षिक आय ५० लाख से अधिक नहीं आज कैसे विश्व के उन बड़े उद्योगपतियों की कतार में खड़ी हो जाती है जिन्होंने वर्षो की कड़ी मेहनत से वह दौलत बनायीं होगी.. पर इस महिला ने, जिसे इस देश की भाषा भी नहीं आती कैसे इतने धन की स्वामिनी बन जाती है जिसकी एकमात्र उपलब्धि (फिरोज)खान- (फर्जी गाँधी) परिवार के युवराज और तबके भावी प्रधानमंत्री से शादी कर लेना ही था ?!!
कैसे इस रूसी जासूस की बेटी से शादी करने के बाद भारत के सारे शस्त्र आवश्यकताओ की आपूर्ति रूस से होने लग गयी, किस प्रकार राजीव गाँधी के नाम 2 अरब पौंड की पहली दलाली की किश्त १८ साल पहले ही पहुँच जाती है! (जिसके सबूत भी उपलब्ध हैं!)
ऐसी क्षमता प्राप्त स्वामिनी नेत्री से युक्त इस महान पार्टी के नाम कई खरब अरब राष्ट्रीय लूटपाट का श्रेय है, इस दल के नाम क्रांतिकारियों को फं साने, भगत सिंह और अन्य सभी राष्ट्रवीर क्रांतिकारियों को मरवाने, सुभाष चन्द्र बोसे जैसे महानतम राष्ट्र नायको को अंग्रेजो की मदद से समूचे विश्व में अपराधी बनाने और फिर उन्हें गुमनाम मौत देने (अनुज धर की नयी किताब और भी खुलासे करती है!) अंग्रेजो की चापलूसी कर अधिकारिक रूप से भारत को ब्रिटेन का उपनिवेश स्थापित करने, “अभी भी भारत को ब्रिटेन का गुलाम बनाये रखने” और फिर भी किसी “तथाकथित स्वत्रंत्रता” का श्रेय लेकर भारत पर शासन करते रहने वाली इस पार्टी के सभी राज बाहर आ चुके हैं i
देश को अपने स्वार्थ के लिए बाँटने वाली इस पार्टी, और शायद अपने लालच के लिए गाँधी को भी रास्ते से हटाने वाली, लाला बहादुर शास्त्री, पाइलट, सिंधिया, वाई एसार रेडी इत्यादि कई विरोधियो की जान लेने वाली इस पार्टी के देश की सुरक्षा, देश की एकता देश की समृद्धि के लिए खतरा साबित होने के बावजूद, इस देश की जमीन एक बार नहीं कई कई बार हारने वाली, देश की सम्पदा शत्रु, दलालों और अपने नेताओ के हाथो में लुटाने वाली, विभाजनकारी शक्तियों और देशद्रोहियों के सामने घुटने टेकने वाली, नक्सलियों, आतंकियों को समर्थन देने वाली इस महान पार्टी को जानने के बावजूद.. हम नहीं चेतते!!
बस इसी कोंग्रेस की कृपा से यह देश आज भी इंग्लैण्ड का गुलाम बना हुआ है.. जीहाँ अपने सही पढ़ा यह देश आज भी इंग्लैण्ड के राजा का औपनिवेशिक गुलाम है!! और भारत का राष्ट्रपति उस अंग्रेजी राजा का पहला नागरिक-गुलाम !!!
स्विस बैंक और अन्य काले धन के स्वर्गो द्वारा जारी और सर्वत्र उपलब्ध कोंग्रेसियो की काली सम्पातियो सूची के बावजूद कैसे वो नेता-अधिकारी निश्चिन्त विहार कर रहे हैं?
इतने पाप करने के बावजूद इस पार्टी के पास कौन सी ताकत है इस देश पर बार बार राज करने की? किन ताकतों के बल पर भारत की सरकार विदेशी शक्तियों को व्यापार करने, धर्मान्तरण करने, सांस्कृतिक धरोहरों की लूट करने, राष्ट्रीय चिन्हों को मिटाने, भारत का वास्तविक इतिहास मिटाने, भारत-हिन्दू राष्ट्र के वास्तविक नायको को अपमानित करने, विधर्मी संस्कृतियों को हिन्दू धर्म पर काबिज करने और भारत को हराने दे रही है??
किस प्रकार हम इस पार्टी और सरकार के झूठ और तानाशाही को सहन कर रहे हैं?
संविधान सभा ने जब भीम राव अम्बेडकर के नेतृत्व में जब संवैधानिक व्यवस्थाओ का स्थापन किया था तब विधायिका, न्यायपालिका इत्यादि के रूप में देश की सेवा के लिए कर्मठ और आदर्श व्यक्तियों को ध्यान में रखकर ही इस तंत्र पर पूरा विश्वास किया होगा वो तो सोच भी नहीं सकते थे की आगे चलकर ऐसा भी हो सकता है की सत्ता के शीर्ष पर बैठने वाले भी महा अपराधी हो सकते हैं ! वो सर्वशक्तिमान सत्ताधारी चाहे जिस भी दल के हों बिना निगरानी और दंड भय के अपनी स्वाभाविक लोलुपता, राजनैतिक स्वार्थ व्यक्तिगत हित और मनमानेपन के वशीभूत होकर देश के हित के विरुद्ध भी जा सकते हैं.. उन्हें क्या पता होगा की जिन विदेशी बेडियो से हमने इस देश को मुक्त कराया है उसी किसी एक विदेशी हाथो में इस देश की सत्ता दे दी जाएगी और देश की सारी शक्ति चरित्रहीन, निपट गंवार अपराधी प्रवृत्ति के हाथो में चली जाएगी जो हत्या लूट जैसे संगीन अपराधो के दोषी होंगे I देश के प्रति आदर्श सेवा भाव तो छोडिये ऐसे राजनीतिज्ञ देश चलाने लग जायेंगे जिन्हें अपने दायित्व, धर्म का क्या अपने सामान्य आचरण का भी ज्ञान नहीं होगा!! इस तरह के लम्पट, लोलुप, दुश्चरित्र और विकारी यहाँ तक की बेकार स्त्रियों के हाथो में सत्ता की बागडोर थमा दी जाएगी और देश की अथाह संपत्ति और राष्ट्र का वृहद् नियोजन निपट निरक्षर और अक्षम व्यक्तियों के हाथो में होगा I और फिर यही खोखली नेत्रिया देश की लुटिया डुबोएंगी I किसे पता था?
आज जेलों में हम छोटी चोरी करने वाले को तो बड़े ठसक से ठूंस देते हैं पर पर देश का लाखो, हजारो करोड़ स्वाहा कर देने वाले धृष्ट अपराधियों को हम छूना भी नहीं चाहते..क्यों?? सत्तर साल पहले जो व्यवस्था में कमी रह गयी थी उसीका पशचाताप है लोकपाल और (शासन-सत्ता और नौकरशाही में) भ्रष्टाचार निरोधी व्यवस्था का संगठन! हममे से वोही इस व्यवस्था से डरते हैं जो खुद किसी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं पर ऐसे तो चंद ही लोग हैं बाकि पूरा देश इस कदाचार और उसपे न हो पाने वाली निगरानी से त्रस्त और दुखी है.. देश में गरीबो की संख्या इसीलिए बढ़ रही है क्योंकि कुछ चंद व्यक्ति जिनके हाथ में देश की सम्पदा है उसे अपनी संपत्ति समझ कर उसे लूट खा जा रहे हैं I
और गरीब, बेचारी भारतीय जनता के पास ऐसा कोई साधन नहीं जिससे एक बार वोट देने के बाद उन गलत करने वाले राजनेताओ पर नियंत्रण किया जा सके या उन्हें सजा दी जा सके! आखिर ऐसी शक्ति यदि जनता को मिल जाये तो हमें कैसी आपत्ति और इससे किसे डरना चाहिए? आखिरकार दो लाख अत्यधिक शक्तिसंपन्न और जनता की दृष्टि से स्वतंत्र सरकारी अधिकारी-कर्मचारी-नौकरशाह या नेता पर निगरानी रखना आसान है या फिर एक लोकपाल और दसेक सहयोगियों पर? आखिर किन्हें डर है सरकारी कर्मचारियों पर ऐसी निगरानी से? जो स्वयं भ्रष्टाचारी हैं उन्हें ही इस तरह की व्यवस्था से असुविधा होगी.
पर, वास्तव में यह व्यवस्था तो सत्ता एवं अधिकार प्राप्त व्यक्तियों पर और खासकर जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं उनपर निगरानी के लिए ही है I इस देश में ऊपर से ही भ्रष्टाचार की गंगा बहती है तो इससे नीचे भी अनैतिक आचार पर रोक लगेगी I
पर स्वयं को आदर्श कहने वाले हम्मे से किसको इस से कष्ट है? कौन परोक्ष रूप से इस भ्रष्ट सरकार का साथ दे रहा है??
जानबूझकर अपने आँखों, कानो और मुंह पर ताला लगाकर हम देश की करोडो अरबो खरबों की क्षति करने में उन महा अपराधियों का सहयोग कर रहे हैं I
जो स्वयं को हिन्दू या भारतीय कहते हैं, जो तथाकथित तौर पर अपने को धर्मावलम्बी मानते हैं जो अपने को राष्ट्रभक्त कहते हैं जो अपने घरो में बैठकर वेद, पुराण, गीता, रामायण और महाभारत पढने का दंभ भरते हैं जो स्वयं को पुरुष कहते हैं और उनको हाथो में चूड़ियाँ पहन लेनी चाहिए या फिर महा अग्नि जलाकर खुद का जौहर कर लेना चाहिए!!!
हजारो सालो से हारते रहने के बाद और क्या क्या हार देना चाहते हैं हम? शायद कुछ लोगो को यह आन्दोलन किसी एक पार्टी के विरुद्ध लग रहा हो या ग़लतफ़हमी लग रही हो पर, ऐसा नहीं है… सौ सालो से यह पार्टी कुछ अच्छा करने की जगह इस राष्ट्रीय क्षति को होते देखती रही, और देखना ही नहीं नेताओ ने तो जनता की संपत्ति को लूटना अपना पेशा बना लिया है.. पर, यह पार्टी अगर पैसा ही लूटती तो कोई बात नहीं थी पर इस देश ने तो भारत की आत्मा की भी हत्या कर दी है!*

इस देश के ८० करोड़ पुरुषो को स्वयं को पुरुष मानना छोड़ देना चाहिए.. ऐसे पुरुषो को पुरुष कहलाने का अधिकार नहीं है..
निस्वार्थ देश के लिए लड़ने वालो को रोज शर्मसार करने वाले और राष्ट्र भक्तो को रोज ही अपमानित करने वाले भारतीयों को जीवित कहलाने का अधिकार नहीं है!!
अन्ना को क्यों विवश होना पड़ा राजनैतिक विकल्प की ओर मुंह करने का? आखिर एक अकेला आदमी और क्या करता? वो मंच पर हथियार उठाकर तो संघर्ष नहीं छेड़ सकता था, उसने तो पूरी कोशिश की जनता को जगाने की, ये तो जनता को दायित्व उठाना था I आखिर क्यों नेताओ को ठीक करने के लिए हम नेताओं की तरह अंधी गली में घुसें? कोई तो हो जो बाहर रहकर इस व्यवस्था को सुधारने और गलत करने वालो पर निगरानी करने का काम करे !पर, हमने तो खुली छूट दे राखी है जिसको जैसे राज करना है इस देश पर करता रहे हम कुछ भी नहीं करेंगे! बस, अपनी गरीबी, नेताओ की चोरी, देश में व्याप्त बेरोजगारी और अन्य समस्याओं का रोना रोते रहेंगे.. खुद तो कभी उसे सुधारने की कोशिश भी नहीं करेंगे और जब कोई उसे सुधारने को नेतृत्व प्रदान करे तो भी उसका साथ नहीं देते.. इस देश की स्थिति भयावह है क्योंकि इसमें अब वास्तविक भारतीय वास्तविक हिन्दू नहीं बसते अब बस विदेशी विचारधारा और विदेशी भीख पर पलने वाले ही इस देश में जिन्दा हैं वोही बम्बई, बैंगलोर, पुणे, आसाम, कश्मीर इत्यादि जगहों पर हजारो की भीड़ के साथ आन्दोलन करते हैं वोभी भारत देश के खिलाफ! पर देश के दुश्मनों के खिलाफ लड़ने की हिम्मत किसीमे नहीं है!?
आखिर इस देश की क्षत्रियता कहा गुम हो गयी है क्या वो बस जातिवाद तक सीमित हो गयी है? क्षत्रियता राष्ट्र-समाज-जाति के लिए शस्त्र उठाने वाली जन शक्ति का नाम है जो जाने कब से इस देश से लुप्त हो चुकी है!!
कितने निर्लज्ज हैं हम जो ऐसे नेताओ को खुली छूट दे रखी है देश के खजाने की जमकर लूट मचाने को, जब उसी देश की सेना का एक एक सैनिक चंद रुपयों के वेतन के लिए देश की रक्षा करने में और उसी नेता की सुरक्षा करने में अपनी जान गँवा देता है … एक फौजी मात्र अपनी निष्ठां-धर्म और कर्त्तव्य के लिए इस देश के लिए अपने सुख, परिवार की सुरक्षा और तो और प्राण तक गँवा देता है और उसी देश का नेता उस राष्ट्रीय संपत्ति का जमकर दोहन करता है जिसे उसकी निगरानी मात्र के लिए छोड़ा गया है!
क्या हमारी सेना को ऐसे निर्लज्ज, निकृष्ट लालची नेताओ और फिर ऐसे कायर देशवासियों की सुरक्षा करनी चाहिए? कैसे कर सकती है और क्यों कर करेगी? क्या भारतीय सेना विदेशी घुसपैठियों, देश द्रोहियों, आतंकवादियों, महाभ्रष्ट अधिकार प्राप्त नेताओ और नौकरशाहों, अपने कर्त्तव्य से रहित नागरिको और अपनी सेना और अपने देश के नाम से रहित हम नपुन्सको की रक्षा करने के लिए है?
क्यों वह सेना सरकार द्वारा अपने बड़े अधिकारियो को दिए घूस, कमीशन के दबाव से अपने कर्त्तव्य से हट जाये? क्यों नहीं सेना बाहरी शत्रुओ के अलावा भीतरी शत्रुओ के सफाए के लिए भी कुछ नहीं करती? क्यों नहीं सेना का वह काम हम करते हैं?
क्या इस देश में कोई पुरुष नहीं बचा है?
कब तक हम अन्ना और रामदेव को अपमानित होते देखते रहेंगे? कब तक राजीव दीक्षित, भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस निर्दयतापूर्वक मारे जाते रहेंगे? हम कब अपनी वासनाओ से ऊपर उठेंगे? हम मुगलों द्वारा दी हुई उस कायरता से ऊपर कब उठेंगे? क्या एक हजार साल की दुर्दशा इतनी भारी है.. क्या अहिंदू भारतद्रोही अरबी मुगलिया संस्कृति इतनी हावी है की हम मात्र अपने बाहुबल पर अपने भविष्य का निर्धारण नहीं कर सकते?
क्या हमें अपने घरो अपने बिस्तरों की नरमी इतनी प्रिय है की राष्ट्रीय हित के लिए हम सडको पर भी नहीं आ सकते? शैतान की पूजा करने और पापियों की जयजयकार करने में हमें रस आने लग गया है? क्या हमारा कर्त्तव्य करने के लिए भी इश्वर को ऊपर से किसी और को भेजना पड़ेगा? क्या हमें ठीक पहचान है वो इश्वर का दूत देखने में कैसा होगा और कैसा नहीं ?

