आइये कुछ पढ़ते हैं, तनिक लम्बा वर्णन होगा पर, पढ़ें तो ---
ये है
मोहम्मद बन कासिम (७१२-७१५)
मोहम्मद बिन कासिम द्वारा भारत के पश्चिमी भाग में चलाये गये जिहाद का विवरण, एक मुस्लिम इतिहासकार अल क्रूफी द्वारा अरबी के 'चच नामा' इतिहास लेख में लिखा गया है। अंग्रेजी में अनुवाद एलीयट और डॉसन ।
सिंध में जिहाद
सिंध के कुछ किलो को जीत लेनेके बाद बिन कासिम ने ईराक के गवर्नर अपने चाचा हज्जाज को लिखा था- ' सिवास्तान और सीसाम के किले पहले ही जीत लिए गये हैं। गैर-मुसलमानो का धर्मांतरण कर दिया गया है या फिर उनका वध कर दिया गया है। मूर्ति वाले मंदिरों के स्थान पर मस्जिदे खड़ी कर दी गई हैं, बना दी गई हैं।
(चच नामा अल कूफी : ए लीयट और डाउसन खड १ पृष्ठ १६४)
जब बिन कासिम ने सिंध विजय की , वह जहाँ भी गया कैदियों को अपने साथ ले गया और बहुत से कैदीयों को, विशेषकर महिला कैदियो को, उसने अपने देश भेज दया। राजा दाहिर की दो पुत्रियाँ- परिमल देवी और सूरज देवी- जिन्हें खलीफा के हरम को सम्पन्न करनेके लिए हज्जाज को भेजा गया था वे हिन्दू महिलाओं के उस समूह का भाग थीं, जो युद्ध के लूट के माल के पाँचवे भाग के रूप में इस्ला मी शाही खजाने के भाग के रूप में भेजा गया था। चच नामा का विवरण इस प्रकार है- हज्जाज की बिन कासिम को स्थायी आदेश थे की हिन्दुओं के प्रति कोई कृपा (दया) नहि की जाए, उनक गर्दने काट दी जाएँ और म हिलाओं को और बच्चो को कैदी बना लिया जाए' (उसी पुस्तक में पृष्ठ १७३)
हज्जाज की ये शर्ते और सूचनाएँ कुरान के आदेश के पालन के लीए पूणत अनुरूप ही थीं। इस विषय में कुरान का आदेश है- 'जब कभी तुमहे मिले, मूर्ति पूजको का वध कर दो। उनहे बंदी बना ( गिरफतार कर) लो, घेर लो, रोक लो, घात के हर स्थान पर उनकी प्रतीक्षा करो' (सूरा ९ आयत ५) और 'उनमे से जिस किसी को तुम्हारा हाथ पकड़ ले उन सब को अ ल्लाह ने तु म्हें लूट के माल के रुप में दिया है।'
(सूरा ३३ आयत ५८)
रेवार क विजय के बाद कासिम वहाँ तीन दिन रुका I तब उसने छः हजार आदमियों का वध किया। उनके अनुयायी, आश्रित,महिलाय और बच्चे सभी गिरफ्तार कर लये गये। जब कै दियो की गिनती की गई तो वे तीस हजार व्यक्ति निकले जिनमे तीस सरदारों की पुत्रियाँ थीं, उनहे हज्जाज के पास भेज दीया गया। (वहि पुसतक पृष्ठ १७२-१७३)
कराची का शील भंग, लूट पाट एवम् विनाश
'कासिम की सेनाय जैसे ही देवालयपुर (कराची) के किले में पहुँचीं, उन्होंने कत्ले आम, शील भंग, लूटपाट का मदनोत्सव मनाया। यह सब तीन दिन तक चला। सारा किला एक जेल खाना बन गया जहाँ शरण में आये सभी 'काफिर ' - सैनिको और नागरिक- का क़त्ल और अंग भंग कर दिया गया। सभी काफिर महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें मुस्लिम योद्धाओं के मध्य बाँट दया गया। मुख्य मंदिर को मस्जिद बना दया गया और उसी सुर्री पर जहाँ भगवा ध्वज फहराता था, वहाँ इस्लाम का हरा झंडा फहरानेलगा। 'काफिरो' की तीस हजार औरतों को बग़दाद भेज दिया गया।'
(अल- बदौरी की फुतुह-उल-बुलदनः अनु. एलियट और डाउसन ख ड १)
ब्रह्मनाबाद म कत्ले आम और लूट
'मुहम्मद बिन कासिम ने सभी काफिर सैनिको का वध कर दिया और उनके अनुयायियो और आश्रितो को बंदी बना लिया। सभी बंदियों को दास बना दिया और प्रत्येक के मूल्य तय कर दिए गये। एक लाख से भी अधिक् 'काफिरो' को दास बनाया गया।'
(चचनामा अलकुफ : एलियट और डाउसन खड १ पृष्ठ १७९)
सुबुक्तगीन (९७७-९९७)
'
काफिर द्वारा इस्लाम अस्वीकार देने, और अपवित्रता से पवित्र करने के लिए, जयपाल की राजधानी पर आक्रमण करने के उद्देश्य से, सुल्तान ने अपनी नीयत की तलवार तेज की । अमीर लमघन नामक शहर, जो अपनी महान शक्ति और भरपूर दौलत के लिए विख्यात था, की ओर असर हुआ। उसने उसे जीत लिया, और निकट के स्थान, जिनमे काफ़िर बसते थे, में आग लगी दी , मुर्तिधारी मंदिरों को ध्वंस कर दिया और उनम इसलाम स्थापित कर दिया। वह आगे की ओर बढ़ा और उसने दुसरे शहर को जीता और नींच हिन्दुओ का वध किया; मूर्ति पूजको का विध्वंस किया और मुसलमानो की महिमा बढ़ाई।
समस्त सीमाओं का उल्लंघन कर हिन्दुओं को घायल करने और क़त्ल करने के बाद लूट हुई संपत्ति के मूल्य को गिनते गिनते उसके हाथ ठ डे पड़ गये। अपनी बलात विजय को पूरा कर वह लौटा और इस्लाम के लिए प्राप्त विजयो के विवरण की उसने घोषणा की। हर कसी ने विजय के परिणामो के प्रति सहमती दिखाई और आनन्द मनाया और अल्लाह को ध न्यवाद दिया।'
(तारिखी-ई-या मिनीः महमूद का मंत्री अल-उतबी अनु. एलियट और डाउसन ख ड २ पृष्ठ २२, और तारीख-ई-सुबुक्तगीन स्वाजा बैहागी, अनु. एलियट और डाउसन खड २)
गज़नी का महमूद (९७७-१०३०)
भारत के विरुद्ध सुल्तान महमूद के जिहाद का वर्णन उसके प्रधानमंत्री अल-उतबी द्वारा बड़ी सूक्ष्म सूचनाओं के साथ भी किया गया है और बाद में एलियट और डाउसन द्वारा अंग्रेजी म अनुवाद करके अपने ग्रन्थ, 'द स्टोरी ऑफ इण्डिया एज़ टोल्ड बाइ इट्स ओन हिस्टोरियंस के खड २ में उपलब्ध कराया गया है।'
पुरुदगापुर (पेशावर) में जिहाद
अल-उतबी ने लखा- 'अभी मध्यान्ह भी नहीं हुआ था की मुसलमान ने 'अललाह के शत्रु' हिन्दुओं के विरुद्ध बदला लिया और उनमें से पंद्रह हजार को काट कर कालीन की भाँति भूमि पर बिछा दिया ताकि शिकारी जंगल जानवर और पक्षी उन्हें अपने भोजन के रूप में खा सके । अल्लाह ने कृपा कर हमें लूट का इतना माल दिलाया है कि वह गिनती की सभी सीमाओं से परे है
यानि की अनगिनत है जिसमे पाँच लाख दास, सुदर पुरुष और महिलाय हैं। यह 'महान' और 'शोभनीय' कार्य बृहस्पतिवार मुहर्रम की आठवी ३९२ हिजरी (२७.११.१००१) को हुआ'
(अल-उत्बी की तारिख -ई-यामिनी, एलीयट और डाउसन खड प ृठ २७)
नन्दनापुर की लूट
अल-उत्बी ने लिखा- 'जब सुल्तान ने हिन्द को मूर्ति पूजा से मुक्त कर दिया था, और उनके स्थान पर मस्जिद खड़ी कर दी थीं, उसके बाद उसने उन लोगो को, िजनके पास मुर्तिया पाई गयीं थी उन्हें दंड देने का निश्चय किया i असंखय, असीमित व अतुल लूट के माल और दासों के साथ सुल्तान लौटा। ये सब इतने अधिक् थे की इनका मूल्य बहुत घट गया और वे बहुत सस्ते हो गये;
और अपने मूल निवास स्थान में इन अति सम्माननीय हिन्दू पुरुषो को, अपमानित किया गया क वे मामूली दुकानदारो के दास बना दिए गये। उन्हें घोड़ो में बांध कर घोड़ो को भगा दिया गया, उन्हें खेतो और कोल्हुओ में बैलो के साथ जोत दिया गया, उनके अंगो को एक एक कर भंग कर दिया गया, उन्हें इतनी सजा दी गयी जिसके वो लायक थे.. यह तो अल्लाह की कृपा है उसका उपकार है की वह अपने पंथ को आश्रय और सम्मान देता है और गैर-मुसलमान को अपमान देता है I ' (उसी पुसतक में पृष्ठ ३९)
थाने श्वर में (कत्लेआम) नरसंहार
