मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

कपि-ल की डरावनी घुड़की

जब से ये देश आजाद हुआ है राजनीतिज्ञों को जैसे कोई एकाधिकार मिला हुआ है देश के हर महकमे का मालिक बन जाने का. मंत्री साहब का उस क्षेत्र या उसके आसपास के कार्यक्षेत्र से भी कोई नाता हो या न हो उसका एक-छत्र स्वामी बना दिया जाता है और अब तो ये परिपाटी बन गयी है नेता बनते ही, वाणिज्य, विमानन, कृषि हो या अन्तरिक्ष विज्ञान बस, एक चुनाव भर जीत लेने वाले को हर क्षेत्र का महाज्ञानी बना दिया जाता है और विशेषज्ञ जैसा मान दे दिया जाता है. और अब तो चिकित्सा शिक्षा, खनन, विज्ञान एवं तकनिकी और शिक्षा तक में भी किसी भी काठ के उल्लू को बिठा दिया जाता है पूरे गाजे बाजे के साथ और वो जंतु भी प्राकृतिक प्रज्ञान के साथ अन्याय करते हुए उस विषय-विभाग का सर्वनाश कर देता हैI इस देश की विडंबना है और जो वास्तिविकता में विनाश का सूचक है की शिक्षा के शेत्र में जो लोग हैं वो वास्तव में इन विभाग और देश हित दोनों के सबसे बड़े दुश्मन हैं.
जैसा की सुना गया है की पांच करोड़ में पुरानी दिल्ली(चां. चौ.) की अपनी सीट खरीदने वाला ये लम्पट वकील काले कपडे पहन कर काले कारनामे करने के बाद आज मानव संसाधन का विकास करने पहुँच गया है. राजनीतिज्ञों को अब इतनी खुली छूट मिल गयी है की राष्ट्र की हर सम्पदा लूटने चूसने के बाद, हर मानव मात्र का प्रयोग अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए अब तक प्रयोग करते रहने के बाद अब राष्ट्रीय सरोकार की बची खुची कुछ नींव की ईंटो का भी इस्तेमाल ये नेता अपनी चुनावी रोटियाँ सेंकने, अपना मैला राजनीतिक चेहरा चमकाने, तालियाँ बजवाने, अपने चेलो चपाटो के लिए खाने कमाने का इन्तेजाम करने और मात्र क्षुद्र लोकप्रियता पाने के लिए कोई भी मर्यादा तोड़ने में शर्म नहीं करते.
आखिर किया क्या है कपिल नाम (व काम) के मंत्री ने ?
इस जीव को लोगों के कष्ट, दुखो का बड़ा ख्याल है.. मंत्री साहब को बड़ा दुःख है उन विद्यार्थियो की निराशा से जो कोई परीक्षा पास नहीं कर पाते, वो जो स्कूल में पढ़ते भी नहीं या अत्यधिक प्रतिस्पर्धा होने के कारण अत्यंत लाभकारी परीक्षाओं में सफल नहीं हो पाते, बड़ा दर्दीला है उन जोशीले नौजवानों के कष्ट से जो कॉलेज का समय लुहेड़ाबाजी करने, या नेतागिरी चमकाने में पढाई को कानी आँख से भी नहीं देख पाते. माननीय मंत्री महोदय उन सहृदय, संवेदन शील, अथाह दयालु प्रकृति से युक्त मंत्री महानुभावो की जमात में शामिल हो जाते हैं जिन्हें बहुमत और ‘मत’ कई मील दूर से दिख जाता है. उन्हें पार्टी का धन भंडार भरने वाले उन धन पशुओ, नौकर शाहों, व्यवसायियो के निरक्षर समान, नाकारा, ऐयाश और आलसी पूतो का खास ध्यान होता है जिन्हें कोई भी वस्तु पाने के लिए मात्र इच्छा जाहिर करनी होती है और जो खुद तो कभी कुछ पा नहीं सकते. मंत्रियो को किसी और के पैसा कमाने से बड़ा कष्ट होता है खासकर वो जो उन्हें चढ़ावा देने के लिए बाध्य न हो. मंत्री महोदय को कोचिंग वालो से अत्यंत घृणा है.. इसलिए नहीं की ये परीक्षा और शिक्षा की मूल्यांकन व्यवस्था से धोखाधड़ी करते हैं बल्कि इसलिए की जनता की करोडो की भीड़ अरबो इनके पास भेंट स्वरुप चढ़ा आती हैI
कपिल जंतु ने बच्चो का बोझ कम करने के लिए हर तरह की परीक्षा को समाप्त करने का एलान कर दिया है ..क्यों? नहीं, नहीं इससे परीक्षा में फेल होने वाले विसाद में नहीं जायेंगे न इससे फेल होने वाले बच्चो के परिवारों का मनोहारी वातावरण कलुषित नहीं होगा.. ना जी, इससे बहुत अच्छे बच्चे, औसत बच्चे, चौपट विद्यार्थी का अंतर छिप जायेगा.. अच्छा फिर??