क्या हम भारत की मृत पड़ी लाश में राष्ट्रीयता की जान फूंकना चाहते हैं?
क्या हम इस देश की वास्तविक आजादी के लिए लड़ना चाहते हैं?
.
आखिर हम क्या चाहते हैं?
सोचिये…………………………………….. !!!

जनता की जिम्मेदारी

भारत देश सत्तर साल से स्वतंत्रता पा कर एक सम्पूर्ण गणराज्य बनाने की राह में चल चूका है. देश की जन संख्या सरकारी आंकड़ो के हिसाब से सवा अरब के पार जा चुकी है. अगर हम दुनिया के उन देशो के आंकड़ो पर नजर डालें जो सबसे पिछड़े हैं और उन देशो पर भी जो भारत के साथ ही स्वयंभू गणराज्य बने हैं तो हम पाएंगे की भारत कई सूचकांको में दुनिया में अव्वल नंबर पर हैइ भारत का नाम आज सबसे आगे इनमे आता है– कुल जनसँख्या, जन संख्या घनत्व, गरीबी सूचकांक, जनसँख्या में गरीबो का प्रतिशत, बेरोजगारी सूचकांक, मातृत्व मृत्यु दर, जन्म मृत्यु दर इत्यादि; अन्धता, मलेरिया, डाईबीटीज़, कैंसर, एड्स, ह्रदय रोग, दुर्घटना(मौत) इत्यादि लगभग २० बीमारियों में भी भारत प्रथम तीन में आता है, कुपोषण, जन सामाजिक अपराध, सांस्कृतिक धरोहरों की चोरी, प्रदूषण इत्यादि में हम दुनिया के सबसे गए गुजरे देशो के बराबर आते हैं जैसे बंगलादेश, सूडान इत्यादिI और भारत वर्ष, क्षमा करें इंडिया की अब तक की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि यानि भ्रष्टाचार की अपन जितनी भी बात करे वो कम ही है I आखिर नेताओं और राजनीती को पानी पानी पी पी कर कोसने वाले और कोई भी पहला मौका मिलते ही भड़ास निकालने से न चुकने वाले हम भारतीय देश में मौजूद हर समस्या के लिए पूरी तौर पर बस और बस नेताओ को दोष देकर अपनी जिंदगी में वही क्यों करने लग पड़ते हैं जो सालो साल से अभी तक हम करते आए हैंI कई दशको से जनसँख्या विस्फोट से होने वाले नुकसानों को जानने के बावजूद हमने कोई सीख नहीं ली है. और आज यह देश कुव्यवस्था, गरीबी से चौतरफा घिरे होने के बावजूद जन संख्या घनत्व में दुनिया में सबसे निम्न स्तर यानि अधिकतम संख्या (३८२) पर बैठा हुआ है I २% की दर से बढ़ रहा ये देश 2030 तक चीन को भी पीछे छोड़ देगा और सच्चाई ये है की भारत क्षेत्रफल में और आर्थिक विकास में चीन से कहीं पीछे है. तो आखिर इस देश का होगा क्या?
हर रोज सैकड़ो चैनलों पर, लाखो अखबारों, पत्रिकाओं के पन्नो में आजका मीडिया हर तरह का कूड़ा लोगो तक पहुँचाने में लगा हुआ है चाहे वो फिल्म, फैशन, टीवी पर अश्लीलता और अनैतिकता से भरे कार्यक्रम की अफीम हो या अपराध और अधर्म के महिमामंडन के अप-संस्कार. आजके युवाओं को न तो स्वतंत्रता संग्राम की सच्ची जानकारी है और न देश के लिए मर मिटने वाले स्वंत्रता सेनानी, बलिदानी क्रन्तिकारी आज के बच्चो के लिए आदर्श हैं. न तो इन तथाकथित युवा शक्ति को अपने देश की संस्कृति का पता है, न उन्हें हजारो सालो से स्थापित(और आज छिन्न भिन्न) असल धर्म का ही पता है(आचरण की बात तो दूर है) आज बस एक भारतीय युवा अमेरिकन बनना चाहता है या फिर अंग्रेज, कोई अन्य यूरोपियन या ऑस्ट्रेलियन .. भारतीयता से तो उसे शर्म आती है.. फिल्म के पर्दों पर वो कम से कम भूरे-भारतीय चेहरे देखना चाहता है और चेहरे ही नहीं आजका भारतीय तो कोई भी चीज भारतीय नहीं चाहता. पढता वो भारत देश में है और नौकरी करने के सपने विदेश के देखता है. ये भारतीय न तो अपने सांस्कृतिक ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में जानता है और नहीं उन धरोहरों को साफ़, सुरक्षित और सम्माननीय बनाने में कोई योगदान देता है I अभी भी एक औसत भारतीय अपने घर के बाहर सार्वजानिक स्थानों, स्कूल, बस स्टैंड, रेलस्टेशन, पार्को, सडको इत्यादि से लेकर पूजा स्थलों मंदिरों इत्यादि, नदियों के घाटो तक को मल मूत्र विसर्जित करके मलिन करने में जरा भी शर्म नहीं करता I यह भारतीय भौतिक गंदगी ही नहीं नैतिक गंदगी भी फैलाता है I यही एक सामान्य मासूम भारतीय जमीनी भ्रष्टाचार करने में भी पीछे नहीं रहता चाहे वो एक मामूली दफ्तर में फाइल बढ़ाने के लिए रिश्वत मांगने वाला बाबु हो, ऑफिस का दरवाजा खोलने के लिए चाय के पैसे वसूलने वाला चपरासी हो, आरटीओ पे करोडो कमाने वाला दलाल या अधिकारी हो,नुक्कड़ पे वसूली करता पुलिस वाला हो, कोई वकील या जज हो, सरकारी महकमे में काम करने वाला कोई भी कर्मचारी हो या फिर निजी क्षेत्र में व्यव्साइओ की काला बाजारी, मिलावट, कर चोरी में संलिप्तता हो या फिर प्रशांत महासागर जितना गहरा कार्पोरेट भ्रष्टाचार हो, ये तथा कथित सामान्य जनता बस नेताओ को गाली देना चाहती है और खुद सुधरना नहीं चाहती. न तो नागरिक दायित्वों, न धार्मिक संस्कारो की कोई परवाह, न देश के प्रति अपने दायित्वों का भान, न देश को साफ़-शालीन रखने की चाह, न देश को मजबूत देखने की इच्छा I न राष्ट्र का सौंदर्य बोध न राष्ट्र शक्ति बोध I अपने राष्ट्रीय धर्म से कोसों दूर और मौका मिलते ही, किसी भी चैनल पर अश्लीलता देखते, भरपूर शाही मनोरंजन करते, किसी चमकीली वेश्या यानि फ़िल्मी कलाकार या कोई देह परोसती मॉडल देखते, फ़िल्मी गानों से मनोरंजन करते, खाते पीते, अपनी ही पारिवारिक भोग में मस्त रहते हुए हम, टेलीविजन, चैनलों पर जी भर कर नेताओं को गाली देने और राजनीती के गुण दोष का बड़ा ही कलात्मक मान मर्दन करने में जरा न संकोच करने वाले हम वही पारखी दृष्टि स्वयं पर कब डालेंगे ?
आखिर इस जनता, जो अब पढ़ी लिखी भी है, बड़ी जागरूक है और इस अत्यंत समझदार मीडिया के प्रयत्नों के कारण महान ज्ञानी भी है, की भी भला कोई जिम्मेवारी है? राष्ट्र दायित्व के प्रति हमारी गंभीरता तो चुनावो में २०-45% वोटिंग से ही दिख जाती है उसमे भी कितने महा-ज्ञानी, पढ़े लिखे उच्च शिक्षा प्राप्त प्रोफेशनल या फिर अगर हम पूछे तो कितने फ़िल्मी कलाकार नजर आते हैं जो लम्बा प्रवचन देने को प्रचार आयोजन में तो दिख जाते हैं और फिर उनमे कितने ये अत्यंत जागरूक लगने वाले मीडिया वाले होते हैं ये हम सब को बहुत अच्छी तरह से पता है I अनिवार्य मताधिकार प्रयोग, राष्ट्रनिष्ठ आचार, नैतिक दायित्व के नाम पर मुंह बिचकाने वाले, राष्ट्र सुरक्षा और राष्ट्रीय हित के लिए अपने व्यक्तिगत सुख को न त्यागने वाले मात्र बड़ी बड़ी बातें करने वाले, फिल्मो, फ़िल्मी गानों, मटकती कमरों, दारू नशे में डूबे रहने वाले हम क्या कभी एक हिंदी फिल्म ‘स्वदेश’ के नायक की तरह ही अपने देश को खुद ही सुधारने- बनाने के लिए अपनी सपनीली-फ़िल्मी-व्यसन की दुनिया से नीचे आएंगे?
क्या दूसरो को दायित्व की याद दिलाते हम स्वयं के नैतिक दायित्व के विषय में भी गंभीर पहल करेंगे ?
हमें प्रतीक्षा है I