अल-उत्बी लिपिबद्ध करता है- 'इस कारण से थानेश्वर का सरदार अपने दुर्विश्वास में और अल्लाह की अस्वीकृति में उद्धत था।
अतः सुलतान उसके विरुद्ध अग्रसर हुआ ताकी वह इसलाम की वास्त्विकता का आदर्श स्थापित कर सके और मूर्तीपूजा का मूलो छेदन कर सके। गैर-मुसलमान ( हिन्दू बौद्ध आदी) का रक्त इस प्रचुरता, आधिक्य व बहुलता से बहा की नदी के पानी का रंग परिवर्तित हो गया और लोग उसे पी न सके । यदि रात्रि न हुई होती और प्राण बचाकर भागने वाले हिन्दुओं के भागने के चिन्ह भी गायब न हो गये होते तो न जाने कितने और शत्रुओंका वध हो गया होता। अ ल्लाह की कृ पा से विजय प्राप्त हुई जिसने सर्वश्रेष्ठ पंथ इस्लाम, की सदैव के लिए स्थापना कर दी (उसी पुसतक में पृष्ठ ४०-४१)
फ़रिश्ता के मतानुसार, 'मुहम्मद की सेना, गजनी में, दो लाख बंदी लाई थी जिसके कारण गजनी एक भारतीय शहर की भाँति लगता था क्योंकि हर एक सैनिक अपने साथ कई कई दास व दासियाँ लाया था। (फ़रिश्ता : ए लियट और डासन -खंड I पृष्ठ २८)
सरासवा म नर संहार
अल-उत्बी आगे लिखता है- 'सुलतान ने अपने सै निको को तुरत आ क्रमण करने का आदेश् दिया I परिणाम स्वरुप अनेक गैर-मुसलमान बंदी बना लिए गये और मुसलमानो ने लूट के माल की तब तक कोई चिंता नहीं की जब तक उन्होंने अविश्वासियों, ( हिन्दुओं) सूर्य व अग्नि के उपासको का अनंत वध करके अपनी भूख पूरी तरह न बुझा ली। लूट का माल खोजने के लिए अल्लाह के मित्रो ने पूरे तीन दिन तक वध किये हुए अविश्वासियो ( हिन्दुओं) के शवों की तलाशी ली ...बंदी बनाये गये व्यक्तियों की संखया का अनुमान इसी त य से लगाया जा सकता है की हर एक दास दो से लेकर दस दिरहम तक में बिका था। बाद म इन्हें गजनी लेजाया गया और बड़ी दूर-दूर के शहर से व्यापारी इन्हें खरीदने आये थे।...गोरे और काले, धनी और निर्धन, दासता के एक समान बंधन म , सभी को मिश्रित कर दिया गया।'
(अल-उत्बी : एलियट और डासन - खड ii पृष्ठ ४९-५०)
अल-बरूनी ने लिखा था- 'महमूद ने भारती की सम्पन्नता को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया । इतना आश्चर्य जनक शोषण व विध्वंस किया था की हिन्दू धूल के कानो की भाँति चारो ओर बिखर गये थे। उनके बिखरे हुए अवशेष निश्चय ही मुसलमानो की चिरकालीन प्राणलेवा, अ धिकतम घृणा को पोषित कर रहे थे।'
(अल बरुनी- तारीख-ई- हिन्द, अनु. अलबरुनीज़ इि डया, बाई ऐडवड सचाउ, लंदन, १९१०)
सोमनाथ की लूट
'सुल्तान ने मंदिर में विजयपूवक प्रवेश किया, शिव लिंग को टुकड़े-टुकड़े कर तोड़ दिया, जितने में समाधान हुआ उतनी संपत्ति को आधिपत्य में कर लिया I वह संपत्ति अनुमानतः दो करोड़ दरहम थी। बाद में मंदिर का पूर्ण विध्वंस कर, चूरा कर, भूमि में मिला दिया, शिवलिंग के टुकडो को गजनी लेगया, जिन्हें जामी मस्जिद की सीढियों में लगाने के लिए प्रयोग किया' (ताकि इस्लामी नागरिक मूर्तिपूजको को धूल में मिलाने और उनका गौरव लूट लेने का स्वयं आनंद उठा सकें)
(तारीख-ई-जैम-उल-मासीर, द स्ट्रगल फौर ऐ एम्पायर-भारतीय विद्या भवन पृष्ठ २०-२१)
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मुहम्मद गौरी (११७३-१२०६) का कारनामा :
हसन निज़ामी ने अपने ऐतिहासिक लेख, 'ताज-उल-मासीर' , में मुहम्मद गौरी के व्यक्तित्व और उसके द्वारा भारत के बलात् विजय का विस्तृत वर्णन किया है।
युद्धो की आवश्यकता और लाभ के वणन , िजसके बिना मुहम्मद का रेवड़ अधूरा रह जाता है अर्थात् उसका अहंकार पूरा नहीं होता, के बाद हसन नज़ामी ने कहा ' की पंथ के दायित्वो के निर्वाह के लिए जैसा वीर पुरुष चाहिये, वह सुल्तानों के सुल्तान, अविश्वासियो और बहु देवता पूजको के विध्वंसक, मुहम्मद गौरी के शासन में उपलब्ध हुआ; और उसे अल्लाह ने उस समय के राजाओं और शहंशाह में से छांटा था, ' क्योंकि उसने अपने आपको पंथ के शत्रुओं के मूलोच्छेदन एवं सवंश् विनाश के लिए नियुक्त किया था। उनके हदय के रक्त से भारत भूमि को इतना भर दिया था, की कयामत के दिन तक यात्रियों को नाव म बैठकर उस गाढ़े खून की भरपूर नदी को पार करना पड़ेगा। उस ने जिस किलेपर आक्रमण कि या उसे जीत लिया, मिटटी में मिला दिया और उस (किले) की नींव व खम्भों को हाथियो के पैर के नीचे रौंदकर भस्मसात कर दया; और मूर्तिपूजको के सारे विश्व को अपनी अच्छी धार वाली तलवार से काट कर नर्क की अग्नि में झोंक दिया; मंदिरों, मूर्तियों के स्थान पर मस्जिदें बना दी ।'
(ताज-उल-मासीर : हसन नजामी, अनु. ए लयट और डाउसन, ख ड II पृ ठ २०९)
अजमेर पर इस्लाम की बलात् स्थापना
हसन नजामी ने लखा था- 'इस्लाम की सेना पूरी तरह विजयी हुई और एक लाख हिन्दू पलक झपक की तेजी के साथ नरक क अग्नि में चले गये...इस विजय के बाद इस्लाम की सेना आगे अजमेर की ओर चल दी जहाँ हम लूट में इतना माल व संपत्ति मिले की समुद्र के रहस्मयी कोषागार और पहाड़ एकाकार हो गये।
'जब तक सुल्तान अजमेर में रहा उसने मंदिरों का व विध्वंस किया और उनके स्थानों पर मस्जिद बनवाई ।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ २१५)
देहली में मंदिरों का ध्वंस<
हसन नजामी ने आगे लिखा-' विजेता ने दिल्ली में प्रवेश किया जो धन संपत्ति का केन्द्र है और आशीर्वादो की नींव है। शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों को मंदिरों और मू र्तियों से तथा मू र्तिपूजको से रहित वा मुक्त बना दिया यानि की सभी का पूर्ण विध्वंस कर दिया। एक अल्लाह के पूजको (मुसलमानो) ने मंदिरों के स्थान पर मस्जिद खड़ी करवा दी, बनवा दीं I' (वही पुस्तक पृष्ठ २२२)
वाराणसी का ध्वंस (शीलभंग)
'उस स्थान से आगे शाही सेना बनारस की ओर चली जो भारत की आत्मा है और यहाँ उन्होंने ने एक हजार मंदिरों का ध्वंस किया तथा उनके नीवों के स्थान पर मस्जिदें बनवा दीं; इस्लामी पंथ केंद्र की नींव रखी।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२३)
हिन्दुओं के सामूहिक वध के विषय में हसन निजामी आगे लिखता है, 'तलवार के धार से हिन्दुओं को नर्क की आग में झोंक दिया गया। उनके सरों से आसमान तक ऊंचे तीन बुर्ज बनाये गये, और उनके शवों को जंगल पशुओं और पक्षियों के भोजन के लए छोड़ किया गया।'
(वह पुस्तक पृष्ठ २९८)
इस सम्बन्ध में मिनहाज़-उज़- सिराज़ ने लिखा था-'दुर्ग रक्षको में से जो बुद्धिमान एवं कुशाग्र बुद्धि के थे, उन्हें धर्मान्तरण कर
मुसलमान बना लिया किन्तु जो अपने पूर्व धर्म पर आरूढ़ रहे, उन्हें वध कर दिया गया।'
(तबाकत-ई-नसीरी - मिनहाज़, अनु. एलियट और डाउसन, ख ड II पृ ठ २२८)
>गुजरात म गाज़ी लोग (११९७)
गुज़रात की विजय के विषय में हसन निजामी ने लिखा- 'अधिकांश हिन्दुओं को बंदी बना लिया गया और लगभग पचास हजार को तलवार वारा वध कर नर्क भेज दिया गया, और कटे हुए शव इतने थे की मैदान और पहाड़ियां एकाकार हो गयीं ।