इस लम्पट मंत्री ने पैसे से ही सब कुछ ख़रीदा है इसलिए इसने देश भर में एक ही परीक्षा करवाने का बिना पूछे, बिना समझे एलान कर दिया..
क्योंकि अब बच्चो के कुछ हजार रुपये बच जायेंगे.. अच्छा ऐसा क्या?
आज लगभग हर परीक्षा में १० से ४० % सीटें नेताओं और उनके गुर्गो द्वारा बड़े ही व्यवस्थित ढंग से नीलामी कर दी जाती हैं यह कई अरबो का एक निश्चित धंधा है. और इसमें कैबिनेट मंत्री से लेकर परीक्षा माफिया और धंधेबाज गुंडे शामिल होते हैं I जब बोर्ड होने और कई मूल्यांकन परीक्षाओं के होते इतने “मुन्ना भाई” आते हैं तो सोचिये जब बोर्ड की निष्पक्ष मूल्यांकन व्यवस्था नहीं होगी तो क्या होगा? अब चूँकि विद्यार्थी का पहले से वास्तविक मूल्यांकन होगा नहीं तो सीधे मंत्रालय से ही सारी सीटो की बोली लग जाएगी. और जी, इन महान आत्माओं पर कोई उंगली उठाने वाला भी कोई नहीं होगा. क्योंकि अब तो सारे बच्चे बराबर हो गए — ५१ % भी बराबर और ६० % भी अच्छा I इसलिए सुयोग्य विद्यार्थियो की शिक्षा, उनकी परीक्षा करने के बाद अब नेता निर्धारित करेगा की किस बच्चे को डॉक्टर बनना है, किसे इंजिनीअर कौन अच्छा अधिकारी बनेगा कौन अच्छा मैनेजर. अब न कोई ऊँगली उठा पायेगा और न ही ऊँगली कर पायेगा.
और कोचिंग वाले? उनका धंधा जब ठप्प पड़ जायेगा तब ये रोते बिलबिलाते दौड़े मंत्री महोदय के पास जायेंगे I जैसे कभी कोक, पेप्सी पर बहाने से रोक लगाने वाले पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अम्बु मनी राम दौस के पास अरबो का प्रसाद लेकर ये बहु राष्ट्रीय कम्पनियाँ दौड़ी थीं और बस एक ही वर्ष पश्चात् आज हम जानते हैं की उनपर कोई प्रतिबंध नहीं है I इसी तरह से कोचिंग वालो को भी ठेका उठाने का लाइसेंस मिल जायेगा और नेता को अरबो खाने का एक और मौका!!! ये है शिक्षा (और सत्ता) में घुड़की का खेल!
अब इस भ्रष्ट जंतु की नजर आईआईटी जेईई की प्रतिष्ठित परीक्षा पर पड़ी है I आइवी लीग जैसी कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओ द्वारा मान्यता प्राप्त भारत के कुछ चुनिन्दा संस्थानों में शामिल भारतीय प्रौद्योगिकी संसथान आज देश की शान हैं. इस शानदार संसथान की विशिष्ट पंक्ति में शामिल होने वाले सफल पेशेवर छात्रो की अपेक्षा आज देश में उनकी संख्या ज्यादा है जो वहां तक पहुँच नहीं पाए (जो शायद करोडो में होंगे).. मेडिकल, आई आई टी में असफल इन्ही छात्रो का गोलबंद गिरोह ही आज कपिल जंतु के साथ मिलकर नए नए कुचक्र रच रहा है… देश की किसे परवाह है? देश है क्या चीज?
अब तो देश की हड्डी हड्डी बेच दी जाएगी… जाने कल (राज) हो न हो..