कपि-ल की डरावनी घुड़की

जब से ये देश आजाद हुआ है राजनीतिज्ञों को जैसे कोई एकाधिकार मिला हुआ है देश के हर महकमे का मालिक बन जाने का. मंत्री साहब का उस क्षेत्र या उसके आसपास के कार्यक्षेत्र से भी कोई नाता हो या न हो उसका एक-छत्र स्वामी बना दिया जाता है और अब तो ये परिपाटी बन गयी है नेता बनते ही, वाणिज्य, विमानन, कृषि हो या अन्तरिक्ष विज्ञान बस, एक चुनाव भर जीत लेने वाले को हर क्षेत्र का महाज्ञानी बना दिया जाता है और विशेषज्ञ जैसा मान दे दिया जाता है. और अब तो चिकित्सा शिक्षा, खनन, विज्ञान एवं तकनिकी और शिक्षा तक में भी किसी भी काठ के उल्लू को बिठा दिया जाता है पूरे गाजे बाजे के साथ और वो जंतु भी प्राकृतिक प्रज्ञान के साथ अन्याय करते हुए उस विषय-विभाग का सर्वनाश कर देता हैI इस देश की विडंबना है और जो वास्तिविकता में विनाश का सूचक है की शिक्षा के शेत्र में जो लोग हैं वो वास्तव में इन विभाग और देश हित दोनों के सबसे बड़े दुश्मन हैं.
जैसा की सुना गया है की पांच करोड़ में पुरानी दिल्ली(चां. चौ.) की अपनी सीट खरीदने वाला ये लम्पट वकील काले कपडे पहन कर काले कारनामे करने के बाद आज मानव संसाधन का विकास करने पहुँच गया है. राजनीतिज्ञों को अब इतनी खुली छूट मिल गयी है की राष्ट्र की हर सम्पदा लूटने चूसने के बाद, हर मानव मात्र का प्रयोग अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए अब तक प्रयोग करते रहने के बाद अब राष्ट्रीय सरोकार की बची खुची कुछ नींव की ईंटो का भी इस्तेमाल ये नेता अपनी चुनावी रोटियाँ सेंकने, अपना मैला राजनीतिक चेहरा चमकाने, तालियाँ बजवाने, अपने चेलो चपाटो के लिए खाने कमाने का इन्तेजाम करने और मात्र क्षुद्र लोकप्रियता पाने के लिए कोई भी मर्यादा तोड़ने में शर्म नहीं करते.
आखिर किया क्या है कपिल नाम (व काम) के मंत्री ने ?
इस जीव को लोगों के कष्ट, दुखो का बड़ा ख्याल है.. मंत्री साहब को बड़ा दुःख है उन विद्यार्थियो की निराशा से जो कोई परीक्षा पास नहीं कर पाते, वो जो स्कूल में पढ़ते भी नहीं या अत्यधिक प्रतिस्पर्धा होने के कारण अत्यंत लाभकारी परीक्षाओं में सफल नहीं हो पाते, बड़ा दर्दीला है उन जोशीले नौजवानों के कष्ट से जो कॉलेज का समय लुहेड़ाबाजी करने, या नेतागिरी चमकाने में पढाई को कानी आँख से भी नहीं देख पाते. माननीय मंत्री महोदय उन सहृदय, संवेदन शील, अथाह दयालु प्रकृति से युक्त मंत्री महानुभावो की जमात में शामिल हो जाते हैं जिन्हें बहुमत और ‘मत’ कई मील दूर से दिख जाता है. उन्हें पार्टी का धन भंडार भरने वाले उन धन पशुओ, नौकर शाहों, व्यवसायियो के निरक्षर समान, नाकारा, ऐयाश और आलसी पूतो का खास ध्यान होता है जिन्हें कोई भी वस्तु पाने के लिए मात्र इच्छा जाहिर करनी होती है और जो खुद तो कभी कुछ पा नहीं सकते. मंत्रियो को किसी और के पैसा कमाने से बड़ा कष्ट होता है खासकर वो जो उन्हें चढ़ावा देने के लिए बाध्य न हो. मंत्री महोदय को कोचिंग वालो से अत्यंत घृणा है.. इसलिए नहीं की ये परीक्षा और शिक्षा की मूल्यांकन व्यवस्था से धोखाधड़ी करते हैं बल्कि इसलिए की जनता की करोडो की भीड़ अरबो इनके पास भेंट स्वरुप चढ़ा आती हैI
कपिल जंतु ने बच्चो का बोझ कम करने के लिए हर तरह की परीक्षा को समाप्त करने का एलान कर दिया है ..क्यों? नहीं, नहीं इससे परीक्षा में फेल होने वाले विसाद में नहीं जायेंगे न इससे फेल होने वाले बच्चो के परिवारों का मनोहारी वातावरण कलुषित नहीं होगा.. ना जी, इससे बहुत अच्छे बच्चे, औसत बच्चे, चौपट विद्यार्थी का अंतर छिप जायेगा.. अच्छा फिर??
इस लम्पट मंत्री ने पैसे से ही सब कुछ ख़रीदा है इसलिए इसने देश भर में एक ही परीक्षा करवाने का बिना पूछे, बिना समझे एलान कर दिया..
क्योंकि अब बच्चो के कुछ हजार रुपये बच जायेंगे.. अच्छा ऐसा क्या?
आज लगभग हर परीक्षा में १० से ४० % सीटें नेताओं और उनके गुर्गो द्वारा बड़े ही व्यवस्थित ढंग से नीलामी कर दी जाती हैं यह कई अरबो का एक निश्चित धंधा है. और इसमें कैबिनेट मंत्री से लेकर परीक्षा माफिया और धंधेबाज गुंडे शामिल होते हैं I जब बोर्ड होने और कई मूल्यांकन परीक्षाओं के होते इतने “मुन्ना भाई” आते हैं तो सोचिये जब बोर्ड की निष्पक्ष मूल्यांकन व्यवस्था नहीं होगी तो क्या होगा? अब चूँकि विद्यार्थी का पहले से वास्तविक मूल्यांकन होगा नहीं तो सीधे मंत्रालय से ही सारी सीटो की बोली लग जाएगी. और जी, इन महान आत्माओं पर कोई उंगली उठाने वाला भी कोई नहीं होगा. क्योंकि अब तो सारे बच्चे बराबर हो गए — ५१ % भी बराबर और ६० % भी अच्छा I इसलिए सुयोग्य विद्यार्थियो की शिक्षा, उनकी परीक्षा करने के बाद अब नेता निर्धारित करेगा की किस बच्चे को डॉक्टर बनना है, किसे इंजिनीअर कौन अच्छा अधिकारी बनेगा कौन अच्छा मैनेजर. अब न कोई ऊँगली उठा पायेगा और न ही ऊँगली कर पायेगा.
और कोचिंग वाले? उनका धंधा जब ठप्प पड़ जायेगा तब ये रोते बिलबिलाते दौड़े मंत्री महोदय के पास जायेंगे I जैसे कभी कोक, पेप्सी पर बहाने से रोक लगाने वाले पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अम्बु मनी राम दौस के पास अरबो का प्रसाद लेकर ये बहु राष्ट्रीय कम्पनियाँ दौड़ी थीं और बस एक ही वर्ष पश्चात् आज हम जानते हैं की उनपर कोई प्रतिबंध नहीं है I इसी तरह से कोचिंग वालो को भी ठेका उठाने का लाइसेंस मिल जायेगा और नेता को अरबो खाने का एक और मौका!!! ये है शिक्षा (और सत्ता) में घुड़की का खेल!
अब इस भ्रष्ट जंतु की नजर आईआईटी जेईई की प्रतिष्ठित परीक्षा पर पड़ी है I आइवी लीग जैसी कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओ द्वारा मान्यता प्राप्त भारत के कुछ चुनिन्दा संस्थानों में शामिल भारतीय प्रौद्योगिकी संसथान आज देश की शान हैं. इस शानदार संसथान की विशिष्ट पंक्ति में शामिल होने वाले सफल पेशेवर छात्रो की अपेक्षा आज देश में उनकी संख्या ज्यादा है जो वहां तक पहुँच नहीं पाए (जो शायद करोडो में होंगे).. मेडिकल, आई आई टी में असफल इन्ही छात्रो का गोलबंद गिरोह ही आज कपिल जंतु के साथ मिलकर नए नए कुचक्र रच रहा है… देश की किसे परवाह है? देश है क्या चीज?
अब तो देश की हड्डी हड्डी बेच दी जाएगी… जाने कल (राज) हो न हो..
आइआइटी की संयुक्त परीक्षा में स्कूली बोर्ड परीक्षा के ४० % नंबर जोड़ने का विचार यु तो दूर से थोडा युक्तिसंगत लगता है पर उतना है नहीं. हर बोर्ड, हर प्रदेश का मूल्यांकन का अपना माप दंड है और अंक प्रतिशत देने की सीमा भी लम्बी है दुसरे, स्कूल में कुछ छात्रो के लिए कई बार व्यक्तिगत या सामाजिक रसूख के चलते अधिक अंक पाना बहुत आसान हो जाता है आश्चर्य ये है की कपिल साब उसी बोर्ड के अंको को शामिल करने की बात कर रहे हैं जिसको उन्होंने इसी साल समाप्त कर दिया है!!? इसलिए चालीस प्रतिशत अंक (शायद २५ % सबसे उपयुक्त हो !) शामिल कर भविष्य के अभियंता चुनना सही नहीं है और इन तरह के निर्णयों में पहले विशेषग्य मंडल या सम्बंधित संसथान से परामर्श लेना तो मानो इन नेताओं ने सिखा ही नहीं है. आज सभी आइआइ टी के छात्र और गुरु गण आन्दोलन रत हैं और मुखर विरोधी भी पर इन मोटी चमड़ीयो पर कोई असर होता दिख नहीं रहा I
देश में १८ केंद्रीय विश्व विद्यालय हैं और करीब ६०,००० अन्य विश्व विद्यालय और संसथान जिनमे डेढ़ लाख से अधिक उच्च शिक्षित आचार्य और करोडो विद्यार्थी हैं .. इन सभी संस्थानों में शिक्षा, शोध के लिए मिलने वाली सरकारी अनुदान व संरक्षण की बेहद कमी है और उससे भी बहुत ही कम प्रोत्साहन, पर इन कपिल साहब ने दिल्ली दक्षिणी(तुगलकाबाद एक्सटेंशन) में सैकड़ो वर्ग किलोमीटर क्षेत्र विदेशी विश्व विद्यालयों को पैठ ज़माने देने के लिए पहले से अधिग्रहण कर लिए हैं I यानि देश की मेधा का अपमान और शिक्षको को दरकिनार करके, अपने शिक्षा केन्द्रों को विश्व स्तरीय बनाने के स्थान पर, विदेशी शक्तियों को अपने व्यवसाय और अप -संस्कृति को फ़ैलाने का सीधा मौका दिया जा रहा है!!
सीबीएसई का कोंग्रेस और कम्म्युनिस्टो ने पहले ही बेडा गर्क किया हुआ है और अपनी विदेशी आका की विशेष इच्छा का पालन करते हुए दिल्ली में शिक्षा का स्तर इतना घटिया कर दिया गया है की दिल्ली विश्व विद्यालय के कोलेजो में अनठानबे प्रतिशत तो लड़कियां ही पाई जाती हैं.. देश की राजधानी दिल्ली में गणित और विज्ञानं जिसमे लडकिय न के बराबर नजर आती थीं उन विषयो को आधुनिकता और प्रयोग के नाम पर इतिहास, साहित्य जैसा बना दिया गया है और अब जिसमे लड़कियां और भोंदू लड़के रट रट कर ९९ % तक अंक पा जा रहे हैं.
ये एक पलायन वादी, यथार्थ से कोसो दूर रहने वाले, हारे हुए और अभी तक हमेशा हराए ही गए, चुनौतियों से भागने वाले, आलंकारिक, स्त्रीत्व से भरे एक कमजोर देश की पहचान हैं जिसने विदेशियों से आजादी तो पा ली है पर अभी न तो देश के रूप में खड़े हो कर चुनौतियों से लड़ने के लायक हो पाया है और न ही अपने लिए विशिष्ट व्यवस्था का ही निर्माण कर पाया है. ये देश फिल्म उद्योग और अन्य विकारो (भ्रष्टाचार आदि) के लिए तो दुनिया में कु-ख्यात हो गया है वहीँ शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे जनहित के सबसे प्रमुख मुद्दों को रसातल में पहुंचा कर इस देश के नेताओं ने देश का बंटाधार सुनिश्चित कर दिया है I मीडिया और छद्म बुद्धिजीवियों का इस इस स्थिति में पहुँचने के लिए बड़ा योगदान है और वास्तविक विशेषज्ञों को तो किनारे ही कर दिया गया है I
एक बाजारू, शोशेबाज समाज के लिए शिक्षा इत्यादि तो घाटे के ही सौदे हैं और न तो ये किसी के लिए चुनाव का मुद्दा है, न किसी का व्यक्तिगत आन्दोलन, न इस में ग्लैमर है न इसमें मसाला, न इससे टी आर पी बढ़ेगी, न इसमें चोरी की जा सकेगी न इससे कोई वोट बैंक सधेगा इसमें कुछ मिलेगा नहीं इसमें तो बस जायेगा..
हम अपने महाविनाश की तरफ तेजी से दौड़ रहे हैं…
कोई मानव तो कुछ कर नहीं सकता पता नहीं ईश्वर की क्या इच्छा है?!!