बीस हजार से अधिक हिन्दू जिनमे से अधिकांश महिलाएं ही थीं, विजेताओं के हाथ दास बना दिए गये। (वही पुस्तक पृष्ठ २३०)
देहली का पवित्रीकरण वा इस्लामीकरण
'जब सु तान देहली वापस लौटा उसे हिन्दुओं ने अपनी हार के बाद पुनः जीत लिया था। उसके आगमन के बाद मूर्तियुक्त मंदिर का कोई अवशेष व नाम नही बचा। अविश्वास के अंधकार के स्थान पर पंथ (इस्लाम) का प्रकाश जगमगाने लगा।'
(वही पुसतक पृष्ठ २३८-३९)
कुतुबुद्दीन ऐबक (१२०६-१२१०)
हसन नजामी ने अपने ऐतीहासिक लेख ताज-उल-मासीर में लिखा था, 'कुतुबुद्दीन इस्लाम का शीर्ष है और गैर-मुसलमानो का विध्वंसक है .... उसने अपने आपको शत्रुओं -हिन्दुओं से - के धर्म के के मूलोच्छेदन यानी की सम्पूर्ण विनाश के लिए नियुक्त किया था, और उसने हिन्दुओं के रक्त से भारत भूमि को भर दिया ...उसने मूर्ति पूजको के सम्पूर्ण विश्व को नर्क की अग्नि में झोंक दिया था...और मंदिरों और मूर्तियों के स्थान पर मस्जिदें बनवा दी थीं।'
(ताज-उल-मासीर हसन निजामी अनु. ए लयट और डाउसन, खंड २ पृ ठ २०९)
'
कुतुबुद्दीन ने जामा मस्जिद देहली बनवाई और जिन मंदिरों को हाथियों से तुड़वाया था, उनके सोने और पत्थरो को इस मस्जिद में लगाकर इसे सजा दिया I'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२२)
इस्लाम का कालिंजर म प्रवेश
'मंदिरों को तोड़कर, भलाई के पवित्र आगारो,- मस्जिदों में परिवर्तित कर दिया गया और मूर्ति पूजा का नामो निशान मिटा दिया गया .... पचास हजार व्यक्तियों को घेरकर बंदी बना लिया गया और हिन्दुओं को तड़ातड़ मार (यंत्रणा) के कारण मैदान काला हो गया। (उसी पुसतक में पृष्ठ २३१)
'अपनी तलवार से हिन्दुओं का भीषण विध्वंस कर भारत भूमि को पवित्र इस्लामी बना दिया, और मूर्ति पूजा की गन्दगी और बुराई को समाप्त कर दिया , और सम्पुर्ण देश को बहुदेवतावाद और मूर्तीपूजा से मुक्त कर दया, और अपने शाह उत्साह , निडरता और शक्ति द्वारा किसी भी मंदिर को खड़ा नहीं रहने दिया ।'
(वह पुस्तक पृष्ठ २१६-१७)
ग्वालियर में इस्लाम
ग्वालियर में कुतुबुद्दीन के जिहाद के विषय में मिन्हाज ने लिखा था- 'पवित्र धर्म युद्ध के लिए अल्लाह के, दैवी, यानी की कुरान के आदेशानुसार धम शत्रुओ- हिन्दूओ-के विरुद्ध उन्होंने रक्त की प्यासी तलवारे बाहर निकाल ली ।'
(टबाकत-ई-नासीरी , मिनहाज़-उज़- सिराज, अनु. एलीयट और डाउसन, ख ड II पृष्ठ २२७)
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गुप्त वंश (260 BC या ~ २०३ विक्रम संवत से ७०० AD या ६५० विक्रमी संवत तक) के शक्तिहीन होने और भारतीय विद्रोही गुटों-राज्यों, जो वास्तव में उनके ही पूर्व सामंत या सेनाधिकारी रह चुके थे, के आपस में युद्धरत रहने के कारण (और अन्य कारन*) गुप्त वंशियो द्वारा स्थापित विश्व का महानतम साम्राज्य "आर्यावर्त" शून्य की स्थिति में खड़ा था जहाँ पिछले लगभग सहस्त्र वर्षो का अखंड भारत खंडित और अशक्त हो चूका था और विध्वंस को आसन्न था !!
एक भौगोलिक खंड जिसकी सीमायें विश्व के कई हिस्सों में थीं, एक साम्राज्य जिसने भारत यानि आर्यावर्त को अथाह ऐश्वर्य, रत्ना-आभूषण- सोना-हीरा एवं अन्य धातुओ, विश्व भर से जीती राशियों के कारण विश्व का सबसे संपन्न देश बना दिया था जब विश्व की ७५% से अधिक व्यापर पर भारत की पकड़ थी, नागरिक सुखी, धार्मिक या वास्तव में धर्म भीरु * (अन्यत्र लेख में वर्णित) थे भारत के इस आखिरी वैश्विक साम्राज्य के अशक्त (संपूर्ण नष्ट नहीं) होने से अत्यंत भंगुर दशा में आ चूका था जिससे मध्य एशिया और मंगोलों की सालो से नियंत्रण में रखी भूखी, नंगी बर्बर अतात्तायी कौम, जिसकी लालची नजरे पिछले २००-३०० वर्षो से इस सोने के देश जिसे उन लालचियो ने ( गरुड़* से) "चिड़िया" बना दिया I
और फिर जो दौर प्रारभ हुआ तो तुर्क ईरान की सीमा के पार से, जो तात्कालिक भारत या "आर्यावर्त" का पश्चिमी छोर था और जो वास्तव में उन अभारतीय अन्य देशियो के लिए उस परम शक्तिशाली साम्राज्य आर्यावर्त का उनके उन्मुख पक्ष था (इसलिए ईरान नाम दिया गया आर्यः= आर्यन=आर्यान=आरियान= ईरान), नवांकुरित कबीले बारी बारी से इस देश का मांस नोचने को आक्रमण करने लग गए.. सैकड़ो सालो से उबल रही घृणा, लालच एवं ईर्ष्या की आग उनकी जंगली, खूंख्वार तलवारों में उतरकर कर भारत के हर नगर को मिटाने के लिए उद्धत हो गयी.. जिस आर्यावर्त एवं उसके अत्यंत संपन्न, परिष्कृत एवं उछ्शील निवासियों के बारे में सुन पढ़ कर सैकड़ो सालो से वे पिछड़े जंगली लालायित रहे थे जिसकी सम्पदा पर वे हमेशा से लालची नजरे गडाए बैठे थे जिसकी हर पहचान से उन्हें वितृष्णा थी जिसके नियंत्रण एवं प्रभुत्व से उनकी आत्माएं सालो से बिलबिला रही थीं, बौद्ध धर्म एवं हिन्दू-वैदिक धर्म के धर्म गुरुओं के सुदूर तक पहुँच यानि तुर्क(तुरग-)स्थान, कर्कस्थान-किर्गिस्तान, दक्षिणी रूस, दक्षिणी-पश्चिमी यूरोप तक होने से उनकी कुंठा एवं क्षोभ का पारावार न था.. उन्हें तो उस प्रचंड सर्वशक्तिमान साम्राज्य में एक कमजोरी की प्रतीक्षा थी I उसके स्वयं ही ढल जाने की प्रतीक्षा थी!!!
एक बार वैदिक-हिन्दू राजा दाहिर को पराजित करने के बाद उन नीच लुटरो के लिए मानो खजाने का द्वार खुल गया... धन सम्पदा के स्वर्ग में म्लेच्छ, आततायी लुटेरो का अवैध प्रवेश हो गया.. लाखो की संख्या में मंदिर तोड़े गए कई हजार मंदिरों में प्रत्येक में १००० से ४००० मन तक सोना-चांदी-हीरे-रत्न जवाहरात निकले इन मंदिरों तक पहुँचने के पहले इन मुग़ल लुटेरो ने कई कई हजार एवं कई लाख हिन्दुओ को काट दिया फिर उनके कटे सिरों की लड़ियाँ बनायीं.. लाशो के सीने का खून निकाल कर नगरो के मध्य में कुण्ड बनाया.. कटे सिरों के छोटे पहाड़ बनाकर किलो के दरवाजे पर छोड़ दिए गए.. हिन्दुओ खासकर हिन्दू सैनिको क्षत्रियो एवं पुजारियों-ब्राह्मणों एवं अन्य महत्वपूर्ण नागरिको के कटे सिरों की झालरें बनाकर किलो की दीवारों पर नुमाईश के लिए छोड़ दी गयीं... उनके धडो को चील-कौवों एवं अन्य पशुओं के खाने के लिए छोड़ दिया गया... उन नगरो, जिनमे से कुछ का उल्लेख ऊपर हुआ है, में प्राप्य हर कीमती वस्तु वहशी लुटेरे मुग़ल सैनिको द्वारा लूटकर अपने रेहड़ में शामिल कर ली गयी एवं उसमे से तय हिस्सा खलीफा यानि मुस्लिम बादशाह को नजर करने के लिए कई कई हजार घोड़े-बैल-गधा गाडियों में अरब के लिए भेज दी जाती रहीं.. युवा-कमसिन स्त्रियों एवं पुष्ट युवक एवं बालको को क्रमशः हरम में एवं गुलामो की तरह प्रयोग करने एवं अरब एवं यूरोप के गुलाम बाजारों में बेचने के लिए बाँध बांध कर काफिलों में तुर्किस्तान को भेज दिए गए ....