आइआइटी की संयुक्त परीक्षा में स्कूली बोर्ड परीक्षा के ४० % नंबर जोड़ने का विचार यु तो दूर से थोडा युक्तिसंगत लगता है पर उतना है नहीं. हर बोर्ड, हर प्रदेश का मूल्यांकन का अपना माप दंड है और अंक प्रतिशत देने की सीमा भी लम्बी है दुसरे, स्कूल में कुछ छात्रो के लिए कई बार व्यक्तिगत या सामाजिक रसूख के चलते अधिक अंक पाना बहुत आसान हो जाता है आश्चर्य ये है की कपिल साब उसी बोर्ड के अंको को शामिल करने की बात कर रहे हैं जिसको उन्होंने इसी साल समाप्त कर दिया है!!? इसलिए चालीस प्रतिशत अंक (शायद २५ % सबसे उपयुक्त हो !) शामिल कर भविष्य के अभियंता चुनना सही नहीं है और इन तरह के निर्णयों में पहले विशेषग्य मंडल या सम्बंधित संसथान से परामर्श लेना तो मानो इन नेताओं ने सिखा ही नहीं है. आज सभी आइआइ टी के छात्र और गुरु गण आन्दोलन रत हैं और मुखर विरोधी भी पर इन मोटी चमड़ीयो पर कोई असर होता दिख नहीं रहा I
देश में १८ केंद्रीय विश्व विद्यालय हैं और करीब ६०,००० अन्य विश्व विद्यालय और संसथान जिनमे डेढ़ लाख से अधिक उच्च शिक्षित आचार्य और करोडो विद्यार्थी हैं .. इन सभी संस्थानों में शिक्षा, शोध के लिए मिलने वाली सरकारी अनुदान व संरक्षण की बेहद कमी है और उससे भी बहुत ही कम प्रोत्साहन, पर इन कपिल साहब ने दिल्ली दक्षिणी(तुगलकाबाद एक्सटेंशन) में सैकड़ो वर्ग किलोमीटर क्षेत्र विदेशी विश्व विद्यालयों को पैठ ज़माने देने के लिए पहले से अधिग्रहण कर लिए हैं I यानि देश की मेधा का अपमान और शिक्षको को दरकिनार करके, अपने शिक्षा केन्द्रों को विश्व स्तरीय बनाने के स्थान पर, विदेशी शक्तियों को अपने व्यवसाय और अप -संस्कृति को फ़ैलाने का सीधा मौका दिया जा रहा है!!
सीबीएसई का कोंग्रेस और कम्म्युनिस्टो ने पहले ही बेडा गर्क किया हुआ है और अपनी विदेशी आका की विशेष इच्छा का पालन करते हुए दिल्ली में शिक्षा का स्तर इतना घटिया कर दिया गया है की दिल्ली विश्व विद्यालय के कोलेजो में अनठानबे प्रतिशत तो लड़कियां ही पाई जाती हैं.. देश की राजधानी दिल्ली में गणित और विज्ञानं जिसमे लडकिय न के बराबर नजर आती थीं उन विषयो को आधुनिकता और प्रयोग के नाम पर इतिहास, साहित्य जैसा बना दिया गया है और अब जिसमे लड़कियां और भोंदू लड़के रट रट कर ९९ % तक अंक पा जा रहे हैं.
ये एक पलायन वादी, यथार्थ से कोसो दूर रहने वाले, हारे हुए और अभी तक हमेशा हराए ही गए, चुनौतियों से भागने वाले, आलंकारिक, स्त्रीत्व से भरे एक कमजोर देश की पहचान हैं जिसने विदेशियों से आजादी तो पा ली है पर अभी न तो देश के रूप में खड़े हो कर चुनौतियों से लड़ने के लायक हो पाया है और न ही अपने लिए विशिष्ट व्यवस्था का ही निर्माण कर पाया है. ये देश फिल्म उद्योग और अन्य विकारो (भ्रष्टाचार आदि) के लिए तो दुनिया में कु-ख्यात हो गया है वहीँ शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे जनहित के सबसे प्रमुख मुद्दों को रसातल में पहुंचा कर इस देश के नेताओं ने देश का बंटाधार सुनिश्चित कर दिया है I मीडिया और छद्म बुद्धिजीवियों का इस इस स्थिति में पहुँचने के लिए बड़ा योगदान है और वास्तविक विशेषज्ञों को तो किनारे ही कर दिया गया है I
एक बाजारू, शोशेबाज समाज के लिए शिक्षा इत्यादि तो घाटे के ही सौदे हैं और न तो ये किसी के लिए चुनाव का मुद्दा है, न किसी का व्यक्तिगत आन्दोलन, न इस में ग्लैमर है न इसमें मसाला, न इससे टी आर पी बढ़ेगी, न इसमें चोरी की जा सकेगी न इससे कोई वोट बैंक सधेगा इसमें कुछ मिलेगा नहीं इसमें तो बस जायेगा..
हम अपने महाविनाश की तरफ तेजी से दौड़ रहे हैं…
कोई मानव तो कुछ कर नहीं सकता पता नहीं ईश्वर की क्या इच्छा है?!!

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