श्री श्री: भारत की शिक्षा व्यवस्था

आखिर हम शिक्षा को क्या मानते हैं? जिस तरह की कच्ची मानसिकता इस देश में व्याप्त है उससे आभास होता है शिक्षा पढाई या एक डिग्री नौकरी पाने का एक साधन मात्र है I
इस देश की सामान्य धारणा है है की हर व्यक्ति बराबर ही योग्य पैदा होता है, हमें लगता है की उम्र बीतने के साथ हर ज्ञान, योग्यता अपने आप ही आ जाती है यानी बाल सफ़ेद होने का मतलब ही ज्ञानी हो जाना है जिसका प्रतीक बस उम्र हो जाने पर ही किसी का भी सम्मान इत्यादि की परंपरा का होना है I व्यक्ति की योग्यता किसी एक क्षेत्र में हो सकती है या कोई सर्वथा अयोग्य भी हो सकता है -ऐसा सर्वसाधारण की समझ में नहीं है और स्वाभाविक भी है की हर कोई इस योग्य नहीं हो सकता की जिसे यह समझने का गुण पैदा होते ही या उसके बाद भी मिल ही जाये I पर हर व्यक्ति कुछ गुणों और दुर्गुणों के साथ पैदा होता है ये एक सार्वभौमिक सत्य है! और शिक्षा अपनी योग्यताओं को जानने पहचानने का एक जरिया भी है!
शिक्षा नौकरी पाने का साधन नहीं है I पर इस देश में शिक्षा कोई ज्ञान पाने के लिए नहीं की जाती, कम से कम अभी मोटे तौर पर देखा जाये तो जो भारतीय समाज है उसे देखकर यही लगता है.. अभी भी अधिकतर के लिए स्कूली शिक्षा बस कोई नौकरी पा जाने के लिए ही है.
और बड़े कौतूहल का विषय है की आज जिस तरह की शोचनीय स्थिति है वो उस भारतभूमि पर है जिसने समूची मानवता को शिक्षित किया है I ये कोई अलंकार नहीं है भारत वर्ष ने ही ५०० इसा पूर्व से लेकर ८०० इसा (या कहें ४०० विक्रमीपूर्व से लेकर ७०० विक्रमी संवत तक ) तक विश्व को सभी बड़े धर्म दिए चाहे वो इस्लाम हो, ईसाईं धर्म हो या तथाकथित ‘हिन्दू’ धर्म और उसके उपांग जैसे बुद्ध, जैन इत्यादि* I और उसके बाद यही ज्ञान शिक्षा अरब और प्राचीन यूरोप में पहुंची विदेशी यात्रियों, घुमंतुओं, आक्रमणकारियो, शिक्षार्थियों और धर्म प्रसारको जैसे विक्रमादित्य और अशोक के भेजे हुए धर्म प्रचारक और बाद में उनके किये लगातार धर्मस्थापन से!
भारत ने ही विश्व को पहले विश्वविद्यालय दिए हैं जिन्होंने विश्व के कई कई हजार छात्रो(हर साल) को ज्ञान की हर विधा में परिपूर्ण किया, भारत में ही कई ज्ञान क्षेत्रो, विषयो और विधाओं का प्रथम बार विकास हुआ.
नालंदा, तक्षशीला, काशी, विक्रमशिला जैसे लगभग दर्जन भर से अधिक विश्व विद्यालय विभिन्न अंतरालो पर शिक्षा दीक्षा का तात्कालिक विश्व में एकमात्र और बेहद सक्षम केंद्र रहे हैं और मात्र विश्व विद्यालय ही नहीं भारतवर्ष भर में लगभग हर गाँव में एक एक गुरुकुल हुआ करते थे जो अन्य कई छोटी पाठशालाओ से जुड़े होते थे… बस आज से ३०० साल पहले तक ही लगभग पौने आठ लाख गुरुकुल थे!
उनका क्या हुआ वो तो एक हृदयविदारक और हमारे जानने योग्य शर्मनाक घटना है!!
हड़प्पा मोहेन जोदाड़ो में यानी आज से ५५०० वर्ष पूर्व ही धर्म स्थल और शिक्षा स्थल होते थे जो आज खंडहर की मूरत में अब पाए गए हैं!
काशी, उज्जैन, अवन्ती, गया, कश्मीर और काबा*(जी हाँ) आदि आदि प्राचीनतम भारतीय नगर केवल शिक्षा केंद्र नहीं थे बल्कि सशक्त धार्मिक स्थल भी थे ! वो क्यों?
क्योंकि शिक्षा धर्म से अलग नहीं है.
शिक्षा विद्यालय में छात्रो को अनुशासित करती है और धर्म वयस्क नागरिको के लिए भी वही करता है! शिक्षा और आचरण यानि धर्म अलग अलग नहीं हैं! हम जो पढ़ते हैं वही तो करना चाहिए? नहीं? पर क्या आज ऐसा हो रहा है?
क्यों है ये दोगलापन जहाँ हम अपने बच्चो को पढ़ाते कुछ और हैं वो सोचते कुछ और हैं और हम उनसे आशा कुछ और करने की करते हैं?
शिक्षा कोई व्यवसाय या आर्थिक लाभ का माध्यम नहीं हो सकता(सरकार के लिए!) बल्कि देश की नींव तैयार करने का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र है ये! पर, इसका मतलब वो कत्तई नहीं निकाला जाना चाहिए जो कैमरे वाले मीडिया के भाई लोग समझा रहे हैं! शिक्षा का व्यवसायीकरण न हो का मतलब ये है की ये सरकार के परम प्रमुख पवित्र और पक्षपात रहित दायित्वों में एक है जहाँ कोई स्वार्थ न हो सिवाय अच्छी शिक्षा के I विद्यालयों को स्थापित करने के लिए भी पर्याप्त धन चाहिए और ये जिम्मेदारी भी “राज्य” या सरकार की है चाहे वो निजी व्यवस्थापको के हाथ में ही क्यों न हो. पर असल में क्या हो रहा है इस देश में?
क्या हम वास्तव में अपने महान ज्ञानी ऋषि मुनि पूर्वजो के सच्चे उत्तराधिकारी हैं? जवाब है नहीं !! बिलकुल नहीं..!
पहले तो हम देखें की क्या यह देश वास्तव में एक आदर्श शिक्षा प्रणाली को प्रश्रय दे सकता है? जवाब मिल जायेगा हमारे व्यव्हार से जैसे हम अपने शिक्षको के साथ करते हैं और फिर देखें कैसा सम्मान हम अपने शिक्षको या गुरुओ के साथ करते हैं और कैसा सम्मानपूर्ण व्यव्हार हम फ़िल्मी भांडों के साथ करते हैं I हर रोज सडको पर शिक्षक अस्थायी नौकरी पे काम करता हुआ अपनी नौकरी के लिए संघर्ष करते हुए डंडे और तिरस्कार से पीटा जाता है इ
शिक्षक के गंभीर दायित्व के लिए लोग सक्रिय और आकांक्षी हो ऐसी व्यवस्था हमने नहीं बनायीं है I तो जब हम बनायेंगे ही नहीं तो योग्य शिक्षक कहा से मिलेंगे?
अतः, हम गंभीरता से सोचें तो शास्त्रोक्त शूद्र और म्लेच्छ* ही आज हमारे आधुनिक भारतीय समाज में पूजित हैं ! (* अन्य लेख में)
हमारा ज्ञान, शिक्षा, शिक्षक, गुरु और धर्म के प्रति मौलिक प्रतिकार है!
आसपास नजर दौडाएं फिल्मो को देखें, समाचार पत्र टीवी चैनल या अन्य कोई प्रसार माध्यम हर जगह नायक है, कोई कमर मटकाने वाला भांड, छिछोरा, कोई परदे पर चमकने वाली ‘डर्टी’ नायिका या वेश्या, कोई माफिया, दबंग, गुंडा, तस्कर, घोटालेबाज, भ्रष्टाचारी या नेता आज का मीडिया हमारे बच्चो को यही सिखाता दिख रहा है की बस अब इन्ही लोगो के जैसा बना जाये और बस इन्ही से शिक्षा ली जाये. और आज देखें तो यही महानुभाव ही पूजनीय हैं क्योंकि इनकी सबसे बड़ी योग्यता पैसा है I और वहीँ, समाज का सबसे दयनीय व्यक्ति है एक शिक्षक! वो दुष्ट और भ्रष्टाचारी नहीं है. क्योंकि वो नियमो को तोड़ता नहीं, क्योंकि वो दोगला नहीं है वो जो पढाता है वैसा ही खुद करता भी है.. पर वो सम्मानीय नहीं है क्योंकि वो बिकाऊ नहीं है,पैसे के पीछे नहीं भागता*, क्योंकि वो अपने लिए अलंकार नहीं खरीदता I एक फ़िल्मी कलाकार बिना किसी विशिष्ट योग्यता के अरबो कमाता है, अनैतिक कर्म व आचरण दोनों करता है, समाज को कुछ नहीं देता पर मात्र आसानी से पैसे कमाने की योग्यता के कारन वो सबसे सम्मानित है और इस सबके ऊपर से, हर रोज गाँव मोहल्ले (बॉम्बे, दिल्ली, दुबई, मोरक्को इत्यादि) में एकानेक काले गंदे पैसे स चमकाए ख़रीदे मंच-अंच लगाकर खुद ही को पुरस्कार सम्मान भी बाँटता बटोरता फिरता है! और वहीँ, एक शिक्षक न सम्मानित है और न ही निर्वाह संपन्न और न ही सक्षम है समाज से उसके प्रति कृतज्ञता का भाव अर्जित करने में! क्यों हो?
आखिर शिक्षक क्या सिखाता है, जिसको जो बनना है वो तो ऐसे ही बन जायेगा क्योंकि जो बनना है उसके लिए पढाई कोई जरूरी थोड़े है! फ़िल्मी भांड, रैम्प का कैलेण्डर मॉडल, माफिया, तस्कर या यहाँ तक की पुलिस या नेता और खिलाडी बनाने के लिए भी शिक्षा कोई आवश्यक योग्यता में आती नहीं! और जब बिना पढ़े ही सबसे धनी और सबसे सम्मानित हो जाये तो कोई सचिन, शाहरुख़ स्कूल में मुंह पिटाने क्यों जायेगा ?
पर आज हमारे बच्चे इन्ही माध्यमो से शिक्षा पा रहे हैं इसके लिए सावधान रहने की अत्यंत आवश्यकता है!
आज हम बच्चो को कहाँ पढ़ा रहे हैं? ईसाई मिशनरियो द्वारा संचालित कुछ सौ साल पुरानी जन-व्यवस्थाओ द्वारा गढ़ी विदेशी शिक्षा पद्धति को भारतीय बच्चो में बाँटते पब्लिक स्कूल, विधर्मी-विदेशी इस्लामी शिक्षा देते मदरसे या फिर खिचड़ी शिक्षा देते सरकारी स्कूल! समूचे विश्व को दीक्षित करने वाले विश्व गुरु भारत देश को शिक्षा का पाठ पढ़ाने का जिम्मा आज अंग्रेज, पिद्दी के शोरबे, चड्डी पहने बच्चो की माफिक उछलते कूदते कुछ नवसंपन्न, नवउन्नत देशो के हाथ थमा दी गयी है !
क्या कर रहा है भारतदेश को पढ़ाने वाला सीबीएसई बोर्ड, क्या कर रहे हैं आईसीएससी बोर्ड या अन्य बोर्ड? क्या कर रहे हैं भारत के उच्च शिक्षा के नियामक सरकारी संस्थान?
मुगलों ने पहले इस देश से धर्म (आर्य धर्म या हिन्दू धर्म) का विध्वंस कर दिया और बस दो सौ साल पहले अंग्रेजो ने शिक्षा, गुरुकुलो और ज्ञानकेन्द्रों का सुनियोजित तरीके से “(अंग्रेजी-करण)मैकाले“करण कर दिया !!
सन ११९२ से विध्वंस झेलते और पिछले बस ५०० सालो में हमने वो सब गँवा दिया जो १०५०० सालो में हमने स्थापित किया था.
और आजादी के बाद जब आवश्यकता थी फिर से उसी अखंड भारत को खड़ा करने की तो कोंग्रेस की मौकापरस्त, अंग्रेजो की दलाल सरकार ने स्थापित कर दिया एक ऐसा कूड़ा और खिचड़ी शिक्षा तंत्र जहाँ विद्यार्थी स्वयं में भारतीयता का विकास नहीं करता वो अपने अन्दर बोता है एक ब्रिटेन, अमेरिका, एक रूसी संघ, चीन, एक इस्लामिक देश कोई अरब या पाकिस्तान या फिर एक भारतीय बच्चा अपने अन्दर विकसित करता है “इंडिया” को!!! और ऐसी शिक्षा व्यवस्था जो बनाती है अमेरिकी और यूरोपीय फैक्टरियों के मजदूर और विदेशियों के लिए विदेशी सोच वाले भारतीय कामगार I
आज भारत की सरकारी शिक्षा एजेंसी अंकुरण कर रही है उन्ही भूरे अंग्रेजो का “जो दिखने में तो भारतीय हो पर सोच, नैतिकता, आचरण और निष्ठां में हो पूरे अंग्रेज” (लॉर्ड मैकाले १८३६, ब्रिटेन की संसद), आज भी यह शिक्षा वैसे ही भारतीयों को रोज तैयार कर रही है जो भारत को कत्तई नहीं जानते उन्हें सरोकार है फ़्रांस की क्रांति से उन्हें मतलब है रूस की क्रांति और ग्रीक, लैटिन या रोमन आदर्श, संस्कृति और मूल्यों से!! भारतीय किताबें गुरु नानक देव, महाराणा प्रताप, शिवाजी गुरु तेग बहादुर को भगोड़ा बताती हैं, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, खुदीराम, रासबिहारी, अशफाकुल्ला को आतंकवादी बताती हैं I इस भारतीय इतिहास को पढ़कर किसी को भी भारत या भारतीयता पे गर्व नहीं होता, न कोई जुडाव होता है! क्या हमें ये मालूम नहीं है?
इस सरकार ने भारत को अभी सन सैंतालिस को पैदा हुआ एक नवजात राष्ट्र बना दिया है जिसकी अभिभावक और जननी कोंग्रेस है और नाजायज़ बाप इंग्लैण्ड!!
ये किताबें मुगलों जैसे विदेशी आक्रान्ताओं को महिमामंडित करती हैं जिन्होंने भारत से भारत को ही मिटा दिया अविस्मर्णीय अघात दिए, पर यही किताबे भारतीय नायको को याद भी नहीं करती उनको आदर्श के रूप में स्थापित करना दूर की बात है!
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, समुद्रगुप्त, पुरु, शिवाजी, महाराणा प्रताप, राणा सांगा, पृथ्वी राज चौहान, कुमारगुप्त, चाणक्य, चन्द्रगुप्त मौर्या, ऋषि कश्यप, पाणिनि, पतंजलि, कालिदास, वेताल, युद्धिष्ठिर जैसे अनगिनत वास्तविक भारतीय नायको की चर्चा की जगह हमारी शिक्षा सिकंदर, अकबर, औरंगजेब, हुमायूँ , बाबर, खिलजी, शेरशाह सूरी, तुगलक आदि को महान एवं सहृदय भारतीय साबित करती है ! ये जितना शर्मनाक और दुखदायी है उतना बड़ा बस ब्रह्माण्ड ही हो सकता है!
वास्तव में आज सरकारी स्कूली शिक्षा मात्र कम्मुनिस्ट इतिहासकारों, चिन्तक-लेखको और विदेश प्रशिक्षित अन्वेषकों की प्रयोगशालाएं बन गयी हैं जो या तो भारतीयों को रशियन, चीनी या फिर रोमन नागरिक बनाने पर तुली हुई हैं या फिर अभारतीय अरबी निष्ठावान. और उस विध्वंस और अपसंस्कृत नाश से बचाने हेतु भारतीय मूल्यों और धर्म की पुनर्स्थापना का विरोध “भगवाकरण” आदि कुत्सित नामकरण संस्कृति से किया जाता है!
समूचे देश में ये शिक्षा पद्धति गहरे और अपरिवर्तनीय नुकसान पर नुकसान करती जा रही है .. एक तरफ ये विधर्मियो को प्रोत्साहित कर रही है वहीँ राष्ट्र द्रोही पृथकतावादी कुटिल कुचक्रो(कश्मीर, असम, आंध्र, ओरिसा, तमिलनाडु आदि में !!) को बढ़ावा दे रही है और इसलिए यह शिक्षा पद्धति पंगु है देश को नक्सली और अन्य विभाजनकारी दुराग्रही शक्तियों से बचाने में!! और शायद यह शिक्षा मदद कर रही है इस माओवादी नक्सली विकृति को बढ़ाने में!!
कहते हैं, ज्ञान (या शिक्षा) हमें उस अज्ञात वृहद् सर्वव्यापी तक ले जाती है जो हमारे लिए अप्राप्त्य है !!
शिक्षा मात्र नौकरी पाने का माध्यम नहीं है ये कारक है जातक के अपनों शक्तियों और योग्यताओ को उभारने का! शिक्षा माध्यम है धर्म, नैतिकता, चरित्र स्थापित करने का I (हो सकता है अधिकतर भारतीयों को इन शब्दों के सही अर्थ न मालूम हो, पर यह जानना आवश्यक है.)
इसलिए उच्च या प्रोफेशनल शिक्षा में शायद कम पर प्राथमिक शिक्षा में सर्वदा उचित धार्मिक, सामाजिक, नैतिक प्रतिमानों के अनुकूल मूल्यों का निषेचन किया जाना चाहिए!
नक्सलवाद की समस्या के मूल में इस के अलावा अन्य कई और कारण भी हैं जैसे दिल्ली सरकार की इसके प्रति बेपरवाही और मूक प्रोत्साहन, कुछ तथाकथित बुद्धजीवियो और कम्म्युनिस्टो द्वारा इसके प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन या फिर कुछ भारत विरोधी विदेशी, विभाजनकारी शक्तियों द्वारा इस द्रोही तंत्र को मिल रहा पोषण !
आज हम एक खिचड़ी संस्कृति, दिग्भ्रमित शिक्षा, भ्रष्ट आचरण और देश द्रोह को फ़ैलाने वाली शिक्षा अपने बच्चो को दे रहे हैं और यही कारण है इस देश की दुर्व्यवस्था और यहाँ फैले समस्त अनाचार का !
जब हम खुद ही भारत यानि आर्यदेश को जिन्दा नहीं करेंगे तो उसे पोषित और विकसित कौन करेगा?
अपने गुरुओ की बातो को समझने की जगह हम उन्हें मात्र मनोरंजन का साधन बनाकर, उनकी बातो को अपनाने की जगह उसे प्रतीक मात्र बना कर छोड़ देंगे तो हममे और निरक्षरों में क्या अंतर रह जायेगा? ठीक है, मीडिया के लिए इन धर्म गुरुओ, या गुरुओं का कोई महत्त्व नहीं पर हम आप तो समझदार हैं?
दुःख इस बात का है की देश का युवा एक अपधर्मी संस्कृति की घुट्टी पीकर बड़ा हो रहा है और बड़ो की वो सुनता नहीं … इस देश का क्या होगा ये सोचना कठिन नहीं पर एक राष्ट्र प्रेमी के लिए तो ये एक भयावह दूस्वप्न से बढ़कर है I
इस विध्वंसित, नष्टप्राय देश को जोड़ने वाले सूत्र यानि एक सक्षम शिक्षा तंत्र को जल्दी स्थापित करना ही आज की पहली जरूरत है II
पर १२५ करोड़ सिरों के इस मदमस्त भस्मासुर को कौन अभिमंत्रित कर सकता है?
क्या है कोई ऐसा शिव?
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ॐ तत्सत !!!