हर एक हिन्दू प्रदेश छिन्नभिन्न कर दिए जाने के समीप से समीपतम होता गया... १५०- २०० सालो के अगले अंतराल पर ९६० इसवी से जो अगला दौर शुरू हुआ उसने सन १५२५ इसवी तक विश्व में नरसंहार किये जाने की महानतम संख्या को भी शर्मसार कर दिया (निगोशिएशंस इन इंडिया: लाल)... मात्र ५२५ वर्षो में साढ़े आठ करोड़ हिन्दुओ का संहार कर दिया गया .. साढ़े आठ करोड़ हिन्दू ...कब? जब भारत की जनसँख्या १३-१४ करोड़ से अधिक नहीं थी और विश्व की जनसँख्या ही २० करोड़ से अधिक नहीं थी.. यानि आज की जनसँख्या की गणना से कोई ७०-८० करोड़ से अधिक हिन्दुओ का निर्दयतापूर्वक संहार हो गया.... ऐसा सामूहिक अल्पावधि मनुष्यों का नाश मानव की जानकारी में नहीं है!!! न हो सकती है!!
४०० ईसापूर्व से प्रारंभ (मौर्य एवं तत्पश्चात) गुप्त वंशियो द्वारा स्थापित "अखंड भारत" जो काल महाभारत काल के बाद सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बन पाया था, जिसे चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक एवं उसके बाद चन्द्रगुप्त प्रथम, महान समुद्रगुप्त , चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य सह्सांक, स्कंदगुप्त, कुमारगुप्त से लेकर विष्णु-जीवित-हर्ष व पुरुगुप्त आदि (३०)प्रचंड योद्धाओ ने विदेशी अक्रान्ताओ-शक, हूण, यवन, मार्जार, सुंग, मुरुंड आदि से इस परम पवन आदि देव भूमि भारत वर्ष को सुरक्षित बनाये रखा पर उन महाभुजा विश्वविजयी वीरो के अवसान पश्चात् आए इन मुग़ल लुटेरो के तूफ़ान ने इस सभ्यता के शिखर देश को गुमनामी, पराजय, गुलामी, आतंक, नाश के गर्त में धकेल दिया..
इस आतंक की आंधी में <strong>ज्ञान-विज्ञानं, सम्पदा-ऐश्वर्य, भवन-महल-मंदिर, गुरुकुल-विश्वविद्यालय-मठ- आश्रम, किले-पुस्तकालय-शोध संसथान इत्यादि से लेकर विद्वानों यानि ब्राह्मण , शूरवीर योद्धा क्षत्रियो विशेषकर, एवं अन्य सभी हिन्दू नागरिको का नाश कर दिया गया मनुष्यों को उनके मूल धर्म-आस्था से विमुख कर दिया गया, उनकी नस्लीय पहचान के हर चिन्ह, उनके गौरव के हर अंश उनके अस्तित्व के हर हिस्से को समूचा ध्वस्त कर दिया गया ... बचने वाले कम ही थे.. कइयो को जान बचा कर देश या हिमालयी व पठारी-वन क्षेत्रो में छुप जाना पड़ा..
हिन्दू सैनिको के मारे जाने गुलाम बना लिए जाने के पश्चात् हिन्दू महिलाओ के साथ जी भरकर हवस की पूर्ती की गयी, मुगली सैनिको को निरीह हिन्दू स्त्रियों-बालिकाओ के साथ खेलने कुछ भी करने के पूरी छूट थी, उनके साथ कई कई दिन तक चीरहरण चलता रहा बलात्कार होता रहा , बलात्कार के बाद उनके पेट फाड़ दिए गए, आंते निकल दी गयीं, हाथ पैर काट कर इधर उधर फेंक दिए गए..उन स्त्रियों के जिनको बचाने वाला कोई नहीं था... कई संपन्न घरो की स्त्रियों को खलीफा को नजर करने के लिए गुलाम बनाकर भेज दिया गया जिसमे से कई भीषण यात्रा के दौरान पीड़ा या मुग़ल सैनिको द्वारा उपभोग किये जाने के कारन मृत्यु को प्राप्त हो गयी और इस प्रकार भविष्य की अधिक अपमान और कष्ट से पहले ही मुक्त हो गयीं....
इसपर भी आज के तथाकथित प्रगतिशील प्रबुद्ध इतिहासकारों का कहना है की मुग़ल इस देश में प्रेमपूर्वक आए थे.. उन्होंने इस्लाम पंथ बड़े ही सहिष्णु- स्वतंत्र विधियों से फैलाया!! और क्यों नहीं कहेंगे क्योंकि वो उन्ही यूरोपिअनो की भाषा बोलते हैं जिन्होंने अरबियो से भारत के बारे में जाना ..उन्ही अरबियो से, जिन्होंने ऐसे अभागे देश का इतिहास लिखा ... और वही अंग्रेजो-यूरिपिअनो और मुगलों का लिखा हमारा इतिहास हम आज तक पढ़ रहे हैं..
लुटेरो मुग़ल आक्रान्ताओं ने लाखो-करोड़ों भवन-किले-महल-मंदिर गिराए , पर साथ ही ज्ञान के हमारे विशिष्ट केन्द्रों यथा विश्वविद्यालय, गुरुकुल, पुस्तकालय इत्यादि को भी जला डाला , हमारी बौद्धिक शक्ति और हमारे अस्तित्व के आधार ज्ञान के महत्वपूर्ण धरोहर - धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और परावैज्ञानिक पुस्तकों, पांडुलिपियों और उन्हें जानने पढने वाले विद्वान्-आचार्यो को भी नष्ट कर डाला और, मिटा डाला हमारे सारे लिखित इतिहास को (लगभग) ...यहाँ जो भी प्रस्तुत है उस इतिहास वृत्तान्त का एक छोटा अंश है ... लुटेरो, हत्यारे मुगलों ने नहीं भारतभूमि को नेस्तनाबूद ही नहीं किया बल्कि इस हाहाकारी हत्याकांड, लूट और व्याभिचार को अपने इतिहासकारों से लिखाया भी.. कुछ भारतीयों-हिन्दुओं का भी लिखा है जो साजिशन कालकोठरी में डलवा दिया गया है...
पर फिर भी हमारी दुर्दशा अपमान की कहानी समूचे विश्व को मालूम है ..इस देश की हर सम्पदा लूट खसोट कर विदेशी जंगली राज्यों में पहुंचा दी गयी .. पर हमें अपना इतिहास नहीं मालूम ...कहते हैं अनभिज्ञता अत्यंत सुखकारी है... और, कितने सुखी हैं हम !!
बीते १००० सालो में १२ करोड़ से अधिक हिन्दू अपने घरो में निर्दयतापूर्वक काट डाले गए ... आज की सांख्यिकी में यह संख्या ९० करोड़ से ऊपर जाती है.. इतने हिन्दू इस अल्प अवधि में नष्ट कर दिए गए जितने कुल मनुष्य इस भूभाग में पिछले ५००० सालो में प्राकृतिक कारणों से भी नहीं मरे.. क्या हुआ होगा इन विगत ६०० सालो में जब इस देश के हर कोने में दर्दनाक आर्तनाद सुनाई देता होगा.. दर्द, अपमान, भय, चीख पुकार .... आतंक!!
इतना बड़ा नरसंहार, इतने बेबस, हतप्रभ, आशंकित लोग... कितनी अतृप्त आत्माएं.. . कहते हैं हमारे पूर्वजो की आत्माएं हमें ऊपर से देखती हैं... क्या वो हमसे कुछ चाहती होंगी..? क्या वो हमसे कुछ कहती होंगी? क्या हमने कभी सोचा है? क्या वो खुश होंगी?
खुश होंगी या नहीं ..हमें क्या मालूम? हमें क्या मतलब?
क्या आज हम जिन्दा हैं? क्या हम कहीं हैं..?
हम हैं कहाँ हम तो अपने उस राष्ट्र-शरीर की छाया भी नहीं हैं... उस महा आघात ने इस राष्ट्र का अस्तित्व मिटा दिया.. उस महा आतंक ने हमारी चेतना को कंपा दिया.. हम विचारो, संवेदना से शून्य हो गए.. हमारा महान वैश्विक अस्तित्व समूचा मिटा दिया गया.. हम आंख उठाकर, सर उठाकर चलने लायक नहीं छोड़े गए.. और आज तक वही दशा है..
क्या हम उन्हें अपना पूर्वज मानते हैं? क्या हम कुछ सोच सकते हैं उनके बारे में? क्या हम कुछ कर सकते हैं... क्या हम कुछ करेंगे?
हमने अभी तक तो कुछ नहीं किया...........