भारत की हत्यारन …

किसी अंग्रेज के हाथो से पैदा की गयी कोंग्रेस जिस का काम ही अंग्रेजो की दलाली और भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के क्रन्तिकारी वीरो को मुख्यधारा और सामाजिक स्वीकार्यता से दूर करना था आज तक भारत को जिन्दा करने और उसकी महान आत्मा को पुनस्थापित करने के लिए १२५ सालो बाद भी कुछ नहीं कर पाई है!
मुग़ल बिन कासिम से 712  से शुरू हुए “हिन्दुकुश अभियान” के बाद से और अब पिछले पांच सौ सालो में अपनी हिन्दू पहचान और ताकत को गँवा चुके भारत को सन सैंतालिस की ईसाई औपनिवेशिक गुलामी से आजादी के बाद अपनी खोयी पहचान को वापस प्राप्त करने की जरूरत थी. पर भीख में मांगी आजादी के बाद अपनी सौदेबाजी की फितरत के चलते और कायरता के चलते नए आजाद भारत, कोंग्रेसियो के शब्दों में इंडिया, का विभाजन कर तिहाई जमीन इस्लामिक धर्मान्धता के आगे घुटने टेक मुस्लमान राष्ट्रों को बाँट दिया गया.I
भारतवर्ष की वह जमीन जहाँ पर विश्व की सबसे पहली और सबसे उन्नत सभ्यता का विकास हुआ है, जो स्थल हड़प्पा मोहनजोदड़ो, तक्षशीला, बामियान के बुद्ध, कश्मीर के मार्कंडेय मंदिर और प्राचीन भारतीय सभ्यता के लाखो नहीं बल्कि करोडो प्रतिष्ठित प्राचीन चिन्हों का केंद्र था, वो बिना सोचे समझे इस्लामी धर्मान्धो को पाकिस्तान के रूप में बाँट दिया गया!
पाकिस्तान जबसे बना है इसने भारत की जड़ ही खोदी है.. पाकिस्तान उसी इस्लामिक आक्रांताओ द्वारा हिन्दू और भारतीय राष्ट्र की हार का प्रतीक है जिन्होंने हमें पिछले ८०० सालो में हराया, मारा और हमें समूल नष्ट कर दिया है!
और कोंग्रेस उसी रीढ़ विहीन, कायर भारतीय (हिन्दू मैं कह नहीं सकता) जनसमूह का प्रधिनिधित्व करती है I
आज पाकिस्तान विश्व में होने वाली सारी इस्लामिक आतंकवादी गतिविधियों, भारत विरोधी और विश्व शांति विरोधी समस्त हिंसक रणनीतियों का प्रमुख केंद्र बन चूका है! अमेरिका से पुराने सैन्य और राजनैतिक संबंधो से लाभ उठाकर पाकिस्तान आज अत्यंत शक्तिशाली बन चूका है और उसकी हर सैन्य या वैश्विक उपलब्धि भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रही है! अरब देशो के पेट्रो डौलर, नाटो और अमेरिका की दी हुई बेतहाशा भीख और इन सबके सम्मिलित नैतिक समर्थन से पाकिस्तान इस्लामिक अस्मिता का नेता बन गया है!
अमेरिकी या ब्रिटिश मिशनरीयो के आर्थिक मदद, इस्लामिक देशो द्वारा जेहादी दौलत से पाकिस्तान खुलकर अपनी भारतविरोधी और हिन्दू धर्म विरोधी साजिशो का सञ्चालन कर रहा है !
ये पाकिस्तान भारत की लगभग १० लाख वर्ग मील जमीन पर कब्ज़ा जमाकर ऐश कर रहा है और कोई एक लाख वर्गमील जमीन उसने चीन को बाँट रखी है वहीँ भारत की डेढ़ लाख वर्गमील जमीन बंगलादेश ने हथिया ली है या कहें कोंग्रेसियो ने तोहफे में बाँट दी है!! भारत की दी हुई खैरात पर पलने के बावजूद पाकिस्तान भारत की बर्बादी करने के हर षड़यंत्र करता रहा है I
कश्मीर से हिन्दुओ का नाश १००० सालो से चला आ रहा है पर पिछले २० सालो में १० लाख कश्मीरी हिन्दुओ का नरसंहार और विस्थापन करके अत्याचार,आतंक की सीमा लांघ दी है इस्लामिक आक्रान्ता पाकिस्तान ने!
इस पाकिस्तान को बनाया था कौंग्रेस ने और आज उसी पाकिस्तान को पाल रही है कौंग्रेस पार्टी और कौंग्रेस सरकार.!
क्या भारत की सरकार और साथ ही भारत की जनता की याददाश्त इतनी कम है या हमारी नसों में गर्म खून कम पड़ रहा है जो ये भूल गए की अभी तक हमें जितनी भी शत्रुता मिली है वो बस एक ही राष्ट्र से मिली है! आजादी के बाद से लेकर हम करोडो भारतीयों को पाकिस्तानियों के हाथो मरते देख चुके हैं, हर अपमान, विध्वंस, हार, खून के आंसू, शर्म और डर उसी पाकिस्तान के कारण देख चुके हैं. भारत की सेना बस एक ही दुश्मन के खिलाफ सतर्क रहती है वही सेना अपने हजारो जाबांज फौजियों को उसी पाकिस्तान के हाथो गँवा चुकी है. भारत का हर एक सैनिक बस उसी पाकिस्तान का नामोनिशान मिटा देने की हसरत लिए सीमा पर जमा हुआ है, उसी पाकिस्तान के, जिसने कारगिल, तुर्तुक सीमा पर तैनात गश्ती दल के भारतीय नौजवान फौजियों की हड्डियाँ कुचल कुचल कर तोड़ी, ऑंखें गोदकर निकाल लीं, शरीर की चमड़ी छील का निकाल ली गर्म सलाखों से शरीर को जला डाला और फिर शरीर में गोली उतार कर लाश भारतीय सुरक्षा बलों के हाथ में दे दी. उसी गश्ती दल (मेजर सौरभ कालिया और अन्य शहीद) के क्षत विक्षत अपमानित किये शवो के ऊपर पाकिस्तानियों ने कारगिल का खुनी युद्ध छेड़ा.
संसद पर हमला, हमारे पूज्य मंदिरों अक्षरधाम, रघुनाथ, संकट मोचन पर हमला, बम्बई-ताज ओबेरॉय का विध्वंस, दिल्ली, जयपुर, बैंगलोर, वाराणसी, अक्षरधाम गुजरात, जम्मू, भोपाल, नागपुर, मालेगांव, गोवा इत्यादि २५ से अधिक शहरो में आतंकी वारदातों में भारतीयों का नरसंहार करने और राष्ट्र अभिमान को पद धूसरित करने वाला यह पडोसी देश पाकिस्तान हमारी घृणा का पात्र नहीं है..हमारे क्रोध का अधिकारी नहीं है… हमारी सजा का पात्र नहीं है बल्कि वो तो हमारा सबसे प्रिय सम्बन्धी बना हुआ है .. भारत की सरकार की आँखों का तारा बना हुआ है I 

आखिर भारत जैसे देश के लिए दुश्मन देश की परिभाषा क्या है?
इस देश में एक दुश्मन देश के राष्ट्रपति और उसके साथ अन्य असंवैधानिक व्यक्तिओ को व्यक्तिगत कार्य के नाम पर जियारत की अनुमति मिल जाती है जबकि उसी आतंकी झुण्ड की शह पर भय और आतंक के माहौल में अपने ही देश में लोग तीर्थ यात्रा नहीं कर सकते.. पूरे देश में भारत देश को तोड़ने वाले तंत्र को चलाने और समर्थन देने वाले राष्ट्र के साथ आखिर दिल्ली की कौंग्रेस सरकार किस प्रकार से आवभगत और आत्मीयता से मिल सकती है? कैसे शासकीय शिष्टाचार के नाम पर देश के कातिल राष्ट्र को मित्र देशो से भी अधिक सम्मान बांटा जा रहा है?
आखिर मुग़ल आक्रांताओ के नरम मुखौटो यानि मजारो और दरगाहो को जियारत के नाम पर विदेशियों के लिए खोलने का क्या मतलब है? और आखिर उन मूर्खो की मूर्खता का तो कोई पारावार ही नहीं है जो अपनी ही वधस्थल पर अपनी लालच पूरा करने का हजूम बनाते हैं ..I
ध्यान से सोचने पर ये मालूम चलता है की हर और आरोपों से घिरी कौंग्रेस सरकार अब भारतीयों के समर्थन से मुंह चुरा अपने पैदा किये पाकिस्तान और पाकिस्तानपरस्तो की खुशामत कर रही है. और इसके लिए वो भारत की संवेदनाओ और देश अभिमान को भी नजरंदाज कर देना चाहती है. सत्ता की कुर्सी पर बैठे लालची नेताओ का समस्त धर्म अब मात्र मीडिया के सामने तम्माशेबाजी, शांति वार्ता के नाम पर नौटंकीबाजी करना या व्यापार और आर्थिक गुणागणित तक ही रह गया है या फिर क्षुद्र राजनितिक फायदे के लिए दोनो देशो की पारस्परिक शत्रुता की प्रदर्शनी ..बस, उससे ऊपर कुछ नहीं. !!
अपने घर में किसी के साथ छेड़छाड़ पर तो हम जान लेने पर उतारू हो जाते हैं कैसे वहीँ लाखो भारतीयों की मौत के जिम्मेदार दुश्मन देश के खिलाडियों, कलाकारों, राजनीतिज्ञों, घुसपैठियों पर हमारा प्यार उमड़ उमड़ कर बहता है? इतना की हमारा ही प्रधानमंत्री उस आतंकवादी मुल्क को मासूमियत का प्रमाणपत्र बांटता फिरता है, इतना प्रेम की भारत का एक बिहारी नौटंकी सांसद पाकिस्तान में आलू देखकर भारत और पाकिस्तान को बराबर बनाता फिरता है!!
क्या हममे कोई अन्तर्निहित कमजोरी है पौरुष का प्रदर्शन न कर पाने की, बहादुरों की तरह व्यवहार करने और आत्मसम्मान सहित रहने में? क्या भारत की कोई मजबूरी है जो पाकिस्तान से सम्बन्ध बनाये बिना उसका काम नहीं चल सकता? क्या पूरी दुनिया में एक फटेहाल पाकिस्तान ही ऐसा है जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापर जरूरी है? क्या भारत इतना गया गुजरा हो गया है की पाकिस्तान से क्रिकेट खेले बिना उसका गुजारा नहीं हो सकता है? क्या भारतीयों की मनोरंजन की हवस इतनी अधिक है की वो अपने लोगो के हत्यारों के साथ ही खेल कूद कर आनंदोत्सव मनाना चाहते हैं?
जो व्यक्ति या देश सही तरीके से दुशमनी नहीं निभा सकता वो दोस्ती भी सच्ची नहीं निभा सकता … अमेरिका तो पाकिस्तान से अपनी बरसो से चली रही दोस्ती निभाता चला आ रहा है जैसा की दो मर्द करते हैं और भारत? भारत तो अपने मित्रदेश सोवियत संघ से भी मित्रता तभी तक निभाता रहा जबतक वो एक सशक्त राष्ट्र था अब उसके बाद कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय समझदारी के नाम पर एक दुश्चरित्रा स्त्री की तरह अब यही भारत रूस को भूल कर अमेरिका से मदद के लिए किसी भी हद तक झुक जाता है और पाकिस्तान के साथ तो यथोचित व्यवहार करने में अभी भी इसे शर्म आती है!
जिस पाकिस्तान को पूरा विश्व दुतकारता है उसे सम्मानित करने का बीड़ा उठाया है भारत सरकार ने..जिस पाक प्रायोजित इस्लामिक आतंकवाद ने दुनिया भर को चौकन्ना कर दिया है भारत सरकार ने “हिन्दू आतंकवाद” का अविष्कार कर के उसी जेहादी आतंकवाद को भारतीय संरक्षण देने का काम किया है भारत सरकार ने! दुनिया में सबसे अधिक मुस्लमान जनसँख्या वाले भारत ने दुनिया में आतंकवादियो की गारद तैयार करने का ठेका लिया है.. भारतीय मुसलमानों को अलकायदा, लश्कर का मुरीद और आतंकियों के तीर्थ पाकिस्तान से रूबरू कराने और उसे भारत भर में महिमामंडित करने का बड़ा महान काम कर रही है भारत की केंद्रीय कौंग्रेस सरकार.. !!
भारतवर्ष आर्यदेश आर्यवर्त को आज तक मुगलिया हमलावर संस्कृति ने समूल नाश कर दिया … और, इस राष्ट्र की पुनः हत्यारी है दिल्ली में बैठी हुई सरकार….. !!
कुछ है तो जरूर ऐसा की ख़त्म नहीं होती ये शर्मनाक हस्ती हमारी …………….I आखिर हजार सालो की कुंठा और कायरता कब तक इस देश को नपुंसक बनाये रहेगी??

माँ का शोषण .. गंगापुत्रों कब करोगे उद्धार??

गंगा साक्षी है अपने पिता हिमालय की गोद से निकली अथाह जलधारा द्वारा पोषित विश्व की प्रथम, सबसे महान हिन्दू संस्कृति के विकास की I साढ़े पांच करोड़ सालो में हिमालय के अवरोहन के साथ ही उत्पन्न हुई गंगा ने उस धरा को जहाँ कभी एक प्राचीन सागर “टेथिज़” हुआ करता था विश्व की सबसे उर्वर भूमि बना दियाI सिन्धु, सरस्वती, हक्कर, और फिर व्यास, चनाब, सतलज, रावी, झेलम आदि ने विश्व की सबसे पहली, अत्यंत विस्तृत और विकसित शहरी सभ्यता को पाला उस हड़प्पा मोहेन जोदारो (ये तो खैर उत्खनित उस आधुनिक स्थान का नाम है हम इसे “मेहरगढ़-हक्कड़” नदी की “प्राचीन भारतीय सभ्यता” कह सकते हैं!! ) के समाप्त(शायद, महाभारत युद्ध के आसपास यानि ~लगभग ३८०० विक्रम पूर्व!) हो जाने के पश्चात् इन महान पावन परममाता सदृश नदियों की कनिष्ठ सखियों यानी गंगा और यमुना आदि ने उत्तर भारत की शक्तिशाली प्रभावशाली उस जन समुदाय को पाला है जिन्होंने कभी समूचे विश्व पर राज किया है (जीहाँ, जिसके बारे में फिर कभी कहेंगे*!) I
परमेश्वर शिव शंकर शैलेश महादेव की बैठकी कैलाशधाम की गंगोत्री और आदि धारा अलकनंदा और सगरपुत्र भगीरथ की भागीरथी की ताकतवर जलराशि से प्रचंड हुई गंगा नदी विश्व की कोई एक अरब की जनसँख्या को जिन्दा रखती है! अखंड भारतवर्ष (यानि जिसमे कोई और पडोसी देश नहीं था!)की विराट जनसँख्या की पालनहार गंगा नदी इसीलिए माता कहाती है! और इसी नाते हम उसके पुत्र हैं संतति हैं!!
पर, जैसा सूक्ष्म जीव विज्ञानं का एक सिद्धांत है हम अपनी मौत खुद ही तैयार करते हैं I जीहाँ, एक बैक्टीरिया-एकल कोशिका को जरूरी पोषण अगर समुचित मात्रा और पर्याप्त अवधि के लिए भी मिल जाये तो यह सूक्ष्म जीवी गुणात्मक संख्या वृद्धि कर सकता है यानि २४ घंटे में केवल एक बैक्टीरिया से कई अरब नए बैक्टीरिया पनप जाते हैं!! पर अगर इस बैक्तीरिअल कॉलोनी को और पनपने दिया जाए तो यही कॉलोनी अगले ६ घंटे में तेजी से मारी भी जाती है .. वो भी बस हर बैक्टीरिया के पैदा किये जहरीले टोक्सिंस ‘एक्सो टोक्सिंस’ के कारन I
गंगा नदी ने अपनी महान जलधारा द्वारा एक सबसे उर्वर जमीन और विश्व की सबसे घनी आबादी को पालकर रखा है!! और यही गंगापुत्र उसी माँ की छाती से दूध पीते हुए आज अब उसका खून चूसने लग गए हैं!!
विश्व की सबसे भाग्यवान और सुस्त जनसँख्या इसी क्षेत्र में है जिसे खेती के लिए (अपेक्षाकृत) खास श्रम नहीं करना पड़ता.. और सुलभ निर्वाह और जीवन के लिए विश्व पारिस्थिकी की इस सबसे अनुकूल जलवायु ने एक कृतघ्न जनसमुदाय को जन्म दे दिया है जिसका वास्तव में विश्व के लिए आज तो कोई योगदान नहीं है सिवाय नरमुंडो से भरी गन्दगी फैलाती, पर्यावरण को खाती गंधाती, दुनिया पर बोझ जीने मरने को संघर्ष रत मानवता के!!
जीहाँ मैं बात कर रहा हु उसी धरा की जहाँ मैं रहता हु और उन आत्ममुग्ध स्तब्धचेतन भारत-काशी-वासियों से कहता हु जो शायद इस कडवी सच्चाई को स्वीकार न कर पायें!
 चित्र   1 ganga pollution
बेहद शर्म की बात है की आज गंगा औए यमुना जैसी नदियाँ कीचड़ समेटती नाले जैसी दशा में आ गयीं हैं और यह निकृष्ट मनुष्य ऊँची अट्टालिकाएं खड़ी करते खुद को चमकीले झूठ में लपेटते इस प्राणदायिनी धारा में अपना मल बहा रहा है I कितना मूर्ख है यह मनुष्य, जिस जल को उसने अपने रक्त में संजोया है अब उसी को पतित करते वह कभी शर्मसार नहीं होता I
अपने होशो हवास और सत्यनिष्ठ संज्ञान में (मुझे ये क्यों कहने की जरूरत है!?) रहते हुए मैं ये कह सकता हु एक समय पूरे विश्व पर* शासन करने वाली नस्ल आज खुद पृथ्वी पर बोझ बन गयी है!
गोमुख, रुद्रप्रयाग, हरिद्वार, ऋषिकेश,कानपूर, प्रयाग, पाटलिपुत्र\पटना और काशी, बनारस या वाराणसी जैसे प्रमुख तीर्थस्थलो और ऐतिहासिक स्थलों को पहचान देने वाली इस नदी गंगा को बचाने के लिए हम क्या कर रहे हैं?
गंगा तट पर कीर्तन करने से, कथा यज्ञ करने से, रोज चीख चिल्ला कर घर में वापस आकर बैठ जाने से, चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित करने से, फिल्मे\वृत्तचित्र बनाने से(वैसे शायद बनी एक भी नहीं है !), संगीत रसास्वादन प्रतियोगिता आयोजन करने से, अगरबत्ती जलाने और फूलमाला चढाने से, मौन व्रत रखने से क्या हम हजारो सालो से मैली गंगा को स्वच्छ कर लेने का स्वप्न देखते हैं? क्या जागरूक, निर्भीक और सजग ही सही कुछ नागरिको द्वारा पैदल यात्रा करने, व्रतादि करने, अनशन करने, जागरूकता जुलूस निकालने और केंद्र सरकार से दीन-दशा में हाथ पैर जोड़ने से कुछ हो पा रहा है? हमें तो ऐसा दिख रहा नहीं I
क्या हम जानते हैं कौन है स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ? प्रौद्योतिकी संसथान रूडकी से स्नातक, बर्कले, अमेरिकी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट और विश्वमान्य अध्यापको द्वारा अभी भी सम्मानीय, अखिल भारतीय प्रौद्योगिकी संसथान, कानपुर में पर्यावरण अभियांत्रिकी के प्रसिद्द विभागाध्यक्ष और भारत सरकार के सेन्ट्रल पौलुशन कंट्रोल बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी रह चुके प्रोफ जी डी अगरवाल ने एक विद्वान् के रूप में सम्मानित होने के लिए जो भी चाहिए वो सब हासिल किया है! आज वो संसारिकता छोड़ ज्ञान, धर्म और आध्यात्मिकता के पथ पर एक आत्मउत्सर्गी योगी की तरह अपने प्राकृतिक दायित्व के लिए सन्यासी बन वो कर रहे हैं जो एक शुद्ध नेता को शोभता है I पर कहाँ हैं स्वामी सानंद?! क्या हुआ उनके आह्वाहन को? कहा हैं काशी में पहले आन्दोलन करने वालो में बाबा नागनाथ योगेश्वर महाराज आदि? और कहाँ हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, स्वामी चिन्मयानन्द, साध्वी पुर्नाम्बा आदि जिन्होंने गंगा की रक्षा-जागरण के लिए आमरण अनशन किया है? क्या इस देश को कुछ असर पड़ता है? इस देश को तो किसी भी बात से कोई प्रभाव नहीं पड़ता ! देश लुट रहा है, देश सड़ रहा है और देश मर रहा है पर हमें कोई फर्क नहीं पड़ता!!
 चित्र २  स्वामी सानंद
किसी विद्वान, वैज्ञानिक, गुरु, किसी सिद्ध साधू और जागरूक पर्यावरणविदो के आह्वाहन से क्या इस देश को कोई फर्क पड़ता है? शायद नहीं क्योंकि महान भारत देश की सारी चेतना शायद अब बस फ़िल्मी कलाकारों और चिकने चौखटों और विलासी रंगरलियो के संपादको के हाथ में ही रह गयी है!
यह मनुष्य तो हमेशा से लालची रहा है.. उसे रोज नया राज्य चाहिए, अपना राज चाहिए सत्ता का सुख भोगने के लिए.. आज यह भयंकरतम पशु पृथ्वी के हर कोने पर विद्यमान है- वो रेगिस्तान हो, जंगल हो, पहाड़ के ढाल हो, बर्फीले लद्दाखी ग्लैशिअर हो, नदी का किनारा हो या नदी का मध्य द्वीप हो, समुद्र हो आसमान हो ये आदमी कहाँ कहाँ नहीं पहुँच गया है रहने के लिए …… अब तो पृथ्वी पर भी जगह नहीं बची है.. और आज ये मनुष्य नयी नयी राजधानिया खोज रहा है जमींन बेच रहा है, नदियों को बांध रहा है, राष्ट्रीय भूमि की सम्पदा निकाल निकाल कर देशवासियों के पैरो तले की की जमीन खोखली कर चूका है … ये मनुष्य जिस डाल पर बैठा है उसी को कुल्हाड़े से काट रहा है पर मदमस्त मनुष्यों को होश नहीं आ रहा और इस सरकार का क्या कहें जो पिछले सत्तर साल से इस देश को चला रही है और आज तक क्या क्या कर चुकी है हमें अब सब मालूम भी है. पर अब ये सरकार तो देश, भारतीय सम्मान, सम्पदा, सुरक्षा तो खैर छोड़ ही दिया जाये राष्ट्र की प्राणशक्ति को भी गँवाना चाहती है..
इस देश के १९२१ के ५५% वन क्षेत्रआज २०% से भी नीचे आ चुके हैं, वातावरण में सभी तरह के जहरीले प्रदूषक मौजूद हैं, खान-पान में कीटनाशक रसायन हैं, भूखमरी, गरीबी के बावजूद जनसंख्या दुनिया में एक कम अव्वल पहुँच गयी है …
मनुष्यों का चरित्र कलुषित है, वायु प्रदूषित है, खाना गन्दा है और पानी भी सड़ चूका है… आखिर हमें किसका इंतजार है?
यह सरकार अपने कुछ मुखौटो के जैसे ही पेटीकोट, चूड़ी पहनने वाली एक शोशेबाज नटनी बन गयी है जिसने अपनी कमी और अपराध को कुछ साड़ियो और बेचारगी (भरे चेहरों) के पीछे छिपा रक्खा है.. जिसका किसी भी राष्ट्रीय समस्या के समाधान के लिए कोई इच्छाशक्ति नहीं है और न ही क्षमता!!
अजीब बात लगती है, विश्व भर में पर्यावरणीय अभियांत्रिकी हो या अन्य आवश्यक तकनीक, में आशातीत उन्नति हो चुकी है, इसी देश में कई प्रतिभावान वैज्ञानिक और अभियांत्रिकी पेशेवर देश के उच्चतम संस्थानों से प्रशिक्षित होकर निकलते हैं, वो सब कुछ है जो इस देश को साफ करने के लिए चाहिए I सत्रहंवी अठारवी शताब्दी तक यूरोप भी अपनी नदियों में तथाकथित विकास के वाहक कारखानों इत्यादि द्वारा फैलाई गंदगी से त्रस्त थे.. पर जर्मनी, इंग्लॅण्ड, फ़्रांस इत्यादि देशो ने अपनी नदियों नाइस, थेम्स, रहाईंन आदि को पूर्णतया प्रदूषण मुक्त कर दिया(नदियों से सिल्ट हटा कर जल को पूरा छानने वाले यंत्रो से और शहरी मलजल का सही निस्तारण करके चाहे वो ‘सामानांतर कैनाल तंत्र’ हो या अन्य तकनीको से) और आज उनक नदियों को देखिये तो मन स्वर्गिक आनंद से भर उठता है पर भारत की नदियों को देखें तो लगता ही नहीं यहाँ मानुस रहते हैं! सारी तकनीक इस सरकार और हर जगह मौजूद स्वार्थी नेताओ के तलवे तले बिलिबिलाती रहती है!
बनारस आइये और देखिये, सम्राट समुद्रगुप्त की दिग्विजयी शौर्य की प्राचीन स्मृति-स्थली गंगा किनारे स्थित विश्व प्रसिद्द दशाश्वमेध घाट को जहाँ मिलता है विश्व भर से आये सैलानियों और भारत प्रेमियों (जीहाँ, उनका विशिष्ट नाम भी है– indologists !!!) के सामने ही मल मूत्र त्याग का प्रदर्शन, उस के पास में ही श्रद्धालुओ द्वारा आचमन के लिए मुख में लिया गंगा नीर, लोभी-लम्पट मनुष्यों द्वारा गंगा का चीर नोच् लेने की आतुरता, मल्लाहो-पंडो-दुकानदारो-पुलिसियों-दलालों-भिखारियों-जानवरों से भरा गंगा तीर,और दिखता है मूढ़ नराधम निवासियों और सबसे बढ़ कर क्षेत्रीय नगरपालिका (अधिकारी और नेता) की लापरवाही का गन्दा नजारा.. इसी नगर से प्रदेश सरकार सबसे अधिक राजस्व वसूलती है और इस भारतीय पर्यटन की शान और भारतीय संस्कृति की पहचान नगरी को बदले में देती है विशुद्ध तिरस्कार– कुव्यवस्था और प्रदूषण के रूप में!!
बनारस भारत के पांच प्रमुख पर्यटन स्थलों में अत है जहाँ सबसे अधिक देशी और विदेशी पर्यटक और तीर्थयात्री आते हैं कोच्चीन, बड़ोदा से लेकर भुवनेश्वर, मदुरै से लेकर ईटानगर, जोधपुर, सोलापुर से लेकर न्युयोर्क, लात्विया से लेकर ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जलैंड से लेकर नईजेरियन, मैड्रिड से लेकर शंघाई, सिंगापूर से लेकर लन्दन समस्त विश्व से आगंतुक बड़े उत्साह और उतुसुकता से यहाँ आते हैं.. सोचिये उनके सामने हम क्या अपने देश-संस्कृति का कैसा चेहरा प्रस्तुत करते हैं?
प्रदेश हो या केंद्र सरकार सबने गंगा तीर्थो का गला घोंटने की ठान रक्खी है आखिर नदियों को बांध कर वो किसको जिन्दा रखना चाहते हैं क्योंकि गंगा के मरने पर ये देश भी नहीं रहेगा और इस मात्रु तुल्य नदी के मरने की शुरुआत हो चुकी है I स्वच्छ गंगा अभियान के नाम पर ढेरो शोध संस्थान, जलशोधक यन्त्र और जाने कितने सरकारी गैर सरकारी संस्थाओं का खाना पचाना चल रहा है, सालो में कई अरब रुपये स्वाहा हो चुके हैं पर गंगा की गंदगी हमारी अकर्मण्यता की तरह बढती ही जा रही है!! नदी तल से वन क्षेत्र नष्ट हो चुके हैं, तल गाद गंगा को उथला कर चूका है, गंगा की जल-कीटनाशी क्षमता नष्ट प्राय है, कई तन मल इसमें प्रवाहित किया जा रहा है, सहायक नदियों असि और वरुणा को जिन्दा दफ़न किया जा रहा है.. टनों कूड़ा पैदा किया जा रहा है और टनों गंगा में फेंका जा रहा है.. स्थिति बिगड़ रही है और हमें घंटे बजाने और गंगा आरती करने से फुर्सत नहीं है
अब हमें कुछ करना ही होगा..
इस नगर, इस प्रदेश और इस देश को जागना ही होगा इस वास्तविक वैश्विक राजधानी काशी की प्राणदायिनी गंगा की मुक्ति के लिए
आह्वाहन है समस्त भारतीयों गंगापुत्रो से इस अभियान में शीघ्रातिशीघ्र सम्मिलित हो अपने स्वेद, अपने श्रम, अपनी शक्ति, अपनी भक्ति और हो सके तो अपने रक्त के अर्पण के लिए… अगर आप भारतीयों की शिराओं में कहीं भी भारतीयता का अंश है तो काशी को शक्ति दें .. काशी में आने पर ही आपको मालूम हो सकता है अपने भारतीय, वास्तविक भारतीय अंश का साक्ष्य.. उस भारतीयता से जुड़ने पर ही भास होगा आपको अपने शक्तिपूर्ण अध्यात्मिक अस्तित्व का !!

वासुदेवम परित्याज्य यो अन्य देवं उपासते,
त्रुषितो जाह्नवी तीरे कूपम वन्चाती दुर्भागा II.

राष्ट्र निर्माण करना है तो प्रथम गंगा का उद्धार करना होगा शायद गंगा की त्रासदी का कारन यही है की हम उसे माँ समझते हैं और इसीलिए
उसकी छाती को रौंदते हैं, उसपर अपने सारे पाप का बोझ डालकर निश्चिन्त हो जाते हैं हम समझते हैं की माँ को किसी सहारे की क्या जरूरत . पर हमें सोचना होगा की गंगा है तो एक नदी ही, कविता-कल्पना-साहित्य के दायरे के बाहर और इस जलराशि को स्वच्छ करने के सख्त, पुख्ता और परमावश्यक उपाय करने होंगे और सबसे पहले लालचियो की जमात राजनेताओ को विवश करना होगा…
आज ये सरकारे अपनी नाकामियों को अपनी ताकत से छुपा रही हैं I जनहित में कुछ ठोस करने की जगह सन्तों, सत्याग्रहियों, नागरिको को पुलिस बल से जबरी संकल्प प्रदर्शन स्थल से दूर कर रही है I इस सत्याग्रह को अब उग्र रूप देना चाहिए और सरकार को उसके आसमान से उतार कर जमीन पर लाकर बात करनी होगी!!
(आज की सूचना ये है की बाबा नागनाथ, देवी पुर्नाम्बा, देवी शारदाम्बा व दर्जनों अन्य अनशन रत बटुक मृत्यु शैय्या पर हैं.. )
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सगरपुत्र भागीरथ ने सहस्त्र वर्ष तप करके गंगाजल का प्राणकारी एवं मुक्तिदायक उपहार हमें दे दिया क्या हम उस गंगा की मुक्ति हेतु एक अन्य भीषण तप नहीं कर सकते ?!
आज इस की महती आवश्यकता है …
प्रार्थना है की महेश्वर हमें प्रेरित करें..
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हर हर महादेव II

सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

तेरह सौंवी बरसी ...

समय का तूफ़ान सब कुछ मिटा देता है.. पत्थर, पहाड़, राज्य, रियासत, वैभव, शौर्य सब कुछ.. और अगर ये मनुष्यों की सबसे उत्कृष्ट भावो, दुर्लभ मानवीय या प्राकृतिक रचनाओ को भी नष्ट कर डाले तो किसी बहुत बड़े नुकसान का अहसास होता हैI  पर अगर यह किन्ही खूंख्वार बर्बर, खून के प्यासे आतातइयो के हाथो किन्ही शांतिप्रिय, अनाक्रामक, अपने घर संसार में मग्न मनुष्यों का विनाश हो हो तो यह निश्चय रूप से गहरे दुःख का कारण होगा.. !!
अगर किसी ऐसे देश और उसके निवासियों का विनाश हो गया हो जो कभी समूचे विश्व के शासक रह चुके हो तो यह तो और भी दुखद होगा..