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हे आर्यावर्त !!
ये है
भारत में इस्लामी जिहाद-इतिहास के पन्नो से
मोहम्मद बन कासिम (७१२-७१५)
मोहम्मद बिन कासिम द्वारा भारत के पश्चिमी भाग में चलाये गये जिहाद का विवरण, एक मुस्लिम इतिहासकार अल क्रूफी द्वारा अरबी के 'चच नामा' इतिहास लेख में लिखा गया है। अंग्रेजी में अनुवाद एलीयट और डॉसन ।
सिंध में जिहाद
सिंध के कुछ किलो को जीत लेनेके बाद बिन कासिम ने ईराक के गवर्नर अपने चाचा हज्जाज को लिखा था- ' सिवास्तान और सीसाम के किले पहले ही जीत लिए गये हैं। गैर-मुसलमानो का धर्मांतरण कर दिया गया है या फिर उनका वध कर दिया गया है। मूर्ति वाले मंदिरों के स्थान पर मस्जिदे खड़ी कर दी गई हैं, बना दी गई हैं।
(चच नामा अल कूफी : ए लीयट और डाउसन खड १ पृष्ठ १६४)
जब बिन कासिम ने सिंध विजय की , वह जहाँ भी गया कैदियों को अपने साथ ले गया और बहुत से कैदीयों को, विशेषकर महिला कैदियो को, उसने अपने देश भेज दया। राजा दाहिर की दो पुत्रियाँ- परिमल देवी और सूरज देवी- जिन्हें खलीफा के हरम को सम्पन्न करनेके लिए हज्जाज को भेजा गया था वे हिन्दू महिलाओं के उस समूह का भाग थीं, जो युद्ध के लूट के माल के पाँचवे भाग के रूप में इस्ला मी शाही खजाने के भाग के रूप में भेजा गया था। चच नामा का विवरण इस प्रकार है- हज्जाज की बिन कासिम को स्थायी आदेश थे की हिन्दुओं के प्रति कोई कृपा (दया) नहि की जाए, उनक गर्दने काट दी जाएँ और म हिलाओं को और बच्चो को कैदी बना लिया जाए' (उसी पुस्तक में पृष्ठ १७३)
हज्जाज की ये शर्ते और सूचनाएँ कुरान के आदेश के पालन के लीए पूणत अनुरूप ही थीं। इस विषय में कुरान का आदेश है- 'जब कभी तुमहे मिले, मूर्ति पूजको का वध कर दो। उनहे बंदी बना ( गिरफतार कर) लो, घेर लो, रोक लो, घात के हर स्थान पर उनकी प्रतीक्षा करो' (सूरा ९ आयत ५) और 'उनमे से जिस किसी को तुम्हारा हाथ पकड़ ले उन सब को अ ल्लाह ने तु म्हें लूट के माल के रुप में दिया है।'
(सूरा ३३ आयत ५८)
रेवार क विजय के बाद कासिम वहाँ तीन दिन रुका I तब उसने छः हजार आदमियों का वध किया। उनके अनुयायी, आश्रित,महिलाय और बच्चे सभी गिरफ्तार कर लये गये। जब कै दियो की गिनती की गई तो वे तीस हजार व्यक्ति निकले जिनमे तीस सरदारों की पुत्रियाँ थीं, उनहे हज्जाज के पास भेज दीया गया। (वहि पुसतक पृष्ठ १७२-१७३)
कराची का शील भंग, लूट पाट एवम् विनाश
'कासिम की सेनाय जैसे ही देवालयपुर (कराची) के किले में पहुँचीं, उन्होंने कत्ले आम, शील भंग, लूटपाट का मदनोत्सव मनाया। यह सब तीन दिन तक चला। सारा किला एक जेल खाना बन गया जहाँ शरण में आये सभी 'काफिर ' - सैनिको और नागरिक- का क़त्ल और अंग भंग कर दिया गया। सभी काफिर महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें मुस्लिम योद्धाओं के मध्य बाँट दया गया। मुख्य मंदिर को मस्जिद बना दया गया और उसी सुर्री पर जहाँ भगवा ध्वज फहराता था, वहाँ इस्लाम का हरा झंडा फहरानेलगा। 'काफिरो' की तीस हजार औरतों को बग़दाद भेज दिया गया।'
(अल- बदौरी की फुतुह-उल-बुलदनः अनु. एलियट और डाउसन ख ड १)
ब्रह्मनाबाद म कत्ले आम और लूट
'मुहम्मद बिन कासिम ने सभी काफिर सैनिको का वध कर दिया और उनके अनुयायियो और आश्रितो को बंदी बना लिया। सभी बंदियों को दास बना दिया और प्रत्येक के मूल्य तय कर दिए गये। एक लाख से भी अधिक् 'काफिरो' को दास बनाया गया।'
(चचनामा अलकुफ : एलियट और डाउसन खड १ पृष्ठ १७९)
सुबुक्तगीन (९७७-९९७)
'
काफिर द्वारा इस्लाम अस्वीकार देने, और अपवित्रता से पवित्र करने के लिए, जयपाल की राजधानी पर आक्रमण करने के उद्देश्य से, सुल्तान ने अपनी नीयत की तलवार तेज की । अमीर लमघन नामक शहर, जो अपनी महान शक्ति और भरपूर दौलत के लिए विख्यात था, की ओर असर हुआ। उसने उसे जीत लिया, और निकट के स्थान, जिनमे काफ़िर बसते थे, में आग लगी दी , मुर्तिधारी मंदिरों को ध्वंस कर दिया और उनम इसलाम स्थापित कर दिया। वह आगे की ओर बढ़ा और उसने दुसरे शहर को जीता और नींच हिन्दुओ का वध किया; मूर्ति पूजको का विध्वंस किया और मुसलमानो की महिमा बढ़ाई।
समस्त सीमाओं का उल्लंघन कर हिन्दुओं को घायल करने और क़त्ल करने के बाद लूट हुई संपत्ति के मूल्य को गिनते गिनते उसके हाथ ठ डे पड़ गये। अपनी बलात विजय को पूरा कर वह लौटा और इस्लाम के लिए प्राप्त विजयो के विवरण की उसने घोषणा की। हर कसी ने विजय के परिणामो के प्रति सहमती दिखाई और आनन्द मनाया और अल्लाह को ध न्यवाद दिया।'
(तारिखी-ई-या मिनीः महमूद का मंत्री अल-उतबी अनु. एलियट और डाउसन ख ड २ पृष्ठ २२, और तारीख-ई-सुबुक्तगीन स्वाजा बैहागी, अनु. एलियट और डाउसन खड २)
गज़नी का महमूद (९७७-१०३०)
भारत के विरुद्ध सुल्तान महमूद के जिहाद का वर्णन उसके प्रधानमंत्री अल-उतबी द्वारा बड़ी सूक्ष्म सूचनाओं के साथ भी किया गया है और बाद में एलियट और डाउसन द्वारा अंग्रेजी म अनुवाद करके अपने ग्रन्थ, 'द स्टोरी ऑफ इण्डिया एज़ टोल्ड बाइ इट्स ओन हिस्टोरियंस के खड २ में उपलब्ध कराया गया है।'
पुरुदगापुर (पेशावर) में जिहाद
अल-उतबी ने लखा- 'अभी मध्यान्ह भी नहीं हुआ था की मुसलमान ने 'अललाह के शत्रु' हिन्दुओं के विरुद्ध बदला लिया और उनमें से पंद्रह हजार को काट कर कालीन की भाँति भूमि पर बिछा दिया ताकि शिकारी जंगल जानवर और पक्षी उन्हें अपने भोजन के रूप में खा सके । अल्लाह ने कृपा कर हमें लूट का इतना माल दिलाया है कि वह गिनती की सभी सीमाओं से परे है
यानि की अनगिनत है जिसमे पाँच लाख दास, सुदर पुरुष और महिलाय हैं। यह 'महान' और 'शोभनीय' कार्य बृहस्पतिवार मुहर्रम की आठवी ३९२ हिजरी (२७.११.१००१) को हुआ'
(अल-उत्बी की तारिख -ई-यामिनी, एलीयट और डाउसन खड प ृठ २७)
नन्दनापुर की लूट
अल-उत्बी ने लिखा- 'जब सुल्तान ने हिन्द को मूर्ति पूजा से मुक्त कर दिया था, और उनके स्थान पर मस्जिद खड़ी कर दी थीं, उसके बाद उसने उन लोगो को, िजनके पास मुर्तिया पाई गयीं थी उन्हें दंड देने का निश्चय किया i असंखय, असीमित व अतुल लूट के माल और दासों के साथ सुल्तान लौटा। ये सब इतने अधिक् थे की इनका मूल्य बहुत घट गया और वे बहुत सस्ते हो गये;
और अपने मूल निवास स्थान में इन अति सम्माननीय हिन्दू पुरुषो को, अपमानित किया गया क वे मामूली दुकानदारो के दास बना दिए गये। उन्हें घोड़ो में बांध कर घोड़ो को भगा दिया गया, उन्हें खेतो और कोल्हुओ में बैलो के साथ जोत दिया गया, उनके अंगो को एक एक कर भंग कर दिया गया, उन्हें इतनी सजा दी गयी जिसके वो लायक थे.. यह तो अल्लाह की कृपा है उसका उपकार है की वह अपने पंथ को आश्रय और सम्मान देता है और गैर-मुसलमान को अपमान देता है I ' (उसी पुसतक में पृष्ठ ३९)