वह देश जिसकी मिलकियत विभिन्न क्षत्रिय शासको के राज में सुदूर पूर्व यानि कम्बोडिया, चाइना, जापान, न्यू गिनी से लेकर सुदूर पश्चिम यानि इटली, जर्मनी, इंग्लैण्ड तक थी I  अगर वह देश जिसने सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात कर लिया हो जिसके पास विश्व का पहला मानचित्र हो, वो जिसके पराक्रमी शासको ने उत्तर अमरीका यानि मय सभ्यता (जिसे अंग्रेजी में माया सिविलाइजशन के नाम से जाना जाता है), ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका आदि महाद्वीपों तक नौका मार्ग से अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली थी और जिनके पास उन भूभागो की गहन जानकारी थी I
जिस सभ्यता ने विश्व की सर्वोन्नत मीमांसाओ और रचनाओ को जन्म दिया, जो भूमि विश्व के पहले मानवों को पालने वाला पालना बनीI  जिस देश, सभ्यता ने विश्व के पहले वैश्विक ज्ञान केन्द्रों यानि काशी, जादुगुडा, नालंदा, तक्षशीला जैसे प्रथम विश्व विद्यालयों की स्थापना कर संपूर्ण विश्व को शिक्षित किया. जिनकी अन्वेषित, परिष्कृत और परिचालित विधियों और ज्ञान सामग्री को जानकर यह तथाकथित नव विश्व अपने अस्तित्व की पहली सीढियाँ चढ़ा.. जिस सभ्यता से चीनी, अरब, प्राचीन यूरोप, अफ्रीका- मिश्र, सुमेर, बेबीलोन(उत्तर प्राचीन काल में ) और अन्य क्षेत्रो ने अपनी अपनी संस्कृतियों का विकास किया I 
जिस भारत देश ने अपने शौर्य, तकनीकी और ज्ञान से विश्व की पहली साम्राज्य को संपुष्ट किया जिस भारत के वीरो ने विश्व में प्राचीन नौ मंदिर स्थापित किये और वो सभी मंदिर आज अन्य सभ्यताओ, धर्म और आस्था के गढ़ (वेटिकन, जेरुसलम आदि) बन गए..जिसके वीरो ने सम्पूर्ण विश्व पर अपने चिन्ह छोड़ दिए (और जो आज भी पाए जाते हैं *) .. वो देश जो सही अर्थो में विश्व का पिता कहा जा सकता है आज किस प्रकार से अपनी दुर्दशा को प्राप्त हो गया है?

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किसने किया है ये सब?

कैसे यह देश जो सम्पन्नता, वैभव और उच्च परिष्कृत सभ्यता  के सभी गुणों से सुशोभित था कैसे गुलामी, विनाश, विपन्नता, अनाचार और "धर्म" से रहित हो गया?
कैसे हुआ ये इसी देश में, के आज इसी एक देवभूमि सदृश्य देश जिसे उच्च राष्ट्रीय और नस्लीय पहचान का श्रेय आर्यावर्त के रूप में मिला था, विदेशी पराधीनता , विदेशी शिक्षा और विदेशी व्यव्हार ने हमारे लहू  में स्थान बना लिया?
कैसे आज इसी एक भारत देश में अन्य कई देश पलते दिख रहे हैं? कैसे यह एक देश विदेशियों की संतानों को अपना दूध पिला रहा है??

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कैसे हुआ ये? कब हुआ ये सब?

आज यह काल है आतंक की, हमारी  गुलामी की बरसी  की .. उम्मय्यदी नस्ल के इराकी खलीफा अल हज्जाज बिन युसूफ के भेजे  लूटेरे  मुहम्मद बिन कासिम  ने धन, सम्पदा के महान खजाने जिसे वो निरक्षर, आतंकी  "सोने की चिडिया"  कहते थे, को लूटने और विनाश करने के लिए सबसे पहले सन ७१२ इसवी  में इस अखंड भारत की सीमा में अतिक्रमण किया था.. दमिश्क के उम्मय्यादी खलीफा का पापी आक्रान्ता हिन्दू राजा  दाहिर को क़त्ल कर मुल्तान के सोने के बने कई विशाल  मंदिरों को खोदकर और हजारो हिन्दु खोपड़ियो के पहाड़ बना गया ..



उस तुर्क बिन कासिम के बाद सय्यिदो, लोधियो, मंगोलों,कुर्दों, किर्गिजो, तुर्कों, पारसियों तथा अन्य विदेशी अक्रमंकरियो*  ने भारत को नेस्तनाबूद करने के लिए सैकड़ो आक्रमण किये i  उस एक महादुष्ट , पापी और लालची आतंकी के बाद एक एक करके कई दुष्ट आते गए और हर जीत के साथ कई लाख मंदिर तोड़े गए, कई लाख -लड़ने वाले योद्धाओ, मंदिर पे पाए गए भिक्षुको और ब्राह्मणों, यहाँ तक की सामान्य निवासी(वयस्क, किशोरे व बालक) जिन्होंने धर्मान्तरण की अपेक्षा संघर्ष का चुनाव किया, आदि कई पुरुषो का सामूहिक नरसंहार किया गया,  "चच नामा" (अल कूफी- अनुव. अलिअट और डाउसन) (एवं कई अन्य वृत्तान्त और ऐतिहासिक सन्दर्भ जैसे-- अल- बदौर की  फुतुह-उल-बुदन  बताता है की रेवर, ब्रह्मनाबाद, नगरकोट, राजकोट, जयपुर-सिंध, देवल, मुल्तान, लवपुरी(लौहौर), कुशपुरी\देवालय्पुर (करांची), थानेश्वर, दिल्ली, काशी, मथुरा  ...... आदि आदि (हजारो ) नगरो के ऊपर चढ़ाई के बाद  कितने (बुतपरस्त काफ़िरो के) कटे सिरों की झालर, हजारो कटे हिन्दू सरो की कालीन या दीवार नगर की प्राचीरो और मुख्या दरवाजो पर लगायी गयी.. नगर के समूल नाश के बाद कितने बच्चे गुलाम बनाने के लिए और कितनी स्त्रीया और बालिकाएं अरब के हरम और बाजारों में बेचने के लिए घोड़ो, उटो और खच्चरों पर लादकर ले जाई गयीं, कितने हजार टन सोना, जवाहरात और कीमती असबाब वापस अरबी सुल्तानों के देश ले जाया गया और कितने बुत्परस्तो की आस्था के केंद्र  बुतों  के टूटे हुए शीर्ष ढोकर खलीफा अरब, सल्तनत के केंद्र में पहुंचा दिए गए I
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जी हाँ, हमें बुरी तरह से कुचला गया था और पराधीनता में हमारी पहचान की एक एक वजह नृशंसता से मिटाई गयी है, हमारा वैभव पूरा लूट लिया गया, हमारे शक्ति केंद्र जड़ से सम्पूर्ण नाश कर दिए गए.. पाटलिपुत्र जो की भारतीय शौर्य, ऐश्वर्य, वैश्विक प्रभुता और वर्णीय अस्तित्व का एकमात्र विशिष्ट केंद्र था गुमनामी की लम्बी कालकोठरी में फेंक दिया गया I  और तभी से विलुप्त हो गया भारत देश का संपूर्ण विश्व में अधिपत्य स्थापित करने वाले शक्तिपुंज का प्रकाश !! 

 आज ठीक १३०० साल हो चुके हैं !!
सिन्धुस्थान यानि सिन्धु देश यानि हिंदुस्तान की धरती  को अपवित्र करने को उस पहले आक्रान्ता (जिसे अपने सातवें प्रयास में सफलता मिल पाई) ने सिन्धु नदी की सीमा पार करी और जो जून (ज्येष्ठ श्रावण)में होने वाले अपारगमनीय  सिन्धु की जलराशी(बाढ़) के बदने से पहले ही विध्वंस करके और वैभव लूटकर निकल गया था पर अपने आगे आने वाले विनाश को रास्ता दिखा गया था!


बहुत समय हो गया..  पाटलिपुत्र  काल निद्रा में लीन हो गया था.
और वो हर, वही दुर्दशा आज भी दिखती है, वही क्षतविक्षत देह इस वर्ण की आज भी दिखती है विदेशी पैबन्दो के सहारे अपने मर्यदाराहित, कुचले देह को असफलता पूर्वक छिपाते हुए!!  

इन १३०० वर्षो में भारत विनष्ट हो चूका है, शायद भारतवासी भी नष्ट हो चुके हैं... भारत की हर पहचान नष्ट हो चुकी है और भारत का हर मान नष्ट हो चूका है.. भारत का धर्म तो कब का नष्ट हो चूका है .... कुछ बची खुची निशानियाँ बची हुई हैं जिन्हें आज के भारतवासी अपने ही हाथो से नष्ट कर रहे हैं और औरो के हाथो में बेच रहे हैं. जिस तरह हारने के बाद (आधुनिक काल में) जापान, जर्मनी, कोरिया या वियतनाम का उनके शत्रुओ द्वारा अंश अंश मिटा दिया गया उसी तरह भारत और भारतवासियों का नाम भी मिटा दिया गया I 
पर वह देश तो स्वयं पैरो पर खड़े हो गए हैं... पर भारत देश आज भी उस प्रचंड अघात से उबर नहीं पाया!!   

आज वह भयावह स्थिति बदली नहीं है.. आज भी एक बड़ी आबादी भारत को पराजित करने वालो के आदर्शो-इशारो पर चल रही है.. आज भी हर रोज हिन्दू यानि भारतीय को क़त्ल किया जा रहा है..
 "धिम्मिओं"   की डर, गुलामी, अंधकार, अज्ञानता और शर्म इतनी व्यापक हो चुकी है की हर आह्वाहन, हर रहस्योद्घाटन और हर पुकार को  सहिष्णुता, शांति, करुणा  इत्यादि के नारों, धार्मिक अकर्मण्यता, और नस्लीय गुमनामी के कई छद्म विशेषणों के पीछे छिपाया जा रहा है i  आज हिन्दुओ को पुकारती हर आवाज को युद्ध्भेरी बता घृणित साबित किया जा रहा है, हिन्दू चेतना की पुकार को बस किसी एक वर्ग के विरुद्ध प्रचारीत किया जा रहा है I  
देखिये और सोच्जिये किस देश में ऐसा होता होगा? जहाँ अकबर, हुमायूँ, बाबर, चंगेज खान, औरंगजेब, तैमूरलंग, तुगलक, खिलजी, शाहजहाँ, इत्यादि भारत देश के हत्यारों को आदर देकर हमने अपने माथे पर सजा रखा है उन सभी के नामांकित मार्गो पर चलते राजधानी दिल्ली के भारतीय राजनेता गर्व महसूस करते हैं और जिन्हें शिकन तक नहीं होती !! 

मुगलों और मुस्लमान आक्रंताओ द्वारा अपहृत-अपभ्रंशित स्थलियो जो की हजारो साल से हिन्दू संपत्तियां थीं - जैसे  चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य  दवारा स्थापित लौह "विष्णुस्तम्भ" (जिसे मूलतः मथुरा से लाया गया था) का वेधशाला और मदिर संकुल जिसे कुतुबुदीन द्वारा थोपे विजय प्रतीक (क़ुतुब मीनार) से कलंक्रित कर दिया गया.. जैसे मुगलिया अकबर द्वारा मारवाड़ी सिकरवार राजाओ के सैकड़ो सालो से स्थापित  सीकर महल  और किले को 'फतेहपुर सिकरी' (और अन्य फतेहपुर) की पहचान से महिमामंडित कर दिया गया है.. जैसे  तेजोमहालय को ताज महल , जैसे  लक्ष्मनपुर  या लखनपुर को  लखनऊ  बनाकर कलंकित कर दिया गया, जैसे <strong>काशी, अयोध्या, गया, मथुरा, उज्जयिनी, विजयानगरम, भोजपाल पुर (भोपाल),अहमदनगर, बरोदा, जामनगर, और  गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र  के हर नगर को पराधीनता सूचक नाम और पहचान दे दिया गया.. *

जिस तरह से कश्मीर, अफगानिस्तान (इरान और इराक में भी) इत्यादि में स्थित लाखो मंदिर ध्वंस कर दिए गए(निकटतम इतिहास में) जिस तरह से कश्मीर में स्थित  मार्कंडेय मंदिर, शंकराचार्य मंदिर, खीरभवानी मंदिर  जैसे अन्य २-३ हजार वर्ष पुराने मंदिरों की सुरक्षा सेना को करनी पड़ती है (मैंने खुद देखे हैं!) और जिस उदासीनता से भारतीय जनता कश्मीर के प्रति पेश आती है.. जिस तरह से २० लाख कश्मीरी हिन्दुओ को निकालने के बाद आज भी विधर्मीकरण जारी है और आज भी भारतीय-हिन्दू जनता नपुन्सको की भांति हाथ पर हाथ धरे बैठी है, जिस तरह से  जेहादी-यानि मुस्लिम राष्ट्र और पाकिस्तानियों द्वारा समर्थित भारतद्रोही विचारधारा  मुगालिस्तान*  बनाने के अपने मंसूबे पर आमादा है और जिस तरह से यह आक्रान्ता मानसिकता बंगाल, उत्तर पूर्व, मध्य पूर्व भारत और दक्षिणी भारत में गढ़ बना चुकी है वही हारी हुई मानसिकता अभी भी अपने शत्रुओ को अनदेखा कर रही है   !!!   

उस गहरी चोट की अमित छाप अभी भी हमारी मानसिकता में है.
आज यह कायरता, विधार्मिता हमारा आभूषण बन गया है.. इस आभूषण में धर्मनिरपेक्षता, पंथनिरपेक्षता जैसे कई शब्दों के माध्यम से चमक लाते रहने के प्रयास चलते रहते है.
अपनी जातीय चेतना को पुनर्जीवित करने के भारतीय हिन्दुओ के हर प्रयास को भोंडा, हल्का और आपत्तिजनक रूप देने का प्रयास होता रहता है! 

हम ठीक वैसा ही कर रहे हैं जैसा हमारे शत्रु चाहते थे, आज हमारी वही स्थिति है जैसी उनकी मंशा थी...
 असहाय, सर झुकाए और मरे हुए ...  कटे हुए सर
भारतीय हिंदी फिल्मे आज अजान और इस्लामी नज्बे अरबी धुनें गा रही हैं, इस्लामी आतंकवादियों की हौसलाफजाई करने वाली फिल्मे (खान) बस हमारी ही जमीं से दुनिया में पहुंचाई जा रही हैं - फिल्मो से हिन्दू संस्कार, हिन्दू धर्म, हिन्दू चिन्ह अदृश्य हो गए हैं पर  "कुन फय्कुन"  और  सजदा  जरूर नजर आ रहे हैं, और.......हम!.... हिन्दू मंदिरों में जनता आज स्वार्थ पूर्ती के लिए अधिक जुट रही है..  और हिन्दू धर्म मात्र शादी करने या मरने के समय ही याद किया जाता है   या वो भी नहीं किया जाता.. आज हम ईसाई ताकतों द्वारा पोषित शिक्षण संस्थाओं में अपने बच्चो को पढ़ाते गर्व महसूस कर रहे हैं..
सडको पर बड़े बड़े ज्ञानी पैदा हो गए हैं जो कहते हैं "अरे धर्म वर्म में क्या रक्खा है" ... हमारे लिए तो सभी धर्म बराबर हैं.. "धर्म का तो नशा फैलात्य जाता है" .. "मन चंगा तो कठौती में गंगा".. "मैं तो नास्तिक हु".. इन सभी सुविधाभोगी महानुभावो को पूरी छूट है की वो हिन्दू धर्म की अपने विचार से व्याख्या कर उसका कैसा भी अपमान कर सकते हैं..