थाने श्वर में (कत्लेआम) नरसंहार
अल-उत्बी लिपिबद्ध करता है- 'इस कारण से थानेश्वर का सरदार अपने दुर्विश्वास में और अल्लाह की अस्वीकृति में उद्धत था।
अतः सुलतान उसके विरुद्ध अग्रसर हुआ ताकी वह इसलाम की वास्त्विकता का आदर्श स्थापित कर सके और मूर्तीपूजा का मूलो छेदन कर सके। गैर-मुसलमान ( हिन्दू बौद्ध आदी) का रक्त इस प्रचुरता, आधिक्य व बहुलता से बहा की नदी के पानी का रंग परिवर्तित हो गया और लोग उसे पी न सके । यदि रात्रि न हुई होती और प्राण बचाकर भागने वाले हिन्दुओं के भागने के चिन्ह भी गायब न हो गये होते तो न जाने कितने और शत्रुओंका वध हो गया होता। अ ल्लाह की कृ पा से विजय प्राप्त हुई जिसने सर्वश्रेष्ठ पंथ इस्लाम, की सदैव के लिए स्थापना कर दी (उसी पुसतक में पृष्ठ ४०-४१)
फ़रिश्ता के मतानुसार, 'मुहम्मद की सेना, गजनी में, दो लाख बंदी लाई थी जिसके कारण गजनी एक भारतीय शहर की भाँति लगता था क्योंकि हर एक सैनिक अपने साथ कई कई दास व दासियाँ लाया था। (फ़रिश्ता : ए लियट और डासन -खंड I पृष्ठ २८)
सरासवा म नर संहार
अल-उत्बी आगे लिखता है- 'सुलतान ने अपने सै निको को तुरत आ क्रमण करने का आदेश् दिया I परिणाम स्वरुप अनेक गैर-मुसलमान बंदी बना लिए गये और मुसलमानो ने लूट के माल की तब तक कोई चिंता नहीं की जब तक उन्होंने अविश्वासियों, ( हिन्दुओं) सूर्य व अग्नि के उपासको का अनंत वध करके अपनी भूख पूरी तरह न बुझा ली। लूट का माल खोजने के लिए अल्लाह के मित्रो ने पूरे तीन दिन तक वध किये हुए अविश्वासियो ( हिन्दुओं) के शवों की तलाशी ली ...बंदी बनाये गये व्यक्तियों की संखया का अनुमान इसी त य से लगाया जा सकता है की हर एक दास दो से लेकर दस दिरहम तक में बिका था। बाद म इन्हें गजनी लेजाया गया और बड़ी दूर-दूर के शहर से व्यापारी इन्हें खरीदने आये थे।...गोरे और काले, धनी और निर्धन, दासता के एक समान बंधन म , सभी को मिश्रित कर दिया गया।'
(अल-उत्बी : एलियट और डासन - खड ii पृष्ठ ४९-५०)
अल-बरूनी ने लिखा था- 'महमूद ने भारती की सम्पन्नता को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया । इतना आश्चर्य जनक शोषण व विध्वंस किया था की हिन्दू धूल के कानो की भाँति चारो ओर बिखर गये थे। उनके बिखरे हुए अवशेष निश्चय ही मुसलमानो की चिरकालीन प्राणलेवा, अ धिकतम घृणा को पोषित कर रहे थे।'
(अल बरुनी- तारीख-ई- हिन्द, अनु. अलबरुनीज़ इि डया, बाई ऐडवड सचाउ, लंदन, १९१०)
सोमनाथ की लूट
'सुल्तान ने मंदिर में विजयपूवक प्रवेश किया, शिव लिंग को टुकड़े-टुकड़े कर तोड़ दिया, जितने में समाधान हुआ उतनी संपत्ति को आधिपत्य में कर लिया I वह संपत्ति अनुमानतः दो करोड़ दरहम थी। बाद में मंदिर का पूर्ण विध्वंस कर, चूरा कर, भूमि में मिला दिया, शिवलिंग के टुकडो को गजनी लेगया, जिन्हें जामी मस्जिद की सीढियों में लगाने के लिए प्रयोग किया' (ताकि इस्लामी नागरिक मूर्तिपूजको को धूल में मिलाने और उनका गौरव लूट लेने का स्वयं आनंद उठा सकें)
(तारीख-ई-जैम-उल-मासीर, द स्ट्रगल फौर ऐ एम्पायर-भारतीय विद्या भवन पृष्ठ २०-२१)
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मुहम्मद गौरी (११७३-१२०६) का कारनामा :
हसन निज़ामी ने अपने ऐतिहासिक लेख, 'ताज-उल-मासीर' , में मुहम्मद गौरी के व्यक्तित्व और उसके द्वारा भारत के बलात् विजय का विस्तृत वर्णन किया है।
युद्धो की आवश्यकता और लाभ के वणन , िजसके बिना मुहम्मद का रेवड़ अधूरा रह जाता है अर्थात् उसका अहंकार पूरा नहीं होता, के बाद हसन नज़ामी ने कहा ' की पंथ के दायित्वो के निर्वाह के लिए जैसा वीर पुरुष चाहिये, वह सुल्तानों के सुल्तान, अविश्वासियो और बहु देवता पूजको के विध्वंसक, मुहम्मद गौरी के शासन में उपलब्ध हुआ; और उसे अल्लाह ने उस समय के राजाओं और शहंशाह में से छांटा था, ' क्योंकि उसने अपने आपको पंथ के शत्रुओं के मूलोच्छेदन एवं सवंश् विनाश के लिए नियुक्त किया था। उनके हदय के रक्त से भारत भूमि को इतना भर दिया था, की कयामत के दिन तक यात्रियों को नाव म बैठकर उस गाढ़े खून की भरपूर नदी को पार करना पड़ेगा। उस ने जिस किलेपर आक्रमण कि या उसे जीत लिया, मिटटी में मिला दिया और उस (किले) की नींव व खम्भों को हाथियो के पैर के नीचे रौंदकर भस्मसात कर दया; और मूर्तिपूजको के सारे विश्व को अपनी अच्छी धार वाली तलवार से काट कर नर्क की अग्नि में झोंक दिया; मंदिरों, मूर्तियों के स्थान पर मस्जिदें बना दी ।'
(ताज-उल-मासीर : हसन नजामी, अनु. ए लयट और डाउसन, ख ड II पृ ठ २०९)
अजमेर पर इस्लाम की बलात् स्थापना
हसन नजामी ने लखा था- 'इस्लाम की सेना पूरी तरह विजयी हुई और एक लाख हिन्दू पलक झपक की तेजी के साथ नरक क अग्नि में चले गये...इस विजय के बाद इस्लाम की सेना आगे अजमेर की ओर चल दी जहाँ हम लूट में इतना माल व संपत्ति मिले की समुद्र के रहस्मयी कोषागार और पहाड़ एकाकार हो गये।
'जब तक सुल्तान अजमेर में रहा उसने मंदिरों का व विध्वंस किया और उनके स्थानों पर मस्जिद बनवाई ।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ २१५)
देहली में मंदिरों का ध्वंस<
हसन नजामी ने आगे लिखा-' विजेता ने दिल्ली में प्रवेश किया जो धन संपत्ति का केन्द्र है और आशीर्वादो की नींव है। शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों को मंदिरों और मू र्तियों से तथा मू र्तिपूजको से रहित वा मुक्त बना दिया यानि की सभी का पूर्ण विध्वंस कर दिया। एक अल्लाह के पूजको (मुसलमानो) ने मंदिरों के स्थान पर मस्जिद खड़ी करवा दी, बनवा दीं I' (वही पुस्तक पृष्ठ २२२)
वाराणसी का ध्वंस (शीलभंग)
'उस स्थान से आगे शाही सेना बनारस की ओर चली जो भारत की आत्मा है और यहाँ उन्होंने ने एक हजार मंदिरों का ध्वंस किया तथा उनके नीवों के स्थान पर मस्जिदें बनवा दीं; इस्लामी पंथ केंद्र की नींव रखी।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२३)
हिन्दुओं के सामूहिक वध के विषय में हसन निजामी आगे लिखता है, 'तलवार के धार से हिन्दुओं को नर्क की आग में झोंक दिया गया। उनके सरों से आसमान तक ऊंचे तीन बुर्ज बनाये गये, और उनके शवों को जंगल पशुओं और पक्षियों के भोजन के लए छोड़ किया गया।'
(वह पुस्तक पृष्ठ २९८)
इस सम्बन्ध में मिनहाज़-उज़- सिराज़ ने लिखा था-'दुर्ग रक्षको में से जो बुद्धिमान एवं कुशाग्र बुद्धि के थे, उन्हें धर्मान्तरण कर
मुसलमान बना लिया किन्तु जो अपने पूर्व धर्म पर आरूढ़ रहे, उन्हें वध कर दिया गया।'
(तबाकत-ई-नसीरी - मिनहाज़, अनु. एलियट और डाउसन, ख ड II पृ ठ २२८)
>गुजरात म गाज़ी लोग (११९७)
गुज़रात की विजय के विषय में हसन निजामी ने लिखा- 'अधिकांश हिन्दुओं को बंदी बना लिया गया और लगभग पचास हजार को तलवार वारा वध कर नर्क भेज दिया गया, और कटे हुए शव इतने थे की मैदान और पहाड़ियां एकाकार हो गयीं ।