अहिंदू आबादी भयावह तरीके से संख्या बढ़ा रही है..  भारतीयों-हिन्दुओ को अपने ही मंदिर में पूजा करने से, घंटा बजाने से, अपने ही देश में तीर्थयात्रा करने से रोका जा रहा है... और तो और समग्र विश्व जैसे के पिता होने के बाद भी  आज हिन्दू के साथ आतंकवादी शब्द लगाया जा रहा है.. समूचे विश्व में सूरज की तरह स्पष्ट इस्लामी आतंकवाद के बावजूद उसके संरक्षण के तर्क भारत की धरा से दिए जा रहे हैं "आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता" ....
पाकिस्तान से बंगलादेश तक  मुगालिस्तान  पर पूरे जिहादी जोश से काम चल रहा है और उत्तर प्रदेश में आई नयी सरकार के झंडे तले अभियान को और ताकत देने का काम शुरू हो चूका है.. पूरा देश जिहादी और ख्रिस्ती =ईसाई एजेंटो की गिरफ्त में आ चूका है.. खतरनाक स्थिति इतनी है की उत्तर पूर्वी भारत, सूदूर दक्षिणी, ओडिशा, कश्मीर में परचम फहराने के बाद आज इन दुस्साहसी झुंडो की पहुँच भारतीय धर्म के केंद्र बनारस तक हो गयी है!!
पर हमें खबर कहा... !! हमारे तो कानो में अणु बम विस्फोट हो जाये तो भी कुछ न सुनाई दे.. सब मालूम है सरकार को, और आपके प्यारे मीडिया को
पर भारतीय मीडिया लिप्सा और लौलुपता बाँट कर अपना द्रोही धर्म निभा रहा है.. और  जर्मनी के लिए काम करने वाले और रूस की केजीबी के लिए काम करने वाले इटैलियन नाजी की चालाक बेटी की चरण पादुका पर परजीवित, अंग्रेजो द्वारा पैदा और पोषित राजनैतिक पार्टी की सरकार आज डंके की चोट पर  रोमन क्रूसेडर क्रॉस  (देखें चित्र) जो रोमन साम्राज्य द्वारा जारी किया गया था, उसे भारतीय सिक्को पर जारी कर भारत पर इटैलियन(ख्रिष्टि) प्रभुत्व को आगे बढ़ा रही है.. और हमारी यह सच्ची, प्यारी सरकार जिहादी फसल को तो इस तरह से बाटला-गोद में बिठाकर पाल रही है जिस तरह से शरीर पर खून पीने वाली जोंक पलती है ..I

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इतिहास के हर पन्ने पर मिल जायेगा की किसी देश में नागरिक देश द्रोहियों को सजा कैसे वीभत्स तरीके से दी गयी पर यह देश ऐसा अजूबा उदहारण है जहाँ विदेशी आतंकवादी जिसने सैकड़ो नागरिको की खुलेआम हत्या तो की ही देश की अस्मिता ही सड़क पर नीलाम कर दी पर फिर भी  कसाब, मदनी, सलेम, तहव्वुर राना और अफजल गुरु  जैसे बिना किसी शिकन के इसी देश की हवा में सांस ले रहे हैं जिसमे खुद को भारतीय कहने वाला हर बाशिंदा लेता है..  ये है नपुंसकता की ऐतिहासिक मिसाल  जो शायद ही किसी और देश में मिले!!!

बर्बर शत्रुता की आंधी पूरे विश्व को हासिल करने के बाद आज भारतीय उपमहाद्वीप में आ गयी है इस आखिरी "चिड़िया" को भी अपनी तश्तरी में सजाने को कसाई अपने छुपे-खुले हथियार लेकर तैयार हैं .. हिन्दू धर्म के आखिरी निशान को भी पूरा मिटा देने को सभी आक्रान्ता सेनाएं "पौरुष" दिखाने को तैयार हैं उनका सामना लज्जित, स्त्र्योचित शिखंडी रूप कायरो से है जो लम्पटता के नए स्वांग रचने में मदमस्त हैं!!

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उनके लिए इस बार भी आयोजन दुरूह न होगा.. जब १३०० साल और ८०० साल पहले गजनी, गौरी, अलाउद्दीन खिलजी, बिन तुगलक, तैमूर लंग, चंगेज खान, शेर शाह सूरी,  नादिर शाह, ऐबक, आदि ने आक्रमण किया था तब उनके सामने थी अत्यधिक संपन्न, विलासी शायद आलसी और लापरवाह भी, साथ ही सुविधाभोगी धर्म के पालन या धर्म से विमुख जाति जिसका उससे पहले कोई बाहरी शत्रु (तात्कालिक) नहीं था और उन विदेशियों ने एक बार में पूरे देश का संहार कर दिया ... कई और भी कारण थे *  (आगे उल्लेख करेंगे!)
और आज भी लगभग स्थिति वही है या शायद उससे भी बुरी ...
आज भी एक पौरुषहीन जाति अपने स्त्र्योचित गुणों के साथ शिकार के रूप में सामने प्रस्तुत है I 

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प्रोफ के एस लाल के अनुसार १००० से १५२५ इसवी तक मुगलों ने भारत की जनसँख्या ८ करोड़ कम कर दी थी ..
कोनार्ड एल्स्ट ने  १० करोड़ हिन्दुओ  के नरसंहार को इस <strong>विश्व का सबसे बड़ा महा संहार  करार दिया है  (निगोशिएशन्स इन इंडिया )..

आधुनिक काल में विनाश के प्रचंड साधनों (एम् १६, नापाम, सरीन, परमाणु बम्ब इत्यादि) को लेकर भी हिटलर जैसे महा शैतान ने भी उतने यूरोपी नहीं मारे(द्वितीय विश्व में नाजी सेना ने ५० लाख मनुष्यों का नामोनिशान मिटा दिया वही औपनिवेशी यूरोपी सेनाओ ने अमेरिका की १ करोड़ की नेटिव आबादी- मूल निवासियों का वृहद् खून खराबे में संहार कर दिया था!!) जितने हिन्दू इस्लामी हत्यारों ने भारत में मार दिए आधुनिक काल में यह संख्या <strong>९० करोड़</strong> मानी जा सकती है...!!!!!!

 फ़्रांसिसी इतिहासकार  अलैन दैनिएलु  स्वीकार करता है की प्राचीन भारत का इतिहास, जिसमे समस्त विश्व केन्द्रित था, और साथ ही भारत की प्रतिष्ठा मुग़ल शासन के आने के बाद सदा के लिए मटियामेट हो गयी .. यहाँ तक की भारत का इतिहास जो भी लिखा गया यानी आज जो भी इतिहास है सारा का सारा मुगलों के द्वारा ही लिखा गया क्योंकि बख्तियार खिलजी या नादिरशाह जैसो के नालंदा विक्रमशीला जैसे हजारो वृहद् ज्ञान-पुस्तक केन्द्रों (और उनके साथ लाखो भिक्षु ब्राह्मणों विद्वानों) को तो समूचा विध्वंस कर देने अपनी ही चिता में ६ माह जलते छोड़ने के बाद इस सभ्यता, धर्म, देश के लिए सोचने, अध्ययन करने या इतिहास लिखने लायक कोई सक्षम यानि ब्राह्मण बचा ही नहीं था!! तलवारों से हिन्दुओ को नष्ट करने के बाद उनकी लाशो पर अपने जंगली धर्म व अपने इतिहासकारों द्वारा नमक रगडा गया ..

दुर्भाग्य और भय का कोई और बड़ा उदाहरन हो सकता है..?

कितना विनाश हुआ है क्या हमारी बुद्धि इसको समझ पाती है? मेरी बुद्धि स्तंभित है पर मैं देख पा रहा हु... और यही देखने की आशा अपने देश वासियों से करता हु..I    

हममे से अधिकतर को असलियत मालूम ही नहीं पर कई को मालूम है और कुछ को अंदेशा है ..फिर भी हम कुछ नहीं करते..
और वही न्रिशंसता क्या आज भी नहीं है? और यह हिन्दू नस्ल आज भी उतनी ही असहाय है.. और भीरु .
आज हिंदुत्व शब्द हमारे डर, कष्ट और असुविधा का कारण हो गया है..हिंदुत्व किसी को गर्व और मान से नहीं भरता.. आज तो हिंदुत्व के नायक भी नहीं हैं पर एक जो है उसको भी खुलकर समर्थन करने वाले दाये बाएं देखते हैं..  बिलकुल वैसे ही जैसे किसी  बच्चे को, जिसने अपना सबसे बड़ा डर देख लिया हो, अपने साये से भी डर लगता है ..

 नरेन्द्र मोदी  "अखंड सोम"  उस प्रदेश और उस जाति को पूर्ण रूप में प्रतिनिधित्व करते हैं जिसने मुसलमानी आक्रान्ताओं द्वारा नष्ट होकर और क्षति पाकर भी हमेशा हमेशा स्वयं को पुनर्स्थापित कर लिया..
पर ऐसा देश में हर जगह तो नहीं है? यह तो अपवाद है अन्यत्र सर्वत्र वही 'भूत' है..
आज भी वही संहार चला आ रहा है, कुछ नहीं बदला है बस आज वो आक्रान्ता पहले से भी अधिक उन्मुक्त, संपन्न और धृष्ट हैं और उनका साम्राज्य कहीं व्यापक है!
और हम अभी भी उन्ही की दयादृष्टि पर हैं.. हम आज भी उनके निशाने पर हैं अन्य सभी को तो भारत सरकार या फिर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनो और भारतीय (जाँच एजेंसियों, न्यायालयों)सुस्ती का साथ मिलने से वो सभी मुक्त हैं पर उनमे से कुछ तो हमारे शिकंजे में हैं ....आज अधिकतर आतंकी हमलो के अपराधियों का हमें पता नहीं है उनका भी नहीं जो बेनकाब हो चुके हैं !! (आश्चर्य नहीं है!?)
विभिन्न आतंकवादी जो भारत के विरुद्ध युद्ध रचने के आज अपराधी पाए गए है --
 मोहम्मद राजा-उल-रहमान, अफज़ल पाशा, महबूब इब्राहीम, मिरुद्दीन खान, निजामुद्दीन, मुन्ना  (ISC  बैंगलोर बम विस्फोट);  नूर मोहम्मद तंत्रे, परवेज़ अहमद मीर, फ़रोज़ अहमद भट, अतीक-उज़-जामा, रईस-उज़-जामा  (निजामुद्दीन दिल्ली);  अदिस मेदुन्जनिं  -(अमेरिका);   डॉ जलीस शकील अंसारी, शबीर अहेमद, मोहम्मद यासिर (बम्बई काण्ड);  सयेद ज़बिउद्दीन अंसारी उएफ़ अबू जिंदाल, अबू हम्ज़ा  (२००८ मुंबई बम विस्फोट); . हाजी बिलाल, अब्दुल रजाक कुरकुर...३१  अपराधी, (गोधरा); अबू हमजा (बम्बई);  हाफिज मोहम्मद सईद  -पाकिस्तानी (बम्बई)  ;  वलीउल्लाह  (वाराणसी);   अफजल गुरु  (संसद हमला)   कसाब-पाकिस्तानी  बम्बई हमला .....


और अन्य आप स्वयं खोजें और सामने लायें.. पर इनके साथ हम क्या करेंगे.?

" कश्यप सर" यानि कैस्पियन सागर तक तो कभी भारत की केंद्रीय भूमि थी .. उसके पूर्व इंग्लैण्ड तक हिन्दू (आर्य) भूमि थी कालांतर में सिन्धु नदी से पूर्व रहने वालो को हिन्दू कहा जाने लगा.. सिन्धुस्थान में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू हो जाता है अगर उसकी आस्था अहिंदू नहीं है तो , इसलिए भारत देश का हर व्यक्ति है तो हिन्दू ..
करोडो सालो से वह भाई अभी तक हिन्दू ही था पर पिछले ५०० सालो में वो हमसे छीन लिया गया है.. दीखता वो हमारे जैसा है, उसकी जेनेटिक संरचना हूबहू हमारे जैसी है जो बस कुछ साल पहले तक हममे से एक था ... आज है तो ... पर आज वह ऐसी शत्रु संस्कृति और आस्था के चंगुल में है जो हिन्दू धर्म और संस्कृति के रक्त की प्यासी है ..

किसी और से क्या कर सकता हु पर दुःख भरी शिकायत बस अपने भाइयो से है.. हिन्दुओ से है.. क्या हमारी आँख कभी नहीं खुलेगी.. सब कुछ तो है आसपास आपको साक्ष्य देता हुआ, उत्तेजित करता हुआ, प्रेरित करता हुआ .. पर वो महान शौर्य, पराक्रम जो  शिव, विष्णु, ज्यूस,  बलराम (हरकुलिस), परशुराम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, शिवाजी, महारानाप्रताप  जैसे महान योद्धाओ की भुजाओं में समस्त विश्व में व्याप्त था क्यों इतना शिथिल कुंद पड गया है.. 

 हमने हार, तबाही, अपमान, दुर्दशा, अपनों से बिछोह, अपने धर्म का नाश, शर्म और आतंक का अत्यधिक लम्बा युग देख लिया..
आज हम अपनों का रास्ता रोकते हैं, आज हम अपनों को ही दबा कर संतुष्ट होते हैं, हम जाहिलियत का मुकुट पहन अपने दुश्मनों का काम आसान कर रहे हैं.. क्या हम कभी उस पुरुषोचित पराक्रम को देख पाएंगे? 

     
हमारे पास बहुत ज्यादा समय नहीं है.. 

अत्यंत समीप  यह तो दैविक निर्णय का समय है .....

संसार पुरुषो से चलता है कापुरुषो से नहीं... यह भीषण कोलाहल का काल है.. विश्व के समाप्त होने का नहीं "कुछो के" विश्व समाप्त होने का किंचित, काल है यह .....


पर हिन्दू कहाँ है?
हम कहाँ होना चाहते हैं?  हम कैसा भविष्य चाहते हैं?


 हमारा निर्णय, हमारे कदम हमारी जीजिविषा और हमारा पराक्रम ही हमारा भविष्य निर्धारित करेगा..  

क्या हमें अपनी यह तेरह सौंवी वर्षगाँठ याद रहेगी?


आप सबको बधाई हो................... 




हे आर्यावर्त .....................