बीस हजार से अधिक हिन्दू जिनमे से अधिकांश महिलाएं ही थीं, विजेताओं के हाथ दास बना दिए गये। (वही पुस्तक पृष्ठ २३०)
देहली का पवित्रीकरण वा इस्लामीकरण
'जब सु तान देहली वापस लौटा उसे हिन्दुओं ने अपनी हार के बाद पुनः जीत लिया था। उसके आगमन के बाद मूर्तियुक्त मंदिर का कोई अवशेष व नाम नही बचा। अविश्वास के अंधकार के स्थान पर पंथ (इस्लाम) का प्रकाश जगमगाने लगा।'
(वही पुसतक पृष्ठ २३८-३९)
कुतुबुद्दीन ऐबक (१२०६-१२१०)
हसन नजामी ने अपने ऐतीहासिक लेख ताज-उल-मासीर में लिखा था, 'कुतुबुद्दीन इस्लाम का शीर्ष है और गैर-मुसलमानो का विध्वंसक है .... उसने अपने आपको शत्रुओं -हिन्दुओं से - के धर्म के के मूलोच्छेदन यानी की सम्पूर्ण विनाश के लिए नियुक्त किया था, और उसने हिन्दुओं के रक्त से भारत भूमि को भर दिया ...उसने मूर्ति पूजको के सम्पूर्ण विश्व को नर्क की अग्नि में झोंक दिया था...और मंदिरों और मूर्तियों के स्थान पर मस्जिदें बनवा दी थीं।'
(ताज-उल-मासीर हसन निजामी अनु. ए लयट और डाउसन, खंड २ पृ ठ २०९)
'
कुतुबुद्दीन ने जामा मस्जिद देहली बनवाई और जिन मंदिरों को हाथियों से तुड़वाया था, उनके सोने और पत्थरो को इस मस्जिद में लगाकर इसे सजा दिया I'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२२)
इस्लाम का कालिंजर म प्रवेश
'मंदिरों को तोड़कर, भलाई के पवित्र आगारो,- मस्जिदों में परिवर्तित कर दिया गया और मूर्ति पूजा का नामो निशान मिटा दिया गया .... पचास हजार व्यक्तियों को घेरकर बंदी बना लिया गया और हिन्दुओं को तड़ातड़ मार (यंत्रणा) के कारण मैदान काला हो गया। (उसी पुसतक में पृष्ठ २३१)
'अपनी तलवार से हिन्दुओं का भीषण विध्वंस कर भारत भूमि को पवित्र इस्लामी बना दिया, और मूर्ति पूजा की गन्दगी और बुराई को समाप्त कर दिया , और सम्पुर्ण देश को बहुदेवतावाद और मूर्तीपूजा से मुक्त कर दया, और अपने शाह उत्साह , निडरता और शक्ति द्वारा किसी भी मंदिर को खड़ा नहीं रहने दिया ।'
(वह पुस्तक पृष्ठ २१६-१७)
ग्वालियर में इस्लाम
ग्वालियर में कुतुबुद्दीन के जिहाद के विषय में मिन्हाज ने लिखा था- 'पवित्र धर्म युद्ध के लिए अल्लाह के, दैवी, यानी की कुरान के आदेशानुसार धम शत्रुओ- हिन्दूओ-के विरुद्ध उन्होंने रक्त की प्यासी तलवारे बाहर निकाल ली ।'
(टबाकत-ई-नासीरी , मिनहाज़-उज़- सिराज, अनु. एलीयट और डाउसन, ख ड II पृष्ठ २२७)
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गुप्त वंश (260 BC या ~ २०३ विक्रम संवत से ७०० AD या ६५० विक्रमी संवत तक) के शक्तिहीन होने और भारतीय विद्रोही गुटों-राज्यों, जो वास्तव में उनके ही पूर्व सामंत या सेनाधिकारी रह चुके थे, के आपस में युद्धरत रहने के कारण (और अन्य कारन*) गुप्त वंशियो द्वारा स्थापित विश्व का महानतम साम्राज्य "आर्यावर्त" शून्य की स्थिति में खड़ा था जहाँ पिछले लगभग सहस्त्र वर्षो का अखंड भारत खंडित और अशक्त हो चूका था और विध्वंस को आसन्न था !!
एक भौगोलिक खंड जिसकी सीमायें विश्व के कई हिस्सों में थीं, एक साम्राज्य जिसने भारत यानि आर्यावर्त को अथाह ऐश्वर्य, रत्ना-आभूषण- सोना-हीरा एवं अन्य धातुओ, विश्व भर से जीती राशियों के कारण विश्व का सबसे संपन्न देश बना दिया था जब विश्व की ७५% से अधिक व्यापर पर भारत की पकड़ थी, नागरिक सुखी, धार्मिक या वास्तव में धर्म भीरु * (अन्यत्र लेख में वर्णित) थे भारत के इस आखिरी वैश्विक साम्राज्य के अशक्त (संपूर्ण नष्ट नहीं) होने से अत्यंत भंगुर दशा में आ चूका था जिससे मध्य एशिया और मंगोलों की सालो से नियंत्रण में रखी भूखी, नंगी बर्बर अतात्तायी कौम, जिसकी लालची नजरे पिछले २००-३०० वर्षो से इस सोने के देश जिसे उन लालचियो ने ( गरुड़* से) "चिड़िया" बना दिया I
और फिर जो दौर प्रारभ हुआ तो तुर्क ईरान की सीमा के पार से, जो तात्कालिक भारत या "आर्यावर्त" का पश्चिमी छोर था और जो वास्तव में उन अभारतीय अन्य देशियो के लिए उस परम शक्तिशाली साम्राज्य आर्यावर्त का उनके उन्मुख पक्ष था (इसलिए ईरान नाम दिया गया आर्यः= आर्यन=आर्यान=आरियान= ईरान), नवांकुरित कबीले बारी बारी से इस देश का मांस नोचने को आक्रमण करने लग गए.. सैकड़ो सालो से उबल रही घृणा, लालच एवं ईर्ष्या की आग उनकी जंगली, खूंख्वार तलवारों में उतरकर कर भारत के हर नगर को मिटाने के लिए उद्धत हो गयी.. जिस आर्यावर्त एवं उसके अत्यंत संपन्न, परिष्कृत एवं उछ्शील निवासियों के बारे में सुन पढ़ कर सैकड़ो सालो से वे पिछड़े जंगली लालायित रहे थे जिसकी सम्पदा पर वे हमेशा से लालची नजरे गडाए बैठे थे जिसकी हर पहचान से उन्हें वितृष्णा थी जिसके नियंत्रण एवं प्रभुत्व से उनकी आत्माएं सालो से बिलबिला रही थीं, बौद्ध धर्म एवं हिन्दू-वैदिक धर्म के धर्म गुरुओं के सुदूर तक पहुँच यानि तुर्क(तुरग-)स्थान, कर्कस्थान-किर्गिस्तान, दक्षिणी रूस, दक्षिणी-पश्चिमी यूरोप तक होने से उनकी कुंठा एवं क्षोभ का पारावार न था.. उन्हें तो उस प्रचंड सर्वशक्तिमान साम्राज्य में एक कमजोरी की प्रतीक्षा थी I उसके स्वयं ही ढल जाने की प्रतीक्षा थी!!!
एक बार वैदिक-हिन्दू राजा दाहिर को पराजित करने के बाद उन नीच लुटरो के लिए मानो खजाने का द्वार खुल गया... धन सम्पदा के स्वर्ग में म्लेच्छ, आततायी लुटेरो का अवैध प्रवेश हो गया.. लाखो की संख्या में मंदिर तोड़े गए कई हजार मंदिरों में प्रत्येक में १००० से ४००० मन तक सोना-चांदी-हीरे-रत्न जवाहरात निकले इन मंदिरों तक पहुँचने के पहले इन मुग़ल लुटेरो ने कई कई हजार एवं कई लाख हिन्दुओ को काट दिया फिर उनके कटे सिरों की लड़ियाँ बनायीं.. लाशो के सीने का खून निकाल कर नगरो के मध्य में कुण्ड बनाया.. कटे सिरों के छोटे पहाड़ बनाकर किलो के दरवाजे पर छोड़ दिए गए.. हिन्दुओ खासकर हिन्दू सैनिको क्षत्रियो एवं पुजारियों-ब्राह्मणों एवं अन्य महत्वपूर्ण नागरिको के कटे सिरों की झालरें बनाकर किलो की दीवारों पर नुमाईश के लिए छोड़ दी गयीं... उनके धडो को चील-कौवों एवं अन्य पशुओं के खाने के लिए छोड़ दिया गया... उन नगरो, जिनमे से कुछ का उल्लेख ऊपर हुआ है, में प्राप्य हर कीमती वस्तु वहशी लुटेरे मुग़ल सैनिको द्वारा लूटकर अपने रेहड़ में शामिल कर ली गयी एवं उसमे से तय हिस्सा खलीफा यानि मुस्लिम बादशाह को नजर करने के लिए कई कई हजार घोड़े-बैल-गधा गाडियों में अरब के लिए भेज दी जाती रहीं.. युवा-कमसिन स्त्रियों एवं पुष्ट युवक एवं बालको को क्रमशः हरम में एवं गुलामो की तरह प्रयोग करने एवं अरब एवं यूरोप के गुलाम बाजारों में बेचने के लिए बाँध बांध कर काफिलों में तुर्किस्तान को भेज दिए गए ....
हर एक हिन्दू प्रदेश छिन्नभिन्न कर दिए जाने के समीप से समीपतम होता गया... १५०- २०० सालो के अगले अंतराल पर ९६० इसवी से जो अगला दौर शुरू हुआ उसने सन १५२५ इसवी तक विश्व में नरसंहार किये जाने की महानतम संख्या को भी शर्मसार कर दिया (निगोशिएशंस इन इंडिया: लाल)... मात्र ५२५ वर्षो में साढ़े आठ करोड़ हिन्दुओ का संहार कर दिया गया .. साढ़े आठ करोड़ हिन्दू ...कब? जब भारत की जनसँख्या १३-१४ करोड़ से अधिक नहीं थी और विश्व की जनसँख्या ही २० करोड़ से अधिक नहीं थी.. यानि आज की जनसँख्या की गणना से कोई ७०-८० करोड़ से अधिक हिन्दुओ का निर्दयतापूर्वक संहार हो गया.... ऐसा सामूहिक अल्पावधि मनुष्यों का नाश मानव की जानकारी में नहीं है!!! न हो सकती है!!
४०० ईसापूर्व से प्रारंभ (मौर्य एवं तत्पश्चात) गुप्त वंशियो द्वारा स्थापित "अखंड भारत" जो काल महाभारत काल के बाद सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बन पाया था, जिसे चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक एवं उसके बाद चन्द्रगुप्त प्रथम, महान समुद्रगुप्त , चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य सह्सांक, स्कंदगुप्त, कुमारगुप्त से लेकर विष्णु-जीवित-हर्ष व पुरुगुप्त आदि (३०)प्रचंड योद्धाओ ने विदेशी अक्रान्ताओ-शक, हूण, यवन, मार्जार, सुंग, मुरुंड आदि से इस परम पवन आदि देव भूमि भारत वर्ष को सुरक्षित बनाये रखा पर उन महाभुजा विश्वविजयी वीरो के अवसान पश्चात् आए इन मुग़ल लुटेरो के तूफ़ान ने इस सभ्यता के शिखर देश को गुमनामी, पराजय, गुलामी, आतंक, नाश के गर्त में धकेल दिया..
इस आतंक की आंधी में <strong>ज्ञान-विज्ञानं, सम्पदा-ऐश्वर्य, भवन-महल-मंदिर, गुरुकुल-विश्वविद्यालय-मठ- आश्रम, किले-पुस्तकालय-शोध संसथान इत्यादि से लेकर विद्वानों यानि ब्राह्मण , शूरवीर योद्धा क्षत्रियो विशेषकर, एवं अन्य सभी हिन्दू नागरिको का नाश कर दिया गया मनुष्यों को उनके मूल धर्म-आस्था से विमुख कर दिया गया, उनकी नस्लीय पहचान के हर चिन्ह, उनके गौरव के हर अंश उनके अस्तित्व के हर हिस्से को समूचा ध्वस्त कर दिया गया ... बचने वाले कम ही थे.. कइयो को जान बचा कर देश या हिमालयी व पठारी-वन क्षेत्रो में छुप जाना पड़ा..
हिन्दू सैनिको के मारे जाने गुलाम बना लिए जाने के पश्चात् हिन्दू महिलाओ के साथ जी भरकर हवस की पूर्ती की गयी, मुगली सैनिको को निरीह हिन्दू स्त्रियों-बालिकाओ के साथ खेलने कुछ भी करने के पूरी छूट थी, उनके साथ कई कई दिन तक चीरहरण चलता रहा बलात्कार होता रहा , बलात्कार के बाद उनके पेट फाड़ दिए गए, आंते निकल दी गयीं, हाथ पैर काट कर इधर उधर फेंक दिए गए..उन स्त्रियों के जिनको बचाने वाला कोई नहीं था... कई संपन्न घरो की स्त्रियों को खलीफा को नजर करने के लिए गुलाम बनाकर भेज दिया गया जिसमे से कई भीषण यात्रा के दौरान पीड़ा या मुग़ल सैनिको द्वारा उपभोग किये जाने के कारन मृत्यु को प्राप्त हो गयी और इस प्रकार भविष्य की अधिक अपमान और कष्ट से पहले ही मुक्त हो गयीं....
इसपर भी आज के तथाकथित प्रगतिशील प्रबुद्ध इतिहासकारों का कहना है की मुग़ल इस देश में प्रेमपूर्वक आए थे.. उन्होंने इस्लाम पंथ बड़े ही सहिष्णु- स्वतंत्र विधियों से फैलाया!! और क्यों नहीं कहेंगे क्योंकि वो उन्ही यूरोपिअनो की भाषा बोलते हैं जिन्होंने अरबियो से भारत के बारे में जाना ..उन्ही अरबियो से, जिन्होंने ऐसे अभागे देश का इतिहास लिखा ... और वही अंग्रेजो-यूरिपिअनो और मुगलों का लिखा हमारा इतिहास हम आज तक पढ़ रहे हैं..
लुटेरो मुग़ल आक्रान्ताओं ने लाखो-करोड़ों भवन-किले-महल-मंदिर गिराए , पर साथ ही ज्ञान के हमारे विशिष्ट केन्द्रों यथा विश्वविद्यालय, गुरुकुल, पुस्तकालय इत्यादि को भी जला डाला , हमारी बौद्धिक शक्ति और हमारे अस्तित्व के आधार ज्ञान के महत्वपूर्ण धरोहर - धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और परावैज्ञानिक पुस्तकों, पांडुलिपियों और उन्हें जानने पढने वाले विद्वान्-आचार्यो को भी नष्ट कर डाला और, मिटा डाला हमारे सारे लिखित इतिहास को (लगभग) ...यहाँ जो भी प्रस्तुत है उस इतिहास वृत्तान्त का एक छोटा अंश है ... लुटेरो, हत्यारे मुगलों ने नहीं भारतभूमि को नेस्तनाबूद ही नहीं किया बल्कि इस हाहाकारी हत्याकांड, लूट और व्याभिचार को अपने इतिहासकारों से लिखाया भी.. कुछ भारतीयों-हिन्दुओं का भी लिखा है जो साजिशन कालकोठरी में डलवा दिया गया है...
पर फिर भी हमारी दुर्दशा अपमान की कहानी समूचे विश्व को मालूम है ..इस देश की हर सम्पदा लूट खसोट कर विदेशी जंगली राज्यों में पहुंचा दी गयी .. पर हमें अपना इतिहास नहीं मालूम ...कहते हैं अनभिज्ञता अत्यंत सुखकारी है... और, कितने सुखी हैं हम !!
बीते १००० सालो में १२ करोड़ से अधिक हिन्दू अपने घरो में निर्दयतापूर्वक काट डाले गए ... आज की सांख्यिकी में यह संख्या ९० करोड़ से ऊपर जाती है.. इतने हिन्दू इस अल्प अवधि में नष्ट कर दिए गए जितने कुल मनुष्य इस भूभाग में पिछले ५००० सालो में प्राकृतिक कारणों से भी नहीं मरे.. क्या हुआ होगा इन विगत ६०० सालो में जब इस देश के हर कोने में दर्दनाक आर्तनाद सुनाई देता होगा.. दर्द, अपमान, भय, चीख पुकार .... आतंक!!
इतना बड़ा नरसंहार, इतने बेबस, हतप्रभ, आशंकित लोग... कितनी अतृप्त आत्माएं.. . कहते हैं हमारे पूर्वजो की आत्माएं हमें ऊपर से देखती हैं... क्या वो हमसे कुछ चाहती होंगी..? क्या वो हमसे कुछ कहती होंगी? क्या हमने कभी सोचा है? क्या वो खुश होंगी?
खुश होंगी या नहीं ..हमें क्या मालूम? हमें क्या मतलब?
क्या आज हम जिन्दा हैं? क्या हम कहीं हैं..?
हम हैं कहाँ हम तो अपने उस राष्ट्र-शरीर की छाया भी नहीं हैं... उस महा आघात ने इस राष्ट्र का अस्तित्व मिटा दिया.. उस महा आतंक ने हमारी चेतना को कंपा दिया.. हम विचारो, संवेदना से शून्य हो गए.. हमारा महान वैश्विक अस्तित्व समूचा मिटा दिया गया.. हम आंख उठाकर, सर उठाकर चलने लायक नहीं छोड़े गए.. और आज तक वही दशा है..
क्या हम उन्हें अपना पूर्वज मानते हैं? क्या हम कुछ सोच सकते हैं उनके बारे में? क्या हम कुछ कर सकते हैं... क्या हम कुछ करेंगे?
हमने अभी तक तो कुछ नहीं किया...........
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हे आर्यावर्त !!